26 सितंबर, रानी रासमणि, दक्षिणेश्वर काली मंदिर, रामकृष्ण परमहंस, बंगाल समाजसेवी, बंगाल जमींदारी

रानी रासमणि के बारे में पढ़ें, जिन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्थापना की। उनका जीवन समाज सेवा, ब्रिटिश शासन के खिलाफ साहस, और धार्मिक भक्ति का प्रेरणादायक उदाहरण है। जानिए उनके योगदान और बंगाल के इतिहास में उनकी स्थायी विरासत के बारे में Rani Rashmoni, South Kolkata Kali Temple, Dakshineswar Kali Mandir, Ramakrishna Paramhansa, Bengali Social Reformers, Bengal Zamindari, British Rule in Bengal, Kolkata Historical Figures, Social Work in Bengal, Hindu Temples Kolkata ब्रिटिश शासन और बंगाल, कोलकाता का इतिहास, कोलकाता के प्रमुख मंदिर, बंगाल की धार्मिक हस्तियाँ, कोलकाता के प्रमुख सामाजिक सुधारक

Sep 26, 2024 - 20:41
Sep 26, 2024 - 20:46
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26 सितंबर, रानी रासमणि, दक्षिणेश्वर काली मंदिर, रामकृष्ण परमहंस, बंगाल समाजसेवी, बंगाल जमींदारी

रानी रासमणि एक समाजसेवी और धर्मप्रेमी महिला थीं, जिन्होंने अपने जीवन में समाज के निर्धनों की सेवा और धार्मिक कार्यों के प्रति अद्वितीय योगदान दिया। कोलकाता के प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर के निर्माण में उनकी प्रमुख भूमिका रही है। हालाँकि इस मंदिर और इसके मुख्य पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस का नाम बहुत प्रसिद्ध है, लेकिन इसे बनवाने वाली रानी रासमणि के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

प्रारंभिक जीवन

रानी रासमणि का जन्म 26 सितम्बर 1793 को बंगाल के 24 परगना जिले में गंगा के तट पर स्थित कोना गाँव में हुआ था। उनके पिता श्री हरेकृष्ण दास एक साधारण किसान थे, और परिवार का खर्च चलाने के लिए वह खेती के साथ-साथ स्थानीय जमींदार के पास कुछ काम भी करते थे। इसी दौरान, रासमणि को भी प्रशासनिक कार्यों की जानकारी होने लगी। उनकी बचपन से ही धार्मिक ग्रंथों, जैसे रामायण और भागवत, में गहरी रुचि थी, जिसे उनके पिता द्वारा सुनाए जाने पर वे ध्यान से सुनती थीं। इस प्रवृत्ति ने उनके भीतर सेवा भाव और परोपकार की भावना को जन्म दिया।

विवाह और सामाजिक सेवा

रानी रासमणि का विवाह 11 वर्ष की आयु में बंगाल के एक प्रमुख जमींदार परिवार में रामचंद्र दास से हुआ। विवाह के बाद रानी रासमणि ने अपने परिवार और समाज की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। वर्ष 1823 में, जब बंगाल में भयानक बाढ़ आई, तब उन्होंने कई अन्नक्षेत्र खोले और आश्रय स्थल बनवाए। इससे उनकी समाजसेवा के प्रति समर्पण को देखते हुए लोग उन्हें 'रानी' कहने लगे।

प्रशासनिक कार्य और अंग्रेजों से टकराव

अपने पति के निधन के बाद, रानी रासमणि ने अकेले ही जमींदारी और उसकी संपत्ति का प्रबंधन संभाला। उन्होंने अपने दामाद मथुरानाथ के सहयोग से जमींदारी को सुव्यवस्थित किया। उनके साहसी और निर्णायक कदमों ने उन्हें न केवल समाज में बल्कि अंग्रेजी शासन के खिलाफ भी पहचान दिलाई। अंग्रेजी हुकूमत के कई निर्णयों के खिलाफ उन्होंने मजबूती से आवाज उठाई।

एक बार, जब अंग्रेजों ने दुर्गा पूजा में ढोल-नगाड़ों के उपयोग पर रोक लगाने का प्रयास किया और रानी पर जुर्माना लगाया, तो उन्होंने अंग्रेजों से टकराव करते हुए वह रास्ता ही खरीद लिया, जहाँ से अंग्रेजों का आना-जाना बंद हो गया। इसी प्रकार, जब अंग्रेजों ने मछुआरों पर कर लगाने का आदेश दिया, तो रानी ने वह पूरा तट खरीदकर अंग्रेजी शासन को झुकने पर मजबूर कर दिया।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण

रानी रासमणि को धार्मिक कार्यों में विशेष रुचि थी। एक बार उन्हें स्वप्न में माँ काली ने भवतारिणी रूप में दर्शन दिए, जिसके बाद उन्होंने हुगली नदी के किनारे दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर के निर्माण का कार्य तेजी से पूरा किया गया, और 31 मई, 1855 को काली माँ की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई। इस मंदिर के मुख्य पुजारी रामकुमार चटर्जी थे, जिन्होंने अपने छोटे भाई गदाधर चटर्जी को भी बुलाया। बाद में गदाधर चटर्जी, रामकृष्ण परमहंस के रूप में प्रसिद्ध हुए, और उनके आशीर्वाद से यह मंदिर और भी पूजनीय बन गया।

अंतिम समय और विरासत

रानी रासमणि ने अपनी संपत्ति और जमींदारी का प्रबंध इस तरह किया कि उनके द्वारा शुरू किए गए सभी सेवा कार्य और मंदिर का संचालन उनके निधन के बाद भी सुचारू रूप से चलता रहे। 19 फरवरी, 1861 को गंगा घाट पर जगमग प्रकाश के बीच, इस महान समाजसेवी का निधन हो गया। उनके द्वारा स्थापित दक्षिणेश्वर मंदिर और उनके कार्यों की स्मृति आज भी जीवित है। मंदिर के मुख्य द्वार पर लगी उनकी प्रतिमा उनके महान कार्यों की याद दिलाती है।

रानी रासमणि का जीवन संघर्ष, साहस, और सेवा का अनुपम उदाहरण है, जो हमें यह सिखाता है कि किस प्रकार अपने धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों को निभाते हुए समाज की भलाई के लिए काम किया जा सकता है।

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