दो भारतीयों से सम्मान छीना राजा चार्ल्स ने, नहीं भाया बांग्लादेश के हिंदुओं की पीड़ा बताना और मोदी का समर्थन

‘लंदन गजट’ में सम्मान वापस लिए जाने संबंधी सूचना प्रकाशित की गई थी। राजा चार्ल्स के इस फैसले के बाद अब दोनों भारतवंशी सम्मान में प्राप्त प्रतीक चिन्ह राजा के बकिंघम पैलेस को वापस कर देंगे। रामी रेंजर तथा अनिल भनोट बकिंघम पैलेस के इस आदेश से आश्चर्यचकित हैं। उन्होंने इसकी भर्त्सना की है। वे […]

Dec 9, 2024 - 10:31
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दो भारतीयों से सम्मान छीना राजा चार्ल्स ने, नहीं भाया बांग्लादेश के हिंदुओं की पीड़ा बताना और मोदी का समर्थन

‘लंदन गजट’ में सम्मान वापस लिए जाने संबंधी सूचना प्रकाशित की गई थी। राजा चार्ल्स के इस फैसले के बाद अब दोनों भारतवंशी सम्मान में प्राप्त प्रतीक चिन्ह राजा के बकिंघम पैलेस को वापस कर देंगे। रामी रेंजर तथा अनिल भनोट बकिंघम पैलेस के इस आदेश से आश्चर्यचकित हैं। उन्होंने इसकी भर्त्सना की है। वे कहते हैं कि यह आदेश एक प्रकार से अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट करता है।


ब्रिटेन से आई एक खबर चिंताजनक है। वहां राजा चार्ल्स ने दो भारतवंशियों से राजकीय सम्मान सिर्फ इसलिए वापस ले लिया क्योंकि उनमें से एक न बांग्लादेश में हिन्दुओं के दमन के विरुद्ध आवाज उठाई थी और दूसरे ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति समर्थन जताया था।

ये दो भारतवंशी हैं ब्रिटेन के भारतीय कंजर्वेटिव सहयोगी रामी रेंजर जो संसद के निचले सदन में बैठते हैं। तो दूसरे हैं अनिल भनोट, जो हिन्दू काउंसिल यूके के प्रबंध न्यासी हैं और पेशे से एक सनदी लेखाकार। राजा चार्ल्स ने संभवत: अपनी भारत विरोधी मानसिकता दर्शाते हुए उन दोनों को दिए सम्मान वापस ले लिए हैं। पता चला है कि रामी रेंजर से सीबीई तथा अनिल भनोट से ओबीई का सम्मान वापस लिया जाएगा।

ये दोनों ही ब्रिटिश भारतीय समुदाय से आते हैं। इनका ‘दोष’ जैसा पहले बताया, मात्र यही था कि उन्होंने बांग्लादेश के पीड़ित हिंदुओं के बारे में आवाज उठाई थी और भारत के प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की थी, उनके लिए समर्थन व्यक्त किया था। दोनों ही ब्रिटेन में भारतीय समुदाय के बहुत सम्मानित सदस्य हैं। रामी रेंजर तथा अनिल भनोट ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि आधुनिक विचारों का सम्मान करने की बात करने वाले ब्रिटेन के राजा उनके साथ इस प्रकार का व्यवहार करेंगे।

मीडिया में आए समाचारों के अनुसार, तीन दिन पहले ‘लंदन गजट’ में सम्मान वापस लिए जाने संबंधी सूचना प्रकाशित की गई थी। राजा चार्ल्स के इस फैसले के बाद अब दोनों भारतवंशी सम्मान में प्राप्त प्रतीक चिन्ह राजा के बकिंघम पैलेस को वापस कर देंगे। रामी रेंजर तथा अनिल भनोट बकिंघम पैलेस के इस आदेश से आश्चर्यचकित हैं। उन्होंने इसकी भर्त्सना की है। वे कहते हैं कि यह आदेश एक प्रकार से अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट करता है।

