2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा गठबंधन का बिखराव

पंजाब में लोकसभा की कुल 13 सीटों में वर्तमान में कांग्रेस के पास 8 सीटें हैं और 2024 के चुनाव में भी वह यही सीटें चाह रही थी लेकिन विधानसभा चुनाव में आप पार्टी की सरकार बनने के बाद बदले हालातों में आप पार्टी कांग्रेस को 5 से अधिक सीटें देने को तैयार

Feb 1, 2024 - 20:57
Feb 1, 2024 - 21:18
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2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा गठबंधन का  बिखराव

जैसी  सी कि शुरू से से ही आशंका व्यक्त की जा रही थी, इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) अर्थात इंडी गठबंधन अपने शैशव काल में ही बिखराव के


मुहाने पर आ खड़ा हुआ दिखने लगा है। ऐसा माना जा रहा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा गठबंधन के बिखराव की बड़ी वजह बनेगा और ऐसा ही होता नजर आ रहा है। बिखराव की शुरुआत पश्चिम बंगाल से हुई है, जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गठबंधन के महत्वपूर्ण घटक दल तृणमूल कांग्रेस के अकेले चुनाव की रणभूमि में उतरने की घोषणा कर दी है। ममता के तुरंत बाद ही पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी लोकसभा चुनाव में आप पार्टी के अकेले मैदान में उतरने की घोषणा कर दी है। ममता बनर्जी ने अपनी नाराजगी का ठीकरा कांग्रेस के माथे फोड़ा है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में 2 सीट देने का कांग्रेस को प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। ममता बनर्जी ने कहा कि उनके अन्य प्रस्ताव भी ठुकरा दिए गए। उन्होंने इस बात के लिए भी नाराजगी बताई कि कांग्रेस ने गठबंधन धर्म का निर्वाहन कर न्याय यात्रा की पूर्व सूचना उन्हें नही दी और साथ ही यह भी कि कांग्रेस उनकी अपेक्षा वामदलों की ओर अपना झुकाव अधिक दिखा रही है। यहां कांग्रेस और वाम दलों के बीच भी सीटों पर सहमति होना बाकी है। दोनों पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा अभी उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी होना है, जहां वाम दल कांग्रेस को अधिक महत्व देने के मूड में नहीं दिखते हैं।


पंजाब में लोकसभा की कुल 13 सीटों में वर्तमान में कांग्रेस के पास 8 सीटें हैं और 2024 के चुनाव में भी वह यही सीटें चाह रही थी लेकिन विधानसभा चुनाव में आप पार्टी की सरकार बनने के बाद बदले हालातों में आप पार्टी कांग्रेस को 5 से अधिक सीटें देने को तैयार नहीं थी। दूसरी ओर आप गुजरात व हरियाणा में कग्रिस से कुछ सीटें मांग रही थी, जो कांग्रेस देना नहीं चाहती थी। गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं, वहीं हरियाणा में 10 सीटें हैं। दोनों ही राज्यों की सभी सीटों पर भाजपा का परचम लहरा रहा है। अब पंजाब में आप के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद यह तय है कि दोनों पार्टियां चुनाव में
उक्त सभी राज्यों में एक-दूसरे के सामने खम ठोंकती नजर आएंगी।


उधर उत्तरप्रदेश में मायावती, बहुजन समाज पार्टी के इंडिया गठबंधन में शामिल न होने के साथ राज्य में अकेले चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर चुकी हैं। अब वहां कांग्रेस, समाजवादी और राष्ट्रीय लोकदल (जयंत चौधरी गुट) पार्टियां इंडी गठबंधन में शामिल हैं और तीनों पार्टियों में सीटों के बंटवारे की बात तय होना है लेकिन इसमें अब तक कोई प्रगति नहीं हो पाई है। अखिलेश यादव रालोद को 7 सीटें देने को तैयार हो गए हैं लेकिन कांग्रेस को लेकर उनका रुख नरम नहीं है। कांग्रेस यहां कम से कम 20 फीसदी सीटें मांग रही है जबकि अखिलेश यादव इतनी सीटें देने पर तैयार नहीं हो रहे हैं। समझौते का कोई फार्मूला यदि उत्तरप्रदेश में बनता है तो मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस को कुछ हद तक झुकना होगा, यह निश्चित है। लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस का किसी भी पार्टी के साथ अपनी सीटें बांटना असंभव सा लगता है। छत्तीसगढ़ में जरूर कांग्रेस अकेले मैदान में है और उसका सीधा मुकाबला भाजपा से है, जहां लोकसभा की कुल 11 सीटों में से 2 सीटें उसके पास हैं। 9 सीटों पर भाजपा का कब्जा है।


