2024 के लोकसभा चुनाव के संग्राम में नैरेटिव की लड़ाई

पाकिस्तान से आतंकियों की घुसपैठ रोकने में भी काफी हद तक सफलता मिली है। एक तरह से देश की पश्चिमी सीमा एक तरह से सुरक्षित नजर आ रही है।

Mar 22, 2024 - 23:30
Mar 22, 2024 - 23:34
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2024 के लोकसभा चुनाव के संग्राम में नैरेटिव की लड़ाई

पानीपत से महाभारत तक

2024 के लोकसभा चुनाव के संग्राम में नैरेटिव की लड़ाई

चुनावी राजनीति में नैरेटिव की लड़ाई बहुत महत्वपूर्ण है। इस लड़ाई को नए प्रतीकों और नए नारों की आवश्यकता होती है, जिसे पूरी रणनीति के साथ भाजपा सफलतापूर्वक आगे बढ़ा चुकी है

राजनी कहता है। वर्ष 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अलग-अलग प्रतीकों के उपयोग को इस संदर्भ में देखा जा सकता है। वस्तुतः भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव को पानीपत की चौथी लड़ाई करार दिया था। वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव की उन्होंने महाभारत की लड़ाई बताया है। इन दोनों ही प्रतीकों का उपयोग अमित शाह ने पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए किया। इन दोनों लोकसभा के चुनावी संग्राम को कार्यकर्ताओं के सामने व्याख्यायित करने के लिए अलग-अलग प्रतीकों के उपयोग के मायने हैं, जिसे पिछले पांच वर्षों में देश की आंतरिक सुरक्षा व चुनौतियों में आए बदलाव से समझा जा सकता है

 वर्ष 2019 में दिल्ली के रामलीला मैदान में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अमित शाह ने लोकसभा चुनाव को पानीपत की चौथी लड़ाई बताया था, जो आने वाली सदियों में देश का भविष्य तय करेगा। दरअसल उस समय देश पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का खतरा कायम था। चार महीने पहले ही उरी में सेना मुख्यालय पर आतंकी हमले में 19 जवान मारे गए थे। कश्मीर में बंद, हड़ताल और पत्थरबाजी की घटनाएं सामान्य बात थी। यही नहीं, भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के एक महीने बाद ही फरवरी में पुलवामा में बड़े आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 से अधिक जवान मारे गए थे। वैसे भारत ने सर्जिकल और एयर स्ट्राइक कर इसका जवाब दिया था। उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपने चुनावी भाषणों में पाक प्रायोजित आतंकवाद को  बड़ा मुद्दा बना रहे थे।

इतिहास: पानीपत की लड़ाई के इतिहास को देंखे तो 1526 और 1556 में यह पश्चिम से आने वाले मुगलों और भारतीय राजाओं के बीच हुई थी, जिनके परिणाम ने भारत में अगली लगभग चार सदियों तक मुगल शासन की नींव रखी थी। वहीं पश्चिम से आने वाले अहमदशाह अब्दाली ने 1763 में मराठों को हराकर भारत में अगली लगभग दो सदियों तक अंग्रेजों के शासन का मार्ग प्रशस्त किया था। इस तरह से पानीपत की तीनों ही लड़ाइयों ने भारतीय इतिहास की दिशा निर्धारित करने का काम किया था। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अमित शाह ने यह भी कहा था कि यदि 2019 में भाजपा जीतती है तो अगले 50 वर्षों तक वह सत्ता में रहेगी। वर्ष 2019 की तुलना में 2024 की लड़ाई को देंखे तो शाह की भविष्यवाणी कम से कम इस बार तो सही साबित होती लग रही है।

जाहिर है 2024 का लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में बिल्कुल अलग परिस्थितियों में हो रहा है। इस बीच अनुच्छेद 370 निरस्त हो चुका है। जम्मू-कश्मीर का भारत में पूरी तरह से एकीकरण हो चुका है। जम्मू- कश्मीर में आतंकवाद पर लगाम लगाने में सफलता मिली है और अलगाववादी नारों की जगह भारत माता के जयकारे की गूंज सुनाई देती है। घाटी में चहुंओर शांति एवं विकास की बयार देखने को मिल रही है। पर्यटकों की रिकार्ड संख्या से लेकर फिल्मों की शूटिंग और विकास योजनाओं में निवेश बदलते कश्मीर की कहानी कह रह हैं। पाकिस्तान से आतंकियों की घुसपैठ रोकने में भी काफी हद तक सफलता मिली है। एक तरह से देश की पश्चिमी सीमा एक तरह से सुरक्षित नजर आ रही है।


इसी तरह से पूर्वोत्तर भारत में अलगाववादी संगठनों के साथ समझौतों और उनके हथियारबंद कैडरों के आत्मसमर्पण ने शांति और विकास की राह प्रशस्त की है। साथ ही पूर्वोत्तर के राज्य अपने आपसी मतभेदों को खत्म करने के लिए भी समझौते कर रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में ऐसे 12 समझौते हो चुके हैं और लगभग 10 हजार से अधिक हथियारबंद कैडर अपने हथियार डालकर मुख्यधारा में लौट चुके हैं। यही स्थिति नवसली हिंसा की भी है। ओडिशा, बिहार और झारखंड से संगठित नक्सलियों का सफाया किया जा चुका है। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में भी नक्सली बैकफुट पर हैं और बड़ी वारदात करने की उनकी क्षमता काफी हद तक क्षीण हो चुकी है। शाह ने अगले तीन साल में नक्सलियों के पूर्ण सफाये की घोषणा भी कर दी है। इन बदली परिस्थितियों में 2024 के लोकसभा चुनाव के संग्राम में नैरेटिव की लड़ाई काफी अहम है।

नैरेटिव की इस लड़ाई को नए प्रतीकों और नए नारों की जरूरत है। इस संदर्भ में देखे तो अमित शाह ने 2024 के लोकसभा चुनाव को महाभारत की लडाई बताकर एक तरह से इसे धर्मयुद्ध के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जिसमें एक ही परिवार की अच्छी और बुरी ताकतों के बीच लड़ाई होती है। राहुल गांधी ने हिंदू धर्म में शक्ति शब्द और उसे खत्म करने का बयान देकर भाजपा के इस धर्मयुद्ध के नैरेटिव को नई धार दे दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर को लपकते हुए लोकसभा चुनाव को शक्ति के उपासक और शक्ति के विनाशक के बीच बता दिया है, जो अमित शाह के महाभारत के धर्मयुद्ध के नैरेटिव में फिट बैठता है।

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