पाठ्यक्रम में जुड़ने से युवाओं को लाभ : विजय गर्ग 

Nov 2, 2024 - 19:58
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पाठ्यक्रम में जुड़ने से युवाओं को लाभ : विजय गर्ग 

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत में दो में से एक स्नातक रोजगार के योग्य नहीं है यानी भारत में केवल 51 प्रतिशत स्नातक ही रोजगार के लिए तैयार हैं। यह आंकड़ा इस बात पर जोर देता है कि छात्रों को केवल सैद्धांतिक शिक्षा से नहीं, बल्कि व्यावहारिक अनुभव के साथ तैयार करने की आवश्यकता है। यूजीसी का यह निर्णय छात्रों की रोजगार क्षमता को बढ़ाने के लिए एक बड़ा कदम है। नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में इंटर्नशिप के महत्व पर जोर दिया गया है। यूजीसी के अनुसार, तीन वर्षीय यूजी पाठ्यक्रम में चौथे सेमेस्टर के बाद 60 से 120 घंटे की इंटर्नशिप अनिवार्य होगी, जबकि चार वर्षीय आनर्स और रिसर्च कोर्स में चौथे और आठवें सेमेस्टर के बाद इंटर्नशिप करनी होगी। इस बदलाव का उद्देश्य छात्रों की वास्तविक दुनिया की चुनौतियों से अवगत कराना है। गौरतलब है कि भारत के स्किल इंडिया मिशन के तहत अब तक 1.25 करोड़ से अधिक युवाओं को विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया गया है। हालांकि, इनमें से केवल 50 प्रतिशत युवाओं को रोजगार मिल पाया, जो बताता हैं कि प्रशिक्षण के बावजूद रोजगार की कमी और अर्ध कुशल श्रमिकों की श्रम बाजार में सीमित मांग है।
सरकारी प्रयास बदलते आर्थिक परिदृश्य में सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा अप्रेंटिसशिप के क्षेत्र में अनेक प्रयास किए गए हैं ताकि युवाओं को रोजगार के लिए तैयार किया जा सके और उद्योगों की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। अप्रेंटिसशिप कार्यक्रम की नींव 1961 में अप्रेंटिसशिप एक्ट के माध्यम से रखी गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य औद्योगिक प्रशिक्षण और कुशल श्रमिकों की पूर्ति करना था। हालांकि, कई वर्षों तक इस कार्यक्रम का विकास धीमा रहा और अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हो सके। वर्ष 2014 के बाद से सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम उठाए, जिसमें अप्रेंटिसशिप नियमों को अधिक लचीला और उद्योगों के अनुकूल बनाया गया।
वर्ष 2015 में शुरू किए गए 'स्किल इंडिया मिशन' के तहत अप्रेंटिसशिप को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं लागू की गई। नेशनल अप्रेंटिसशिप प्रमोशन स्कीम को 2016 में शुरू किया गया, जिसके अंतर्गत उद्योगों को अप्रेंटिसशिप के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिए जाते हैं। इस योजना के तहत नियोक्ताओं को प्रशिक्षण के लिए सरकार से सब्सिडी मिलती है, जिससे उनकी अप्रेंटिसशिप प्रशिक्षण की लागत कम हो जाती है।
औद्योगिक क्षेत्र में अप्रेंटिसशिप को रोजगार देने का एक सशक्त माध्यम माना जाता है। सरकार और उद्योग संगठनों के बीच आपसी सहयोग से अप्रेंटिसशिप की संख्या और गुणवत्ता में सुधार हुआ है 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों ने अप्रेंटिसशिप के महत्व को और भी बढ़ाया है, खासकर विनिर्माण, निर्माण और सेवा क्षेत्रों में सीआइआइ (कंफेडरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्री) और फिक्की (फेडरेशन आफ इंडियन चैंबर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री) जैसे उद्योग संगठनों ने भी अप्रेंटिसशिप के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उद्योगों के भीतर कुशल मानव संसाधन तैयार करने और रोजगार के अवसर सृजित करने के उद्देश्य से ये संगठनों ने प्रशिक्षण और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किया है।
