राष्ट्रगान 'जन गण मन' के रचयिता और नोवेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर

गुरु देव के नाम से विख्यात कवि लेखक संगीतकार एवं वहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी तथा राष्ट्रगान 'जन गण मन' के रचयिता और भारत के पहले नोवेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने साहित्य, शिक्षा, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी वहुमुखी प्रतिभा से वह स्थान प्राप्त किया है

May 7, 2024 - 10:26
May 7, 2024 - 10:29
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राष्ट्रगान 'जन गण मन' के रचयिता और नोवेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर

 राष्ट्रगान 'जन गण मन' के रचयिता और नोवेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर 

गुरु देव के नाम से विख्यात कवि लेखक संगीतकार एवं वहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी तथा राष्ट्रगान 'जन गण मन' के रचयिता और भारत के पहले नोवेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने साहित्य, शिक्षा, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी वहुमुखी प्रतिभा से वह स्थान प्राप्त किया है जो विरले ही प्राप्त कर पाते हैं। अपने मानवतावादी दृष्टिकोण के चलते रवींद्र वावू को विश्वकवि का दर्जा दिया गया है।


उनके काव्य के मानवतावाद ने उन्हें दुनिया भर में पहचान दिलाई। दुनिया की अनेक भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद हुआ। टैगोर की रचनाएं वांग्ला साहित्य में एक नई शैली एवं चिंतन लेकर आई। 7 मई 1861 को कोलकाता में जन्मे, माता पिता की तेरहवीं संतान रवींद्रनाथ टैगोर ने वचपन में ही 'होनहार विरवान के होत चिकने पात' की उक्ति को चरितार्थ करते हुए आठ वर्ष की उम्र में पहली कविता लिखकर अपने कवि हृदय होने का परिचय दिया तो मात्र 16 वर्ष की उम्र में उनकी पहली प्रथम रचना एक लघु कथा के रूप में प्रकाशित हुई। एक दर्जन से अधिक उपन्यासों में चोखेर वाली, घरे वाहिरे, गोरा आदि शामिल है। रविंद्र नाथ टैगोर के उपन्यासों में मध्यमवर्गीय समाज का वहुत नजदीकी से यथार्थपरक चित्रण किया गया है।

टैगोर का कथा साहित्य क्लासिक साहित्य में वहुत ऊंचा स्थान रखता है। समीक्षकों के अनुसार उनकी कृति 'गोरा' एक अद्भुत रचना है और आज भी इसकी प्रासंगिकता वनी हुई है। रवींद्रनाथ टैगोर की रचनात्मक प्रतिभा कविताओं एवं संगीत में सबसे ज्यादा मुखिरत हुई। उनकी कविताओं में नदी और वादल की अठखेलियों से लेकर अध्यात्म तक के विभिन्न विषयों को वखूवी उकेरा गया है तो उपनिषद जैसी  भावनाएं भी अभिव्यक्त हुई हैं। साहित्य की शायद ही कोई शाखा हो जिनमें उनकी रचनाएं नहीं हों। उन्होंने कविता, गीत, कहानी, उपन्यास, नाटक विधाओं में प्रमुख रूप से रचना की। टैगोर की कई कृतियों के अंग्रेजी अनुवाद के वाद पूरा विश्व उनकी प्रतिभा से परिचित हुआ। उनके नाटक मुख्यतया सांकेतिक हैं, डाकघर, राजा, विसर्जन आदि इसके प्रमाण हैं। 'गुरुदेव' की कविताओं में एक अनूठी लय है।

वर्ष 1877 में उनकी रचना 'भिखारिन' खासी चर्चित रही। उन्हें बंगाल का सांस्कृतिक उपदेशक भी कहा जाता है। 1913 में साहित्य का नोवेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले रवींद्र आरंभिक दौर में कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रहे, लेकिन 'गीतांजलि' पर नोवेल पुरस्कार मिलने के वाद उनकी ख्याति विश्वव्यापी हो गई उनको अपनी जिस पुस्तक गीतांजलि पर साहित्य का नोवेल पुरस्कार मिला उसकी कहानी भी वड़ी रोचक है। 

51 वर्ष की उम्र में रवींद्रनाथ टैगोर अपने बेटे के साथ इंग्लैंड गए और इस यात्रा ने रवींद्रनाथ टैगोर का आभामंडल ही वदल दिया। समुद्री मार्ग से जाते समय उन्होंने अपने कविता संग्रह 'गीतांजलि' का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया। गीतांजलि का अनुवाद करने के पीछे उनका कोई उद्देश्य नहीं था केवल समय काटने के लिए कुछ करने की गरज से उन्होंने गीतांजलि का अनुवाद एक नोटबुक में लिखना शुरू किया और यात्रा समाप्त होते-होते उन्होंने इस अनुवाद को पूरा भी कर दिया। अनुवाद करते समय टैगोर को किंचित भी आभास नहीं था कि वे एक महान कार्य करने जा रहे हैं। लंदन में जहाज से उतरते समय उनका पुत्र उस सूटकेस को जहाज में ही भूल गया जिसमें वह नोटवुक रखी थी। इस ऐतिहासिक कृति की नियति में किसी बंद सूटकेस में लुप्त होना नहीं लिखा था। वह सूटकेस जिस व्यक्ति को मिला उसने स्वयं उस सूटकेस को रवींद्रनाथ टैगोर तक अगले ही दिन पहुंचा दिया।


लंदन में टैगोर के अंग्रेज मित्र चित्रकार रोथेस्टिन को जब यह पता चला कि गीतांजलि को स्वयं रवींद्रनाथ टैगोर ने अनुवादित किया है तो उन्होंने उसे पढ़ने की इच्छा जाहिर की। गीतांजलि पढ़ने के वाद रोथेस्टिन ने अपने मित्र डब्ल्यू.वी. यीट्स को गीतांजलि के वारे में वताया और नोटबुक उन्हें भी पढ़ने के लिए दी। इसके वाद जो हुआ वह इतिहास है। यीट्स ने स्वयं गीतांजलि के अंग्रेजी के मूल संस्करण का प्रस्तावना लिखा। सितम्बर सन 1912 में गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद की कुछ सीमित प्रतियां इंडिया सोसायटी के सहयोग से प्रकाशित की गई। लंदन में गीतांजलि की जमकर सराहना हुई।


जल्द ही गीतांजलि के शब्द माधुर्य ने संपूर्ण विश्व को सम्मोहित कर लिया। गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल वाद सन 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को नोवल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। टैगोर पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के मध्य सेतु वनने का कार्य किया था। टैगोर केवल भारत के ही नहीं समूचे विश्व के साहित्य, कला और संगीत के एक महान प्रकाश स्तंभ हैं। उनका लिखा 'एकला चालो रे' गाना गांधीजी विशेष पसंद था। रवींद्रनाथ को 1915 में नाइटहुड की उपाधि दी गई, लेकिन जलियांवाला वाग कांड की खिलाफत में उन्होंने उसे लौटा दिया। 7 अगस्त 1941 को देहावसान से पहले ही उनके रचना संसार ने उन्हें एक कालजयी महान विभूति के रूप में अमर कर दिया था।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,