उत्तराखंड की लोकसभा की 5 सीटों के बंटवारे को लेकर भी सपा और कांग्रेस में कोई सहमति अब तक नहीं बन पाई है। सपा यहां 2 सीटें हरिद्वार और नैनीताल मांग रही है। यहां हरिद्वार सीट को लेकर पेंच फंसा है। यह सीट कांग्रेस सपा को देना नहीं चाह रही है। 48 सीटों वाले राज्य महाराष्ट्र में भी वहां मुख्य विपक्षी गठबंधन और इंडी गठबंधन का हिस्सा महाविकास अघाड़ी' के घटक दलों में सीटों का बंटवारा अब तक होता नहीं दिख रहा है। महाराष्ट्र में कांग्रेस सर्वाधिक 23 सीटों पर लड़ना चाहती है और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी भी) भी इतनी ही सीटें चाहती है। ऐसे में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस और समाजवादी सहित सीपीआईएम जैसी पार्टियों के लिए 2 सीटें ही शेष बचती हैं। अतः इस समीकरण के लिए शरद पवार व अन्य पार्टियों के नेता मान जाएंगे, ऐसा मानना संभव नहीं लगता। बिहार में तो खेला ही हो गया है। इंडी गठबंधन का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ और संस्थापकों में से एक नीतीश कुमार राजद का साथ छोड़ एक बार फिर भाजपा नीत राजग के साथ हो गए हैं। इससे बिहार की 40 सीटों के सभी समीकरण ही बदल गए हैं जो फिलहाल इंडी गठबंधन के पक्ष में जाते तो नहीं दिखते। झारखंड में कुल 14 सीटों में पिछले चुनाव में कांग्रेस 9 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और झामुमो 5 सीटों पर, लेकिन अब वहां यह समीकरण बनना संभव होता नही दिखता। वहां राष्ट्रीय जनता दल सहित वाम दल भी सीटों की हिस्सेदारी मांग रहे हैं। कांग्रेस का ज्यादा फोकस दक्षिण भारत पर है, जो भाजपा की कमजोर कड़ी मानी जाती है। हालाकि कांग्रेस भी यहां कोई खास मजबूत स्थिति में नहीं है।

यह बात अवश्य है कि कांग्रेस विगत विधानसभा चुनाव में दक्षिण का कर्नाटक राज्य भाजपा से छीनने में सफल रही है और तेलंगाना में भी सरकार बनाने में सफल रही है। लेकिन तथ्य यह भी है कि कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में से भाजपा विगत लोकसभा चुनाव में 24 सीटें जीतने में सफल रही थी। तेलंगाना में कुल 17 में से भाजपा के पास 4 सीटें हैं। हाल ही में संपन्न तेलंगाना विधानसभा चुनाव में भी वह 8 सीटें जीतने में सफल रही है। यहां पिछले चुनाव में भाजपा को केवल 1 सीट पर विजय मिली थी। आंध्रप्रदेश की सत्तासीन वायएसआर कांग्रेस पार्टी और उड़ीसा की सत्तासीन पार्टी बीजू जनता दल पहले ही दोनों गठबंधन में शामिल न होते हुए अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। कर्नाटक व तेलंगाना की तरह ही हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार है लेकिन यहां लोकसभा की सभी 4 सीटें विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा जीतने में सफल रही थी।

 केरल में पंजाब व दिल्ली की तरह ही कांग्रेस को इंडी गठबंधन की सहयोगी पार्टी एलडीएफ से मुकाबला करना होगा। उत्तर पूर्व के राज्यों में भी कांग्रेस अपने सहयोगियों के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर एक कदम तक आगे नहीं बढ़ पाई है। दूसरी ओर भाजपा हाल ही में संपन्न तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व जीत के बाद बेहद उत्साहित नजर आ रही है। यहां गठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर कोई मतभेद या टकराव अब तक सामने नहीं आया है। ऐसे में 28 दलों वाला इंडी गठबंधन यदि चुनाव तक बना भी रहा तो चुनाव में 38 दलों वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सामने कहां तक टिक पाएगा, यह समझना और देखना होगा।

योगेंद्र माथुर
(लेखक वरिष्ट स्तंभकार हैं)

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