भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सर्वे रिपोर्ट मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद

मंदिर का चबूतरा और आलीशान सफेद पत्थर के स्तंभ स्पष्ट दिखाई देते थे। इसी परिसर में एक कुआं है, जिसमें बताते हैं, वह शिवलिंग है, जो तोड़े गए मंदिर में स्थापित था।

Feb 1, 2024 - 20:52
Feb 1, 2024 - 21:18
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सर्वे रिपोर्ट मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सर्वे रिपोर्ट मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सर्वे रिपोर्ट ने प्रमाणित कर दिया कि वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में स्थित एक हजार साल से भी ज्यादा पुराने विशाल हिदू मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। यहां काशी विश्वनाथ का बड़ा हिंदू मंदिर था। इसके अवशेषों के प्रतीक चिन्ह सर्वेक्षण में मिले हैं। इसी संरचना के ऊपर मस्जिद बना दी गई थी। मस्जिद के निर्माण में भी मंदिर के पत्थरों का प्रयोग किया गया। एक स्थान पर महामुक्ति मंडप लिखा होने के साथ हनुमान और गणेश की खंडित मूर्तियां मिली हैं। ये खुलासे एएसआई की रिपोर्ट से हुए हैं।


बीते साल वाराणसी जिला अदालत के आदेश पर तीन माह से भी अधिक समय तक ज्ञानवापी परिसर का आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण के माध्यम से कराए सर्वेक्षण के बाद यह तथ्यात्मक रिपोर्ट सार्वजनिक की गई है। रिपोर्ट 839 पन्नों की है। यह रिपोर्ट लगभग अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर जैसी ही है। राम मंदिर के सर्वेक्षण में पुरातत्वविद् केके मोहम्मद भी शामिल थे। इस सर्वे से रूबरू होने के बाद मोहम्मद ने कहा था कि अयोध्या, वाराणसी और मथुरा जैसे मंदिर स्थलों को हिंदुओं को स्वेच्छा से मुसलमान सौंप दें, क्योंकि ये स्थल हिंदुओं के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितने मुसलमानों के लिए मक्का और मदीना। दरअसल ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण कराने का निर्णय वाराणसी के न्यायालय द्वारा ले लिए जाने के बाद ही यह साफ हो गया था कि ज्ञानवापी मस्जिद में मंदिर होने के पुख्ता सबूत मिलेंगे। इसीलिए मुस्लिम पक्ष इस कोशिश में था कि सर्वे होने ही न पाए। इस उद्देश्य से मुस्लिम पक्ष ने एक याचिका भी अदालत में दायर की थी, लेकिन यह याचिका खारिज कर दी थी।


दरअसल विवादित स्थल विश्वनाथ मंदिर का ही एक भाग है, इसलिए एक अंश की धार्मिक स्थिति का निर्धारण नहीं किया जा सकता, बल्कि ज्ञानवापी परिसर का भौतिक साक्ष्य लिया जाना जरूरी है। जिसे पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा जांच कराकर स्पष्ट किया जाए कि इस मस्जिद के नीचे और इसकी दीवारों के अंदरूनी हिस्सों में कोई मंदिर था अथवा नहीं? तथ्यों के आधार पर प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्त अवशेष पर मस्जिद की दीवारों के अंदरूनी और बाहरी तौर पर विद्यमान बताए गए हैं। मंदिर की दीवारों और दरवाजों को चिनकर मस्जिद का वर्तमान ढांचा खड़ा किया गया है। पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा समूचे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे, जिनमें से कुछ आज भी मौजूद हैं। इन साक्ष्यों के संदर्भ में साक्ष्य और इतिहास पुस्तकें भी प्रस्तुत की गई थीं।

बीती सदी के अंत तक जो भी लोग विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने गए हैं, उन्हें स्पष्ट रूप से दिखाई देता था कि एक टूटे प्राचीन मंदिर के ढांचे पर कथित मस्जिद बनाई जा रही है। मंदिर का चबूतरा और आलीशान सफेद पत्थर के स्तंभ स्पष्ट दिखाई देते थे। इसी परिसर में एक कुआं है, जिसमें बताते हैं, वह शिवलिंग है, जो तोड़े गए मंदिर में स्थापित था। इस आशय के यहां बोर्ड भी लगे हैं। कूप के ऊपर लोहे का जाल डाल दिया है। इस मामले में भाजपा प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम-1991 की वैद्यता को चुनौती भी दी गई थी। 1991 में केंद्र सरकार द्वारा सभी धर्मस्थलों से जुड़े विवादों में यथास्थिति बनाए रखने की दृष्टि से यह कानून बनाया था। 

अयोध्या के राम जन्मस्थल-बाबरी मस्जिद विवाद को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया था। इस कानून के मुताबिक 1947 से पहले जो धर्मस्थल जिस स्थिति में थे, उसी स्थिति में रहेंगे, यह बाध्यकारी शर्त जुड़ी है। इसी बूते वाराणसी की अंजुमन इंतजामिया का दावा था कि ज्ञानवापी मस्जिद को इसी कानून के तहत सुरक्षा मिलनी चाहिए। मसलन अंजुमन इंतजामिया भली भांति जानता था कि मंदिर की बुनियाद पर मस्जिद टिकी है। अब सर्वे रिपोर्ट ने इस
सच्चाई का खुलासा भी कर दिया है।

प्रमोद भार्गव

(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं)

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