‘कम से कम तीन बच्चे होने चाहिए’ : प्रजनन दर में गिरावट पर संघ सरसंघचालक जी ने व्यक्त की चिंता

देश में जनगणना और जाति आधारित गणना को लेकर चल रही बहस के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का बयान आया है। उन्होंने घटती जनसंख्या दर पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी समाज के अस्तित्व के लिए यह आवश्यक है कि उसकी जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 […]

Dec 1, 2024 - 16:19
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‘कम से कम तीन बच्चे होने चाहिए’ : प्रजनन दर में गिरावट पर संघ सरसंघचालक जी ने व्यक्त की चिंता

देश में जनगणना और जाति आधारित गणना को लेकर चल रही बहस के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का बयान आया है। उन्होंने घटती जनसंख्या दर पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी समाज के अस्तित्व के लिए यह आवश्यक है कि उसकी जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से कम न हो।

नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि जनसंख्या विज्ञान के अनुसार, समाज के अस्तित्व के लिए कम से कम तीन बच्चों की आवश्यकता है। उनका यह बयान जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय असंतुलन को लेकर हो रही चर्चाओं में एक नई दिशा देता है।

क्यों जरूरी हैं तीन बच्चे.?

नागपुर में दिए गए अपने उद्बोधन में सरसंघचालक जी ने कहा-

“आधुनिक जनसंख्या शास्त्र कहता है कि जब किसी समाज की जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से कम हो जाती है, तो वह समाज धीरे-धीरे विलुप्त हो जाता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया है। समाज को कोई संकट नहीं आएगा, फिर भी वह समाप्त हो जाएगा। यही कारण है कि कई भाषाएं और समाज इतिहास में समाप्त हो गए।”

सरसंघचालक जी ने कहा कि देश की 1998 और 2002 की जनसंख्या नीतियों में यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी समाज की जनसंख्या दर 2.1 से नीचे नहीं जानी चाहिए। उन्होंने इसे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा-

“अब पाॅइंट वन इंसान जन्म नहीं ले सकता, इसलिए हमें कम से कम तीन बच्चों की आवश्यकता है। यही जनसंख्या विज्ञान कहता है।”

घटती प्रजनन दर है चिंता का कारण

भारत की जनसंख्या वृद्धि दर पिछले कुछ वर्षों में लगातार घट रही है। इसके मुख्य कारणों में शहरीकरण, आर्थिक दबाव, और शिक्षा का प्रभाव शामिल हैं। सरसंघचालक जी ने इसे समाज के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा बताया और कहा कि अगर यह दर और घटती है, तो इससे न केवल जनसांख्यिकीय असंतुलन पैदा होगा, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक अस्तित्व भी खतरे में आ जाएगा।

भारत की जनसंख्या नीति और वास्तविकता

सरसंघचालक जी ने भारत की जनसंख्या नीति का उल्लेख करते हुए कहा कि 1998 और 2002 की नीतियों में यह सुनिश्चित करने की बात कही गई थी कि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से कम न हो।

  • क्या कहता है जनसंख्या विज्ञान?
    जनसंख्या विज्ञान के अनुसार, 2.1 की वृद्धि दर किसी समाज को स्थिर बनाए रखने के लिए आवश्यक है। अगर यह दर गिरती है, तो अगली पीढ़ी की संख्या घटने लगती है।
  • घटती दर का प्रभाव
    यदि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से कम रहती है, तो समाज में श्रम शक्ति की कमी, वृद्ध लोगों की संख्या में वृद्धि, और सांस्कृतिक ह्रास जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

सरसंघचालक जी का संदेश क्यों है महत्वपूर्ण.?

सरसंघचालक जी का यह बयान केवल जनसंख्या वृद्धि पर जोर नहीं देता, बल्कि यह भी संकेत देता है कि समाज को अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को बचाए रखने के लिए सतर्क रहना होगा।

  1. सांस्कृतिक संरक्षण
    किसी भी समाज का अस्तित्व उसकी जनसंख्या के साथ जुड़ा होता है। यदि जनसंख्या घटती है, तो संस्कृति और परंपराएं धीरे-धीरे समाप्त हो सकती हैं।
  2. जनसांख्यिकीय संतुलन
    सरसंघचालक जी ने अप्रत्यक्ष रूप से जनसांख्यिकीय असंतुलन की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा कि सभी समाजों के लिए यह जरूरी है कि उनकी जनसंख्या स्थिर रहे।
  3. भविष्य की तैयारियां
    उन्होंने यह भी संकेत दिया कि सरकार और समाज को मिलकर ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो परिवारों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित करें।

क्या कहती है वैश्विक स्थिति.?

सरसंघचालक जी का बयान केवल भारत तक सीमित नहीं है। विश्वभर में कई विकसित देशों में घटती प्रजनन दर एक बड़ी समस्या बन गई है।

उदाहरण के लिए-

  • जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में प्रजनन दर 1.5 से भी कम है, जिसके चलते उनकी जनसंख्या तेजी से घट रही है।
  • यूरोप के कई देश भी इस समस्या से जूझ रहे हैं और परिवारों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहन दे रहे हैं।

क्या हैं समाधान?

  • जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार
    देश की जनसंख्या नीति को वर्तमान स्थिति के अनुसार संशोधित करने की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक जागरूकता
    परिवारों को यह समझाने की जरूरत है कि अधिक बच्चे न केवल सामाजिक स्थिरता के लिए जरूरी हैं, बल्कि यह सांस्कृतिक संरक्षण के लिए भी आवश्यक है।
  • आर्थिक और सामाजिक प्रोत्साहन
    सरकार को बड़े परिवारों को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक लाभ और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं लानी चाहिए।

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का बयान देश में घटती जनसंख्या वृद्धि दर के प्रति एक गंभीर चेतावनी है। यह न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत के आर्थिक और जनसांख्यिकीय संतुलन के लिए भी आवश्यक है। अब समय आ गया है कि इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर संवाद शुरू हो और जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार किया जाए।

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