भारतीय संस्कृति का विश्व संचार प्राचीन काल में संस्कृति

कर्नल अल्काट ने मानव संस्कृति का उद्गम स्थल भारतवर्ष को ही माना है। जब फांसीसी दार्शनिक वाल्टेयर को ऋग्वेद की एक प्रति भेंट की गई, तब उनके उद्‌गार थे

Aug 28, 2024 - 14:24
Aug 28, 2024 - 14:32
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 भारतीय संस्कृति का विश्व संचार प्राचीन काल में संस्कृति

 भारतीय संस्कृति का विश्व संचार प्राचीन काल में जिस संस्कृति ने अपना सम्पूर्ण विश्व में संघार किया, वह है भारतीय संस्कृति और यह संचार सैनिक आक्रमण नहीं, अपितु सांस्कृतिक विनिमय के स्वरूप का था।। भारत का इतिहास एवं संस्कृति अपने प्रारम्भिक काल से ही गौरवमयी रही है। उत्खनन एवं पुरातात्विक अवशेषों के आधार पर भी हमें भारतीय संस्कृति का विश्व स्वरूप दिखायी देता है। वीन की दीवार के उत्तरी दरवाजे पर संस्कृत भाषा में आज भी उल्लेख है यक्षों के द्वारा परमेश्वर हमारी रक्षा करें।

भारतीय संस्कृति एवं भारतीय इतिहास की श्रेष्ठता का उल्लेख भारतीय मान्थों में ही नहीं है, अपितु पश्चिमी इतिहासकारों और विद्वानों ने भी भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता के उद्‌गार प्रकट किये है। इतिहासकार म्यूर ने लिखा है कि भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य की मव्यता, विविधता और वनस्पतियों के उत्पादन की तमूधी दुनिया में बराबरी नहीं। सरवाल्टर रैले ने लिखा है कि प्रथम मानव प्राणी का निर्माण भारत खण्ड में हुआ। कर्नल अल्काट ने मानव संस्कृति का उद्गम स्थल भारतवर्ष को ही माना है। जब फांसीसी दार्शनिक वाल्टेयर को ऋग्वेद की एक प्रति भेंट की गई, तब उनके उद्‌गार थे यह देन इतनी अमूल्य है कि पाश्चात्य राष्ट्र सदैव पूर्व के प्रति ऋणी रहेंगे। मैक्समूलर ने लिखा कि यदि कोई मुझसे पूछे कि मानवी अन्तःकरण एवं बुद्धि की परिपूर्णता व शक्ति किस देश में अधिक चरम सीमा तक पहुँची है? संसार के गूढ़तम रहस्यों का विश्लेषण किस देश में हुआ है? प्लेटो कॅट आदि के दर्शन के अध्ययन के बाद भी अध्ययन योग्य विषय किस देश में सुलझाये गये हैं? तो मैं जिवार उत्तर दूंगा हिन्दुस्तान में।

मैक्समूलर के अनुसार पेरुदेश (दक्षिण अमेरिका) अपने आपको सूर्यवंशी मानते हैं। विजयदशमी पर रामसीतोत्सव व बाद में रामजन्मोत्सव आज मी मनाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते है कि भारत प्राचीन काल से ही वैभवशाली एवं समृद्ध रहा है। अग्निपुराण में भारत को जम्बूद्वीप कहा गया है। समुद्री पार के भारतीय प्रदेशों को दीपान्तर कहा जाता था। इनमें हैं। चम्पा अनाम पाण्डुरेग, इन्द्रपुर बाली, कलिंग जैसे नगरों के नाम या राम, वर्मा जैसे व्यक्तियों नाम भारतीय परम्परा से अटूट सम्बन्ध बताते है। इन देशों का रहन सहन परम्परा, पूजा पद्धति, शास्त्र विधि, नीति कल्पना, आचार व्यवहार आदि में भारतीय परम्परा झलकती है।

(नवद्वीप) नौ द्वीप थे। सांस्कृतिक भारत में वर्तमान जावा, सुमात्रा, मलाया, कम्बुज, श्याम, चम्पा, बर्मा, लंका आदि सम्मिलित थे यूरोपीय विद्वान सिलवेनलेवी ने 'भारतीय द्वीप समूह' शब्द का प्रयोग किया है। अरबी भूगोलवेत्ता मसूदी ने भी लिखा है कि प्राचीन काल में भारत भूमि और समुद्र दोनों पर फैला हुआ था. उसकी सीमा जाबाग (सुमात्रा जावा) तक फैली हुई थी। इस प्रकार उस समय के सांस्कृतिक भारत की सीमाएं अफगानिस्तान से लेकर सम्पूर्ण दक्षिणी-पूर्वी एशिया में फैली हुई थी। शक्तिशाली जलयानों में बैठकर भारतीय ब्रह्म देश, श्याम, इण्डोनेशिया, मलेशिया, आस्ट्रेलिया, बोर्निओ, फिलीपीन, जापान व कोरिया तक पहुँचे और वहीं अपना राजनैतिक तथा सांस्कृतिक साम्राज्य स्थापित किया।

