सांख्य दर्शन - सृष्टि-उत्पति की वैज्ञानिक विवेचना का आधारभूत शास्त्र
'संख्या' का शाब्दिक अर्थ होता है - सम्यक् ज्ञान। इस दर्शन का मूल, सम्यक् ज्ञान के आधार पर प्रकृति-पुरुष का विवेक करना और फिर उसके आधार पर परमतत्त्व का बोध प्राप्त करना है,
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प्राचीन भारतीय षड्दर्शनों में सांख्यदर्शन का अतिविशिष्ट स्थान है। महर्षि कपिल इसके प्रणेता है और कपिल मुनिकृत सांख्यसूत्र इसका आदि ग्रन्थ है।
'संख्या' का शाब्दिक अर्थ होता है - सम्यक् ज्ञान। इस दर्शन का मूल, सम्यक् ज्ञान के आधार पर प्रकृति-पुरुष का विवेक करना और फिर उसके आधार पर परमतत्त्व का बोध प्राप्त करना है, इसीलिए इसे सांख्य दर्शन कहा जाता है।
प्रकृति और पुरुष इन दो तत्त्वों के साथ महत्, तत्त्व, अहंकार, पंच तन्मात्राएं, पंच महाभूत, पंच ज्ञानेन्द्रियां, पंच कर्मेन्द्रियां, और मन ये कुल 25 तत्त्व सांख्यसम्मत हैं। कार्य-कारण सिद्धान्त सांख्य का प्रधान पक्ष है।
प्राचीन भारतीय मनीषा पर सांख्य दर्शन का बड़ा प्रभाव दिखता है। महाभारत के कई स्थलों पर सांख्य विचारों का बड़ा सुन्दर विवेचन किया गया है।
महर्षि आसुरि, पंचशिखाचार्य, ईश्वरकृष्ण आदि इस दर्शन परम्परा के प्रमुख आचार्य हैं।
*मेरी संस्कृति…मेरा देश…मेरा अभिमान *
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