‘भारत की आत्मा का पुनर्जागरण आवश्यक’

लोकमन्थन रूपी यह परिसंवाद भारत के स्वत्व का बोध कराने वाला है। लोकजीवन दृष्टि व सांस्कृतिक चेतना की परम्परा के बोध का यह विशेष अवसर है। भारत की प्राचीनतम संस्कृति का स्वरूप वैविध्यपूर्ण है। डॉ. आम्बेडकर इस विविधता में सन्निहित एकत्व की चर्चा करते हैं। इस एकत्व की जड़ें सांस्कृतिक चेतना में अत्यन्त गहरी हैं। […]

Dec 3, 2024 - 15:14
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‘भारत की आत्मा का पुनर्जागरण आवश्यक’

लोकमन्थन रूपी यह परिसंवाद भारत के स्वत्व का बोध कराने वाला है। लोकजीवन दृष्टि व सांस्कृतिक चेतना की परम्परा के बोध का यह विशेष अवसर है। भारत की प्राचीनतम संस्कृति का स्वरूप वैविध्यपूर्ण है।

डॉ. आम्बेडकर इस विविधता में सन्निहित एकत्व की चर्चा करते हैं। इस एकत्व की जड़ें सांस्कृतिक चेतना में अत्यन्त गहरी हैं। इसीलिए आम जीवन में भाषा, भूषा व अन्य भिन्नताओं के बावजूद भी यह भारतीयता एक प्रकार से ही अभिव्यक्त होती है।

भारत की इस महान संस्कृति में उपनिषद् व अन्य शास्त्र संवाद व परिचर्चा के विशेष महत्व को स्पष्ट करते हैं। औपनिवेशिक काल में केवल हमारी भूमि पर ही अतिक्रमण नहीं हुआ वरन् हमारे विचार पर भी हमले हुए।

भ्रामक कृत्रिम द्विविभाजनों यथा जनजाति बनाम गैर जनजाति, ग्रामीण बनाम शहरी आदि के द्वारा हमारी एकता को खण्डित करने का प्रयास किया गया। उस परिस्थिति में स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा कि सुषुप्ति की लम्बी रात्रि समाप्त हो गई है अब भारत की आत्मा का पुनर्जागरण आवश्यक है।

यह लोकमंथन लोकसाहित्य, लोकअर्थशास्त्र, लोकपर्यावरण, लोकसुरक्षा व लोकन्याय आदि के संबंध में वैविध्यपूर्ण विचारों का मन्थन है। उन्होंने कहा कि वेद वाक्य संगच्छध्वम् वद्ध्वं के अनुसरण से ही हम भविष्य के हमलों व चुनौतियों का सामना कर पाएंगे।

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