भगवान गौतम बुद्ध के अवतरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
महात्मा बुद्ध के पिता एक शक्तिशाली राजा थे और उनका लालन पालन वैभव सम्पन्न वातावरण में किया गया। तत्कालीन समय में भारत में गणतंत्रीय प्रणाली थी और उनके पिता को शाक्य गणराज्य के प्रमुख के रूप में चयनित किया गया था।
महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य अपनी नियति का मध्यस्थ है किसी ईश्वर का नहीं। यदि वह सद्कर्म करेगा तो उच्चतर जीवन में तब तक पुनर्जन्म लेगा जब तक कि उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती। इसके विपरीत बुरे कर्म उसे उसके मोक्ष से भी दूर कर देंगे और वह निरंतर निम्न स्तरीय जीवन में जन्म लेता रहेगा।
महात्मा बुद्ध के विषय में परम्परा से माना जाता है कि वे वृद्ध, बीमार और मृत व्यक्तियों को देखकर घोर निराशा में डूब गये थे। बाद में एक संन्यासी को देखकर वे विरक्त हो गये और अपनी पत्नी, पुत्र और वैभव सम्पन्न जीवन का परित्याग कर मुक्ति की कामना से घर से निकल गये।
बौद्ध मंदिर किसी भी वर्ग या जाति भेद के बिना अपराधी, रोगी और दासों के अतिरिक्त पंद्रह वर्ष से अधिक उम्र के सभी व्यक्तियों, पुरुषों या महिलाओं सब के लिए खुले थे।
बौद्ध मठों के स्थानीय निकाय लोकतांत्रिक सिद्धांतों द्वारा शासित थे, किसी क्षेत्र में रहने वाले सभी भिक्षुओं की आम सभा सर्वोच्च प्राधिकारी का गठन करती थी और वे मतदान से मामलों का निर्णय करते थे।
महात्मा बुद्ध ने कहा है कि, एक मनुष्य को दोनों ही प्रकार की अति से बचना चाहिए, विलासितापूर्ण जीवन से भी और अत्यंत तपस्वी जीवन से भी। उन्होंने मध्य मार्ग का उपदेश दिया। नैतिक गुणों यथा सत्य, पवित्रता, दानशीलता, वासनाओं पर नियंत्रण के साथ-साथ बुद्ध ने प्रेम, करुणा, अहिंसा और समभाव पर बल दिया
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