आतंकी के जनाजे में हजारों की मुस्लिम भीड़ : शमिल हुए कई नेता और अभिनेता, 58 भारतीयों की मौत का जिम्मेदार था एसए बाशा

तमिलनाडु । तमिलनाडु के कोयंबटूर में 1998 के सीरियल ब्लास्ट के मास्टरमाइंड और अल-उम्मा आतंकी संगठन के प्रमुख एसए बाशा को उसकी मौत के बाद ‘हीरो’ की तरह विदाई दी गई। यह वही आतंकी है, जिसने 58 निर्दोष भारतीयों की जान ली थी और 231 लोगों को घायल किया था। उम्रकैद की सजा काट रहे […]

Dec 18, 2024 - 17:33
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आतंकी के जनाजे में हजारों की मुस्लिम भीड़ : शमिल हुए कई नेता और अभिनेता, 58 भारतीयों की मौत का जिम्मेदार था एसए बाशा

तमिलनाडु । तमिलनाडु के कोयंबटूर में 1998 के सीरियल ब्लास्ट के मास्टरमाइंड और अल-उम्मा आतंकी संगठन के प्रमुख एसए बाशा को उसकी मौत के बाद ‘हीरो’ की तरह विदाई दी गई। यह वही आतंकी है, जिसने 58 निर्दोष भारतीयों की जान ली थी और 231 लोगों को घायल किया था। उम्रकैद की सजा काट रहे इस आतंकी की मौत 16 दिसंबर 2024 को अस्पताल में हुई, जिसके बाद अगले दिन 17 दिसंबर 2024 को उसकी अंतिम यात्रा निकाली गई।

आतंकी की इस विदाई यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए, जिनमें कई राजनीतिक नेताओं और अभिनेताओं ने भी हिस्सा लिया। इसे लेकर न सिर्फ आम जनता बल्कि देशभर में आक्रोश है।

1998 कोयंबटूर ब्लास्ट 

14 फरवरी 1998 को कोयंबटूर में 12 बम धमाकों ने पूरे देश को हिला दिया था। इन धमाकों की साजिश एसए बाशा और उसके आतंकी संगठन अल-उम्मा ने रची थी। इन धमाकों में 58 लोगों की जान चली गई और 231 लोग घायल हो गए। अल-उम्मा को बाद में भारत सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया। इस आतंकी संगठन का प्रमुख एसए बाशा जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा था। उसने 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जान से मारने की धमकी दी थी।

‘हीरो’ की तरह निकली अंतिम यात्रा

एसए बाशा की मौत के बाद उसकी अंतिम यात्रा कोयंबटूर के दक्षिण उक्कड़म स्थित उसके घर से फ्लावर मार्केट स्थित हैदर अली टीपू सुल्तान सुन्नथ जमात मस्जिद तक निकाली गई। चौंकाने वाली बात यह रही कि इस यात्रा में हजारों की भीड़ उमड़ी, जो उसे ‘शहीद’ और ‘हीरो’ की तरह विदाई देने पहुंची थी।

यात्रा के दौरान 2000 पुलिसकर्मियों और 200 आरएएफ जवानों को तैनात किया गया ताकि कानून-व्यवस्था बनाए रखी जा सके। सोशल मीडिया पर इस घटना के वीडियो वायरल होने के बाद देशभर में इसकी कड़ी आलोचना हो रही है।

राजनीतिक और मजहबी नेताओं की उपस्थिति

इस आतंकी की अंतिम यात्रा में कई राजनीतिक और मजहबी नेताओं ने हिस्सा लिया। इनमें तमिलनाडु के कई छोटे-बड़े नेता और संगठन शामिल थे।

प्रमुख नाम-

1. एनटीके नेता सीमान
तमिल अभिनेता और नाम तमिलर काची (एनटीके) पार्टी के नेता सीमान ने अंतिम यात्रा में हिस्सा लिया। उन्होंने डीएमके सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि एसए बाशा को पहले ही जेल से रिहा कर देना चाहिए था।

2. कोंगु इलैगनार पेरावई पार्टी के अध्यक्ष यू थानियारसु
क्षेत्रीय पार्टी के नेता थानियारसु, जो दो बार AIADMK के विधायक रह चुके हैं, भी इस यात्रा में मौजूद थे।

3. वीसीके नेता वन्नी अरासु
दलित और तमिल राष्ट्रवाद की बात करने वाली विदुथलाई चिरुथैगल काची (VCK) पार्टी के उप महासचिव वन्नी अरासु ने भी इस आतंकी को अंतिम विदाई दी।

4. एमएमके महासचिव पी अब्दुल समद
मणिथानेया मक्कल काची (एमएमके) पार्टी के महासचिव और मन्नापरई से विधायक पी अब्दुल समद ने भी अंतिम यात्रा में हिस्सा लिया। यह पार्टी DMK के साथ गठबंधन में है।

बीजेपी ने जताई कड़ी आपत्ति

तमिलनाडु बीजेपी ने इस घटना की कड़ी आलोचना करते हुए डीएमके सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि सरकार ने आतंकी की अंतिम यात्रा के लिए सुरक्षा प्रदान कर इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया है। बीजेपी ने सवाल उठाया कि एक आतंकी को इतनी शान और सम्मान के साथ विदाई क्यों दी जा रही है।

पत्रकारों और जनता की प्रतिक्रिया

वरिष्ठ पत्रकार राहुल शिवशंकर ने इस घटना पर ट्वीट कर कहा, “यह पाकिस्तान या बांग्लादेश में नहीं, बल्कि भारत में हो रहा है। एक आतंकी को ‘हीरो’ की तरह विदाई दी जा रही है। ‘संविधान’ के नाम पर राजनीति करने वाले और धर्मनिरपेक्षता का झंडा उठाने वाले इस पर चुप क्यों हैं?”


सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर लोग अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं। आम जनता ने सरकार और पुलिस प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।

डीएमके सरकार पर उठे सवाल

मौजूदा मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि उसने आतंकी की अंतिम यात्रा को इतनी भव्यता से निकालने की अनुमति क्यों दी। तमिलनाडु की राजनीति में ऐसे कट्टरपंथी तत्वों के प्रति नरमी बरतने का आरोप पहले भी डीएमके सरकार पर लगता रहा है।

क्या है अल-उम्मा संगठन?

अल-उम्मा एक इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन था, जिसे 1998 के कोयंबटूर धमाकों के बाद प्रतिबंधित कर दिया गया। इसका प्रमुख एसए बाशा था, जिसने तमिलनाडु में इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

58 निर्दोष भारतीयों की हत्या करने वाले आतंकी को ‘हीरो’ की तरह विदाई देना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह देश की सुरक्षा और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए गंभीर खतरा है। इस घटना ने तमिलनाडु में कट्टरपंथ और राजनीतिक गठजोड़ की चिंताजनक तस्वीर पेश की है।

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