RSS की निष्क्रियता और भाजपा की मुश्किलें: 2024 में 400 पार का लक्ष्य अधूरा
आरएसएस और भाजपा का रिश्ता हमेशा से गहरा रहा है। संघ का भाजपा की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने और कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
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RSS की निष्क्रियता और भाजपा की मुश्किलें: 2024 में 400 पार का लक्ष्य अधूरा
2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सामने एक बड़ी चुनौती रही, जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक चुनावी प्रक्रिया में निष्क्रिय दिखे। 2014 और 2019 के चुनावों में आरएसएस ने भाजपा उम्मीदवारों को जिताने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन इस बार स्थिति अलग रही।
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आरएसएस का सहयोग न मिलने से भाजपा पर असर पड़ा !
आरएसएस और भाजपा का रिश्ता हमेशा से गहरा रहा है। संघ का भाजपा की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने और कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन इस बार चुनाव में दोनों दूर-दूर रहे। सूत्रों के अनुसार, भाजपा ने संघ का सहयोग मांगा ही नहीं। पूरे देश में फैले और आम लोगों के बीच सक्रिय आरएसएस के प्रचारक और स्वयंसेवक चुनाव के दौरान पूरी तरह निष्क्रिय दिखे।
भाजपा की 2004 की याद हुई ताजा
2004 के लोकसभा चुनाव में भी आरएसएस की ऐसी ही निष्क्रियता देखी गई थी, जिसके परिणामस्वरूप 'इंडिया शाइनिंग' के बावजूद भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी। आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के प्रति स्वयंसेवकों में कोई नाराजगी नहीं है, लेकिन इस बार भाजपा ने संघ के सहयोग के बिना ही 400 पार का लक्ष्य हासिल करने का निर्णय लिया।
दूसरे दलों के नेताओं को शामिल करना
भाजपा ने इस बार दूसरे दलों से 100 से अधिक नेताओं को टिकट दे दिया, जिसमें संघ की राय नहीं ली गई। असम गण परिषद से सर्वानंद सोनेवाल और कांग्रेस से हिमंत बिस्व सरमा को लाने से पहले संघ की राय ली गई थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इससे स्वयंसेवकों के साथ समन्वय बनाना मुश्किल हो गया।
चुनावी भूमिका में बदलाव
आरएसएस के प्रचारकों ने चुनाव से पहले अपने-अपने क्षेत्रों में प्रबुद्ध लोगों के साथ बैठक की, लेकिन सीधे तौर पर भाजपा को वोट देने का संदेश नहीं दिया। इसके बजाय उन्हें अपने क्षेत्र के अच्छे उम्मीदवारों को वोट देने की सलाह दी गई।
निष्क्रियता का असर
आरएसएस के सहयोग के बिना भाजपा ने 400 पार के लक्ष्य को हासिल करने का फैसला किया, लेकिन परिणामस्वरूप यह लक्ष्य अधूरा रह गया। आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार, स्वयंसेवकों में भाजपा के प्रति नाराजगी नहीं है, लेकिन संघ से सलाह लिए बिना ही चुनावी रणनीति बनाना भाजपा को भारी पड़ा।
इस निष्क्रियता के बावजूद भाजपा ने चुनाव में महत्वपूर्ण सीटें जीतीं, लेकिन संघ का सहयोग न मिलने से पार्टी की उम्मीदों पर पानी फिर गया। भाजपा और आरएसएस के बीच का यह दूरी भविष्य के चुनावों में भी पार्टी की सफलता पर असर डाल सकती है।
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