किन्नौर में किसानों को मिले 11,960 सेब के पौधे:20 लाख खर्च, 18 पंचायतों में 900 किसानों को मिलेगा फायदा

किन्नौर में जनजातीय उपयोजना के तहत केंद्र 18 पंचायतों में 23 विभिन्न प्रजातियों के 11,960 सेब के पौधे वितरित किए गए। इस योजना की कुल लागत 20 लाख रुपए है। करीब 900 किसानों को इस योजना का फायदा मिलेगा। प्रत्येक किसान को 13 पौधे दिए जाएंगे। केंद्र ने रूपी से सुमरा तक किसानों को जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं। किन्नौर के सबसे दूरस्थ गांवों में से एक, सुमरा पंचायत में सेब के छत्र प्रबंधन पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस मौके पर सुमरा पंचायत की प्रधान सरोज देवी और उपप्रधान छेरिंग ने केवीके अधिकारियों का स्वागत किया। डॉ. अरुण कुमार ने किसानों को वैज्ञानिक बागवानी तकनीक अपनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सही तरीके से कटाई-छंटाई और छत्र प्रबंधन से रोग का जोखिम कम होगा और उत्पादकता बढ़ेगी। इस पहल का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनके क्षेत्र के लिए उपयुक्त सेब की प्रजातियों की पहचान में मदद करना है। इससे किसान अधिक आय कमा सकेंगे। साथ ही वैज्ञानिकों को विभिन्न ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सर्वोत्तम प्रजातियों का पता लगाने में मदद मिलेगी।

Feb 22, 2025 - 14:06
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किन्नौर में किसानों को मिले 11,960 सेब के पौधे:20 लाख खर्च, 18 पंचायतों में 900 किसानों को मिलेगा फायदा
किन्नौर में जनजातीय उपयोजना के तहत केंद्र 18 पंचायतों में 23 विभिन्न प्रजातियों के 11,960 सेब के पौधे वितरित किए गए। इस योजना की कुल लागत 20 लाख रुपए है। करीब 900 किसानों को इस योजना का फायदा मिलेगा। प्रत्येक किसान को 13 पौधे दिए जाएंगे। केंद्र ने रूपी से सुमरा तक किसानों को जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं। किन्नौर के सबसे दूरस्थ गांवों में से एक, सुमरा पंचायत में सेब के छत्र प्रबंधन पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस मौके पर सुमरा पंचायत की प्रधान सरोज देवी और उपप्रधान छेरिंग ने केवीके अधिकारियों का स्वागत किया। डॉ. अरुण कुमार ने किसानों को वैज्ञानिक बागवानी तकनीक अपनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सही तरीके से कटाई-छंटाई और छत्र प्रबंधन से रोग का जोखिम कम होगा और उत्पादकता बढ़ेगी। इस पहल का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनके क्षेत्र के लिए उपयुक्त सेब की प्रजातियों की पहचान में मदद करना है। इससे किसान अधिक आय कमा सकेंगे। साथ ही वैज्ञानिकों को विभिन्न ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सर्वोत्तम प्रजातियों का पता लगाने में मदद मिलेगी।

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