शिक्षा नीति में है पर्चा लीक का समाधान
भारत को अपने युवाओं पर गर्व है। सारा विश्व उनकी सृजनात्मकता, बुद्धिमत्ता और प्रतिभा
शिक्षा नीति में है पर्चा लीक का समाधान
शिक्षा व्यवस्था में बढ़ रहीं भ्रष्ट प्रवृत्तियां व्यवस्था की साख को दीमक की तरह नष्ट कर रही हैं
भारत को अपने युवाओं पर गर्व है। सारा विश्व उनकी सृजनात्मकता, बुद्धिमत्ता और प्रतिभा का लोहा मानता है। देश की तकनीकी शिक्षा, प्रबंधन शिक्षा, संचार तकनीकी तथा वैज्ञानिक शोध के संस्थान अनेक देशों के लिए ईर्ष्या के कारण बने हैं। यह सब भारत के भविष्यद्रष्टा नेतृत्व के कारण ही संभव हो सका है। हालांकि कुछ ऐसे भी मुद्दे हैं, जो देश के लिए अत्यंत चिंताजनक स्थिति निर्मित कर रहे हैं। आज शिक्षा व्यवस्था में असामाजिक तत्व और भ्रष्ट प्रवृत्तियां लगातार बढ़ रही हैं और व्यवस्था की साख को दीमक की तरह नष्ट कर रही हैं। इस पर विमर्श और त्वरित निर्णय लेना अत्यंत आवश्यक हो गया है। अन्यथा स्थिति हाथ से निकलती जाएगी।
पिछले दिनों हरियाणा के नूंह जिले में परीक्षा में नकल की योजनाबद्ध घटना सामने आई। राजस्थान में भर्ती में पर्चा लीक के एक मामले में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे 14 पुलिस कर्मचारियों को मिलाकर 40 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। राजस्थान में 2019 के बाद प्रतिवर्ष तीन पर्चे लीक हुए, जिसमें 40 लाख युवा प्रभावित हुए हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में पुलिस कांस्टेबल भर्ती में पर्चा लीक के कारण 48 लाख युवाओं का निराश होकर ठगे से रह जाना किसी भी देश के लिए अत्यंत शर्मनाक स्थिति ही कही जाएगी। उत्तर प्रदेश की पुलिस नियुक्ति व्यवस्था ने अपनी अक्षमता दिखा दी। इसके बावजूद लाखों युवाओं और परिवारों पर आर्थिक और मानसिक बोझ के लिए जिम्मेदार किसी भी अधिकारी के बर्खास्त होने की खबर न उत्तर प्रदेश से आई, न हरियाणा या राजस्थान से। इस अपराध के लिए कितने लोग जेलों में हैं या उनकी संपत्ति जब्त हुई है? इनमें से अनेक तो लगातार नकल और पर्चा लीक में शामिल बताए जा रहे हैं। 15 राज्यों में पिछले पांच वर्षों के दौरान 1.4 करोड़ युवा पेपर लीक के शिकार हुए हैं।
यह चिंताजनक स्थिति है।
परीक्षाओं को कदाचार मुक्त बनाने के लिए केंद्र सरकार ने एक माडल अधिनियम बनाया है। राजस्थान सहित कुछ राज्यों ने भी इसके लिए कुछ ऐसा ही रास्ता अपनाया है। समस्या यह है कि किसी को इनके लागू होने के बाद भी स्थिति सुधरने का विश्वास नहीं है। नकल और पर्चा लीक के प्रकरण साल-दर-साल लगातार बढ़ते जा रहे हैं। सवाल है कि आज तक ऐसी किसी व्यवस्था की आवश्यकता क्यों नहीं समझी गई कि नकल और पर्चा लीक में बर्खास्तगी तुरंत होगी। ऐसे हर प्रकरण के लिए सर्वाधिकार संपन्न विशेष न्यायालय की स्थापना की जाएगी और अपराधियों को दंड छह महीने के अंदर दे दिया जाएगा। आज भी पर्चा लीक में संलग्न अपराधी 'अधिकारी' अपनी जगहों पर विद्यमान हैं, जनता के पैसों पर पल रहे हैं। अगर उनके अधिकार हैं तो जिन युवाओं के साथ धोखा हुआ है, उनके अधिकारों की रक्षा कौन करेगा ?