राजा चार्ल्स

ब्रिटेन में बसे भारतीय समुदाय के काफी रसूखदार और सम्मानित ये दोनों ही भारतवंशी भारत और विशेषकर हिन्दू समुदाय से जुड़े विषयों पर मुखर रहते हैं। रामी को राजा चार्ल्स ने ही कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर यानी सीबीई का सम्मान दिया था और भनोट को ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर यानी ओबीई की उपाधि दी थी। इन दोनों के विषय को एक विशेष समिति ने देखा था। उन्होंने इसने बयानों को उपाधियों को ठेस पहुंचाने वाला मानते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर को अपनी अनुशंसा सौंपी थी जिन्होंने इसे आगे राजा चार्ल्स के पास भिजवाया था।

भनोट को यह ओबीई उपाधि समुदाय में आपसी तालेमल बनाने के लिए दिया गया था। सम्मान वापसी के निर्णय से आहत भनोट का कहना है कि उन्होंने इस साल जनवरी में विशेष समिति के बुलावे पर उसके सामने अपनी स्थिति स्पष्ट की थी। उन्हें तब लगा था कि बात सम्मान वापसी तक नहीं पहुंचेगी, मगर ऐसा हुआ नहीं। भनोट ने साल 2021 में बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पी​ड़न की बात की थी जिसे इस्लामोफोबिक बताते हुए शिकायत की गई थी।

यह शिकायत एक वेबसाइट ने उनके ट्वीट को लेकर चार्टर्ड अकाउंटेंट्स परिषद और धर्मादा आयोग के सामने की थी। लेकिन इप दोनों संस्थाओं ने इसे उनकी अभिव्यक्ति की आजादी बताते हुए आरोप मुक्त किया था। लेकिन बाद में किसी ने सरकार की उक्त विशेष समिति के सामने आरोप दर्ज कराया। भनोट नहीं मानते कि उन्होंने अपने ट्वीट में ऐसा कुछ लिखा था जिसे इस्लामोफोबिक कहा जा सकता था।

अनिल भनोट नाराजगी भरे स्वर में कहते हैं कि 2021 में बांग्लादेश में हमारे मंदिरों को तोड़ा गया था, हिंदुओं पर हमले हो रहे थे। लेकिन कोई मीडिया यह सब नहीं बता रहा था। तो बांग्लादेश के हिन्दुओं के ​प्रति आहत होते हुए उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ कहने का मन बनाया और ट्वीट किया। उसमें उन्होंने बातचीत और समधान के कदम उठाने की बात की। उनके अनुसार, इसमें कुछ गलत नहीं था। सम्मान को ठेस पहुंचाने जैसी कोई बात नहीं थी। वे सवाल करते हैं कि अब इंग्लैंड में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं रही?

इसी प्रकार कंजर्वेटिव पार्टी से जुड़े ब्रिटेन की सन मार्क लिमिटेड कंपनी के संस्थापक लॉर्ड रामी रेंजर भी राजा चार्ल्स के फैसले से हैरान हैं और इसे ‘अन्यायपूर्ण’ बताते हैं। रामी रेंजर यह उपाधि दिसंबर 2015 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की तरफ से ब्रिटेन के कारोबार तथा एशियाई समुदाय के प्रति उनकी सेवाओं के लिए दी गई थी। विशेष समिति की पड़ताल में पाया गया कि रामी रेंजर ‘धमका’ रहे थे जो संसद की आचार संहिता के दायरे से बाहर की बात थी।

रामी रेंजर को लार्ड की उपाधि प्राप्त है। उनकी ओर से बताया ​गया है कि रामी इस फैसले के विरुद्ध अपील कर सकते हैंं। लॉर्ड रामी रेंजर नहीं मानते कि उन्होंने कोई अपराध किया है अथवा किसी कानून का उल्लंघन किया है। रामी कानून में प्राप्त उपायों के रास्ते अपील दायर कर सकते हैं।

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