वर्तमान परिपेक्ष में अखंड भारत एक मीमांसा कृष्ण कुमार माहेश्वरी

Akhand Bharat in the present context an epistemology Krishna Kumar Maheshwari, वर्तमान परिपेक्ष में अखंड भारत एक मीमांसा कृष्ण कुमार माहेश्वरी

Jan 23, 2025 - 13:31
Jan 24, 2025 - 06:00
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वर्तमान परिपेक्ष में अखंड भारत एक मीमांसा कृष्ण कुमार माहेश्वरी

 वर्तमान परिपेक्ष में अखंड भारत एक मीमांसा कृष्ण कुमार माहेश्वरी 

Akhand Bharat in the present context an epistemology Krishna Kumar Maheshwari,


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वर्तमान परिपेक्ष में अखंड भारत-एक मीमांसा

पूर्व काल में अखंड भारत की परिकल्पना एक सोने की चिड़िया के रूप में भी की जाती थी। सारी दुनिया को आकर्षित कर अपने पास बुलाने की सकारात्मकता के साथ शक्तिशाली वजूद भी था। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, अशोक महान जैसे राजाओं के साथ चाणक्य जैसे ज्ञानी और कूटनीतिज्ञ की विश्व भर में धाक थी। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर ऊर्जा और साथ में कुशल नेतृत्व ने व्यापारिक रुझान वाली विदेशी शक्तियों ने रास्ता ढूंढा।
-जैसे-जैसे राष्ट्र के शक्तिशाली स्तंभों के दिन पूरे हुए पश्चिमी शक्तियां लालाइत हुई। मुगल और ईसाई परिवेश को मौका मिल गया, खासकर जब भारत वर्ष के रजवाड़ों में आपसी ईर्ष्या से राष्ट्र की शक्ति का ह्रास होने लगा।


-खैर, अब इतिहास के पन्ने पलटने की उपयोगिता रह नहीं गई। अब हम तथाकथित राजनीतिक स्वतंत्रता के समय से आगे बढ़ते हैं! 
-संयोग की बात है 1947 से जिन तत्वों के हाथ में शासन की बागडोर आई वे भी अंतर्मन से पश्चिमी रूख के समर्थन में थे। शुद्धता के साथ राष्ट्रवादी भावना से ओत-प्रोत तत्वों को वह स्थान नहीं मिला जो स्वतंत्र राष्ट्र की उन्नति में चार चांद लगा सकते। 


-आजादी के 75 वर्ष के बाद अब लगने लगा है कि राष्ट्रीय स्वाभिमान का 'स्व' मूर्त रूप ले रहा है। 
-पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रवाद को समर्पित शासकीय व्यवस्था के परिणाम स्वरूप भारत एक वैश्विक शक्ति बन रहा है। इस प्रगति से अनुमान लगाया जाता है कि भारतवर्ष कुछ एक वर्षों में विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था का रूप ले लेगा। 


राष्ट्रवादी सोच के उत्साही एवं पुरुषार्थ तत्वों ने अखंड भारत का सपना लेना शुरू कर दिया है
-सुनहरी सपना संजोना अच्छी बात है किंतु वर्तमान परिपेक्ष में वे फिट भी बैठे । जो पूर्व काल में अखंड भारत था वह अनेक खुद मुख्तार देशों में बदल गया है। अतः राजनीतिक रूप से उन सब का एक शासन व्यवस्था में आना तो संभव नहीं है किंतु प्रयास किया जा सकता है ताकि भूतकाल की गरिमामई शक्ति का सभी देश हिस्सा बने। 
-यहां आवश्यकता है कूटनीतिज्ञ प्रयासों की जो सभी देशों की स्वतंत्र राजनीतिक सत्ता को स्वीकारें और उनको एक महान शक्ति का हिस्सा बना कर उनके रुतबे को और बढ़ा दें। 
-इस स्थिति में भाव प्रधान एक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को सब की सांझी धरोहर स्वीकार करने और कराने के लिए प्रयास किए जाएं। इन सभी देशों के बीच एक यूनियन बनानी चाहिए जिसमें सब की आंतरिक स्वतंत्रता बनी रहे।विदेशी मामलों और सीमा सुरक्षा के विषयों पर सामूहिक निर्णय उचित होगा। साथ ही बारी-बारी से एक समयावधि के लिए प्रमुख की भूमिका तय की जानी चाहिए

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