प्रशान्त महासागर के द्वीपो से ऐसे ही अन्य नाविक एवं पर्यटक मध्य अमेरिका के मैक्सिको, हांडुरास, दक्षिण अमेरिका के पेरू, बोलीविया तथा चिली के विभिन्न स्थानों पर पहुँचे और वहाँ पर उन्होंने अपने निवास बनाये। इसी प्रकार पश्चिमी भारत के बंदरगाहों से द्रविड पर्यटक तथा नाविक सोमालीलैण्ड से लेकर दक्षिणी अफ्रीका तक के समस्त पूर्वी समुद्र तट पर जगह-जगह अपने वासस्थल स्थापित करने में सफल हुए।

भारतीय शूरवीरों की एक शाखा हिमालय पर्वत के उत्तर में पूर्व की ओर बढ़ी और इन्होंने दक्षिणी रूस के विभिन्न राज्यों तिब्बत, मंगोलिया, सिंक्यांन, उत्तरी चीन, मंचूरिया, साइबेरिया और चीन तक पहुँचकर भारतीय संस्कृति का प्रभाव निर्मित किया। भारतवसियों की एक शाखा ने पश्चिमी द्वार से प्रस्थान किया और गांधार, पर्शिया, ईरान, इराक, तुर्किस्तान, अरब, टर्की तथा दक्षिणी रूस के विभिन्न राज्यों एवं फिलीस्तीन पहुँचकर अपनी संस्कृति का ध्वज फहराया। 

इस प्रकार के सुसंस्कृत जन आर्य भारत से विश्व के विभिन्न देशों में जल तथा थल मार्ग से पहुँचे। वहीं अपने धर्म, संस्कृति और सभ्यता का प्रचार कर वहाँ के निवासियों को भारतीय संस्कृति से परिचित करवाया। भारत भूमि पुत्रों की अति प्राचीन काल से ही यह जिज्ञासा रही थी कि सागर के उस पार क्या है। उनकी इच्छा थी कि विश्व के सभी लोगों को सुसंस्कृत बनाना जाए। सभी को आर्य (श्रेष्ठ) बनाना होगा। हमारे प्राचीन ऋषियों के महान् उद्घोष 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम्' के साथ भारतीय सागर पार कर गये और इसको वास्तविक स्वरूप प्रदान किया ।। कौण्डिन्य नाम के वीर ने फूनान संस्कृति का निर्माण किया। कम्बु कम्बोडिया पहुँचा।

चम्पा और अनाम के बलाढ्य हिन्दू राज्य उदित हुए। सुमात्रा में श्रीविजय के वैभवपूर्ण साम्राज्य का उदय हुआ। अश्ववर्मन नामक साहसी वीर बोर्निओ पहुँचा। हमारे यहां के साहसी वीर अमेरिकी तट तक पहुँच गए। इन साहसी वीरों ने भारतीय दर्शन, विज्ञान, ज्योतिष, गणित ज्योतिष, स्थापत्य युद्ध शास्त्र, नीति शास्त्र, संगीत वैदिक ग्रन्थों का विश्व में प्रसार किया। इण्डोनेशिया कम्बोडिया, इण्डोचाइना, बोर्निओ से संस्कृत भाषा के सैकड़ों लेख मिले है जावा में आज भी शक काल गणना का प्रचलन है। यहां के शिव विष्णु व बौद्ध मन्दिर भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं। बोरोबुदूर व अंगकोरवाट का भव्य शिल्प अजन्ता-एलोरा की समानता बताते लिये स्वतंत्र अधिकारी रहते थे जिन्हें 'दत्ररश्मिग्राहक' कहते थे।

भारतीय संस्कृति का विश्व संचार प्राचीन काल से ही कई माध्यमों से हुआ है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने अपने विचार, विज्ञान, साहित्य, धर्म, कला, और संगीत को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्राचीन समय में, भारत व्यापार मार्गों के माध्यम से विभिन्न देशों से जुड़ा हुआ था, जैसे कि रेशम मार्ग (Silk Route) और समुद्री मार्ग। इन मार्गों के माध्यम से भारतीय संस्कृति, ज्ञान, और विज्ञान दुनिया भर में फैल गए। उदाहरण के लिए, बौद्ध धर्म का प्रसार भारत से चीन, जापान, तिब्बत, और दक्षिण पूर्व एशिया तक हुआ। भारतीय शास्त्रों का अनुवाद अरबी, फारसी, और अन्य भाषाओं में किया गया, जिससे भारतीय ज्ञान का संचार हुआ।

तत्कालीन विद्वानों और यात्रियों ने भी भारतीय संस्कृति का प्रचार किया। महान विद्वान, जैसे कि पाणिनी, चाणक्य, आर्यभट्ट, और भास्कराचार्य, ने विज्ञान, गणित, और साहित्य के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो समय के साथ अन्य देशों में भी प्रसिद्ध हुआ।

भारतीय संस्कृति के विश्व संचार में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जहां पर विभिन्न देशों से छात्र आकर शिक्षा प्राप्त करते थे।

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