अपराध की गंभीरता को समझना, देश के भविष्य पर उससे घातक परिणामों की चिंता करना सरकार का ही नहीं, समाज का भी उत्तरदायित्व है। परीक्षा में अपनी जगह किसी अन्य को धनराशि देकर बैठाने की तिकड़म लंबे अर्से से चल रही है। विकास, प्रगति या प्रगतिशीलता का यह कैसा उदाहरण है कि मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में कोई डाक्टर ही 'साल्वर' बनकर बैठे और किसी को कोई सजा न मिले। दूसरे के लिए परीक्षा में बैठने वाला और उसे बैठाने वाला परिवार समाज के बराबर के अपराधी हैं। ये ऐसी सजा के अधिकारी हैं, जो वह जीवनपर्यंत भोगें। आज तक परीक्षा का पर्चा खरीदने के लिए धन उपलब्ध कराने वाले किसी पालक को शायद ही कभी कोई कठोर दंड मिला हो? इन सभी समस्याओं के संपूर्ण समाधान का रास्ता राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में नजर आता है। इसमें देश के युवाओं के लिए नई आशा का संचार करने की अनेक संभावनाएं निहित हैं। वह देश की शिक्षा व्यवस्था में नैतिकता ला सकती है। सारे सामाजिक परिदृश्य को बदल सकती है। हालांकि इसके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इसके सफल क्रियान्वयन और अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने की है।
वर्ष 1968 तथा 1986/92 में बनी शिक्षा नीतियों के क्रियान्वयन के अनुभव यह स्पष्ट इंगित करते हैं कि नीति कितनी भी सशक्त क्यों न हो उसकी सफलता उन व्यक्तियों पर निर्भर करती है, जो हर स्तर पर उसके क्रियान्वयन के उत्तरदायित्व निभाते हैं। नई शिक्षा नीति में 2012 में गठित न्यायमूर्ति जेएस वर्मा आयोग के उस निष्कर्ष को दोहराया गया है कि 'देश में शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान अध्यापक शिक्षा के प्रति लेशमात्र भी गंभीरता से प्रयास नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसके स्थान पर ऊंचे दामों पर डिग्रियां बेच रहे हैं।' नोबेल पुरस्कार विजेता गुन्नार मिर्डल ने भी अपनी पुस्तक 'एशियन ड्रामा' में लिखा है कि भारत जैसे सभी विकासशील देशों में हर क्षेत्र में गुणवत्ता वृद्धि का स्रोत एक ही है-उनके अपने शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता।
यदि शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों में नैतिकता, संस्कृति बोध, कर्तव्यनिष्ठा, समाज और राष्ट्र के प्रति समर्पण, सेवा के प्रति सम्मोहन और कार्यसंस्कृति अनुकरणीय होंगे तो देश के स्कूलों के अध्यापक बनने के लिए प्रशिक्षित हो रहे युवा भी इनको ग्रहण और अनुसरण करेंगे। वे बाद में स्कूलों में वैसी ही कार्यसंस्कृति निर्मित करने में सफल होंगे। यहीं से देश को हर कार्यक्षेत्र में वैसे ही लोग मिलेंगे। यह कोई दूर की कौड़ी नहीं है, केवल राष्ट्र द्वारा निर्णय लेने की देरी है। जापान ने अपने पुनर्निर्माण में प्राइमरी स्कूलों के अध्यापकों पर विश्वास कर देश में कार्यनिष्ठा तथा कार्यसंस्कृति के नए आयाम स्थापित कर दिए। भारत भी इसे अपने ढंग से कर सकता है।
(लेखक शिक्षा, सामाजिक सद्भाव और पंथक समरसता के क्षेत्र में कार्यरत हैं)
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