सही आदर्श चुने मुस्लिम समाज:  रामिश सिद्दीकी

सही आदर्श चुने मुस्लिम समाज:  रामिश सिद्दीकी

Mar 31, 2025 - 08:56
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सही आदर्श चुने मुस्लिम समाज:  रामिश सिद्दीकी

न सिर्फ मुस्लिम समाज, बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज को दारा शिकोह जैसे विचारशील व्यक्तियों से प्रेरणा लेनी चाहिए

प्रत्येक समाज को आगे बढ़ने के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। वास्तव में वैचारिक विकास के बाद ही उस समाज का विकास संभव होता है। औरंगजेब पर चर्चा आज फिर यही सवाल खड़ा कर रही है कि क्या मुस्लिम समाज में रोल माडल की कोई कमी रही, जो आज भी कुछ लोगों को औरंगजेब को चुनना पड़ता है? तो इसका उत्तर मिलेगा नहीं, मुस्लिम समाज में अनेक रोल माडल हैं, बल्कि स्वयं मुगल सल्तनत में भी रोल माडल थे। जैसे औरंगजेब के बड़े भाई एवं मुगल युवराज दारा शिकोह। चौंकाने वाली बात यह है कि आज भी हमारे यहां मुस्लिम समाज के अनेक लोग शाहजहां के इस आध्यात्मिक बेटे से परिचित नहीं हैं। दारा को पेश्वर्य और जंगी माहौल, दोनों ही विरासत में मिले थे। इसी के साथ उन्हें मिली थी अकबर और जहांगीर द्वारा स्थापित एक बहुसांस्कृतिक विरासत। दारा ने भारतीय उपमहाद्वीप के बौद्धिक और सांस्कृतिक तानेबाने में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त किया है। यद्यपि अक्सर उन्हें मुख्यधारा के इतिहासकारों ने अपने शोध के फुटनोट में धकेल दिया, इसके बावजूद उनकी विरासत एक प्रखर विद्वान और धार्मिक बहुलतावाद के प्रबल समर्थक के रूप में जानी जाती है। ऐसे समय में जब युद्ध और युद्ध के मैदान में प्रबलता सबसे बड़ा गुण माना जाता था, तब दारा ने धार्मिक विचारों की आजादी को बड़ी चीज समझा था।

जहां एक तरफ दारा के भाई शाही सत्ता को कब्जाने और उसका विस्तार करने की रणनीतिक अनिवार्यताओं पर ध्यान केंद्रित करते थे, तो दारा बौद्धिक और आध्यात्मिक खोज में गहरी रुचि रखते थे। विभिन्न धर्मों को समझने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें प्रमुख संस्कृत ग्रंथों, विशेष रूप से उपनिषदों का फारसी में अनुवाद करने के विशाल कार्य को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। दिल्ली के लाल किले से लेकर वाराणसी के गंगा तट तक दारा ने अपना अधिकतम समय भारतीय अध्यात्म को समझने में लगाया। दारा शिकोह का आध्यात्मिक जगत में सबसे महत्वपूर्ण योगदान हिंदू धर्म और इस्लाम के बीच सेतु बनाने का प्रयास था। उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन किया और 1657 में उपनिषदों का फारसी में अनुवाद

 

 

किया, जिसे 'सिर्र-ए-अकबर' (महान रहस्य) नाम दिया गया। इस कार्य के माध्यम से उन्होंने हिंदू दार्शनिक चिंतन को फारसी और इस्लामी जगत तक पहुंचाया, जिससे बाद में यूरोपीय विद्वानों, जैसे कि शोपेनहावर को भी प्रेरणा मिली।

दारा मुगल सम्राट शाहजहां के सबसे बड़े बेटे और सूफी मत के अनुयायी थे। वह सूफियों के कादिरी सिलसिले से जुड़े। जुड़े हुए थे। उन्होंने खुद को इस्लाम तथा हिंदू धर्म के बीच आध्यात्मिक समानताओं को खोजने में पूर्णतः समर्पित कर दिया था। उनका मानना था कि उपनिषद एक गूढ़ ज्ञान छिपाए हुए हैं, जो इस्लाम की सूफी परंपरा (तसव्वुफ) से मेल खाते हैं। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें 'मज्मा-उल-बहरैन' (दो समुद्रों का संगम) प्रमुख है, जिसमें सूफी मत और वेदांत के बीच समानताओं का विश्लेषण किया गया है। उन्होंने यह काम धार्मिक विद्वानों से संवाद, अपने आध्यात्मिक अनुभवों और धार्मिक सहिष्णुता की भावना के आधार पर किया। हिंदू पंडितों की सहायता से किया गया यह प्रयास केवल एक भाषाई अभ्यास नहीं था, बल्कि हिंदू और इस्लामिक परंपराओं के बीच बौद्धिक और आध्यात्मिक विभाजन को पाटने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भी था। दारा शिकोह विभिन्न धार्मिक समुदायों को एक मंच पर लाने और संवाद को बढ़ावा देने में विश्वास रखते थे। उनके लिए धर्म केवल आस्था का विषय नहीं था, बल्कि एक ऐसा माध्यम था जिससे समाज में समरसता लाई जा सकती थी।

दारा के जीवन का सबसे दुखद मौड़ तब आया, जब शाहजहां के बीमार पड़ने के बाद मुगल सल्तनत में उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष छिड़ा। उस संघर्ष में उनका सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी उनका छोटा भाई औरंगजेब था। यह केवल दो भाइयों के बीच सत्ता की लड़ाई नहीं थी, बल्कि दो अलग-अलग वैचारिक दृष्टिकोणों का टकराव भी था। दारा समावेशिता, धार्मिक सहिष्णुता और बौद्धिक स्वतंत्रता के प्रतीक थे, जबकि औरंगजेब एक अधिक रूढ़िवादी और केंद्रीकृत शासन प्रणाली की और बढ़ रहा था। 1659 में औरंगजेब की जीत और दारा की हत्या मुगल इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई। उस घटना ने न केवल मुगल साम्राज्य को एक संकीर्ण शासन की और मोड़ा, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के भविष्य को भी प्रभावित किया। कई इतिहासकार इस बात को मानते हैं कि यदि दारा शिकोह सत्ता में आते, तो संभवतः मुगल शासन धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समावेशिता के नए आयाम छूता। दारा का सोच एक ऐसे समाज की ओर इशारा करता है जहां धर्म और दर्शन संकीर्ण दायरों में बंधने के बजाय आपसी संवाद और समझदारी को बढ़ावा दें। भारतीय समाज में पंथनिरपेक्षता, राष्ट्रीय पहचान और सांस्कृतिक नीतियों पर जारी बहस के बीच दारा शिकोह की विचारधारा और योगदान को फिर से समझने की आवश्यकता है।

आज न सिर्फ भारतीय मुस्लिम समाज, बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज को दारा जैसे विचारशील व्यक्तियों से प्रेरणा लेनी चाहिए। एक सही रोल माडल ही समाज को बेहतर भविष्य की और अग्रसर कर सकता है।

(लेखक इस्लामिक मामलों के जानकार हैं)

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,