नियोक्ताओं से समन्वय डिजिटल क्रांति के दैर में अप्रेंटिसशिप भी आधुनिक तकनीकों के साथ कदमताल कर रही है। डीजी- शिप जैसे पोर्टल के माध्यम से अप्रेंटिसशिप के लिए पंजीकरण और संचालन को आसान बनाया गया है। सब ही, कई आनलाइन प्लेटफार्म और एस के जरिए युवाओं को अप्रेंटिसशिप के अवसरों की जानकारी दी जा रही है। सरकार ने अप्रेंटिसशिप इंडिया पोर्टल लांच किया है, जो नियोक्ताओं और अप्रेंटिस के बीच सेतु का कार्य करता है। इस प्लेटफार्म के जरिए अप्रेंटिस अपने क्षेत्र के अनुसार प्रशिक्षकों और उद्योगों के साथ जुड़ सकते हैं। इस डिजिटल पहल से पारदर्शिता और जवाबदेही भी सुनिश्चित हो रही है।
चुनोतियां भारत में अप्रेंटिसशिप के प्रसार में अभी भी कई चुनौतियाँ हैं। भारत में अप्रेंटिसशिप / प्रशिक्षुता कार्यक्रमों में उद्योग की भागीदारी सीमित है। अधिकांश उद्योग, विशेषकर छोटे और मध्यम आकार के उद्योग, अप्रेंटिस/ प्रशिक्षु रखने से कतराते हैं। इसका कारण बुनियादी ढांचे की कमी, संसाधनों की अनिश्चितता और अतिरिक्त प्रशासनिक जिम्मेदारियों का डर है। इसके अलावा, कई उद्योग यह नहीं समझते कि अप्रेंटिसशिप उनके दीर्घकालिक लाभ में कैसे योगदान दे सकती है। अप्रेंटिसशिप का उद्देश्य युवाओं को व्यावहारिक और आधुनिक कौशल प्रदान करना है। लेकिन भारत में प्रशिक्षण की गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न हैं। कई अप्रेंटिसशिप कार्यक्रम केवल औपचारिकता के रूप में चलते हैं, जहां प्रशिक्षुओं को उचित प्रशिक्षण और मार्गदर्शन नहीं मिलता। सुविधाओं का विस्तार आम तौर पर हमारे देश के शैक्षणिक संस्थानों में अप्रेंटिसशिप को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है, जिससे यह धारणा बनती है कि यह केवल एक वैकल्पिक रास्ता है, न कि मुख्यधारा का करियर विकल्प। अप्रेंटिस को मिलने वाला मानदेय भी अक्सर बहुत कम होता है, जो उनकी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में विफल रहता है। उन्हें अन्य लाभ जैसे बीमा, पेंशन और अन्य सामाजिक सुरक्षा सुविधाएं नहीं मिलती हैं। इस कारण अप्रेंटिस कार्यक्रमों के प्रति युवाओं का आकर्षण कम हो जाता है। सभी पक्षों को समझना होगा कि युवाओं की आर्थिक आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें मानदेय दिया ही जाना चाहिए। ऐसा नहीं होने के कारण ही अप्रेंटिसशिप के प्रति अच्छी धारणा नहीं बन पाई है।


प्रणाली में सुधार के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है। उद्योग और शिक्षण संस्थानों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित किया जाना चाहिए ताकि शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई जाने वाली सामग्री वास्तविक कार्यस्थल की आवश्यकताओं में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियानों की शुरुआत की जानी चाहिए, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि यह करियर विकास का एक सशक्त माध्यम हो सकता है। सरकार की यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अप्रेंटिसें मिले, ताकि वे आर्थिक रूप से सशक्त ही सकें। इसके साथ ही, छोटे और मध्यम उद्योगों को अप्रेंटिसशिप को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिसमें नीतिगत सुधारों और वित्तीय प्रोत्साहनों का विशेष ध्यान रखा जाए।

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,