ओबीसी के नाम पर आरक्षण का खेल

दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा, 'अदालत का मानना है कि मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ों के तौर पर चुना जाना पूरे मुस्लिम समुदाय का अपमान है।

May 28, 2024 - 21:00
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ओबीसी के नाम पर आरक्षण का खेल

ओबीसी के नाम पर आरक्षण का खेल

हमारे देश में जाति और धर्म के नाम पर राजनीति नई नहीं है। पिछले कई माह से कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर भाजपा विरोधी अन्य कई दलों के नेता अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नाम पर चुनावी फसल काटने के लिए जातिगत गणना व जातियों का एक्स-रे कराने की बातें करते आ रहे हैं। परंतु ओबीसी के नाम पर आरक्षण और तुष्टीकरण का जो खेल चल रहा है, वह एक-एक कर सामने आ रहा है। हमारे संविधान के मुताबिक धर्म के नाम पर किसी को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है, इसके बावजूद आरक्षण का खेल चल रहा है। बीते सप्ताह कलकत्ता हाई कोर्ट ने बंगाल में 37 वर्गों को दिए गए ओबीसी आरक्षण रद करते हुए इस प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिया।

दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा, 'अदालत का मानना है कि मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ों के तौर पर चुना जाना पूरे मुस्लिम समुदाय का अपमान है। अदालत का मन इस संदेह से मुक्त नहीं है कि राजनीतिक लाभ के लिए उक्त समुदाय (मुसलमान) को वस्तु समझा गया। चुनावी लाभ के लिए मुस्लिम समुदाय के वर्गों को ओबीसी के रूप में मान्यता देना उन्हें संबंधित राजनीतिक प्रतिष्ठान की दया पर छोड़ देगा और इससे वे अन्य अधिकारों से वंचित रह सकते हैं, इसलिए ऐसा आरक्षण लोकतंत्र और समग्र रूप से भारत के संविधान का भी अपमान है।'


हाई कोर्ट की यह टिप्पणी बता रही है कि पंथनिरपेक्ष होने का दंभ भरने वाली पार्टियां वोट बैंक के लिए किस तरह की राजनीति कर रही हैं। हाई कोर्ट ने बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल में जारी ओबीसी प्रमाणपत्र रद कर दिए हैं। उसके बाद से यह एक बड़ा मुद्दा बना चुका है और राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी वहां की सरकारें इस मामले में जांच की बात कह रही है। जब बंगाल में दो चरणों में 17 सीटों का मतदान बाकी था, उसी समय यह फैसला आया है। हाई कोर्ट ने जिस तरह से 2010 के बाद जारी पांच लाख से अधिक ओबीसी प्रमाणपत्र को रद किया है, इससे राज्य ही नहीं, पूरे देश की राजनीति में आरक्षण पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है।

हाई कोर्ट ने 2012 में राज्य की ममता बनर्जी सरकार द्वारा 77 जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने संबंधी कानून को ही अवैध घोषित कर दिया है। भारत सरकार के प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो (पीआइबी) के आंकड़ों के अनुसार, बंगाल में पिछड़ी जातियों की कुल संख्या 179 है, जिनमें मुस्लिम जातियों की संख्या 118 है। वहीं हिंदू जातियों की संख्या केवल 61 है। ये आंकड़े बता रहे हैं कि किस तरह की तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति होती है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी स्वयं रविवार को कहा कि उन्होंने सात से 17 प्रतिशत आरक्षण कर 97 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय को दायरे में ला दिया है। दरअसल, बंगाल में ओबीसी आरक्षण की कहानी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में गठित सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से शुरू होती है। उस रिपोर्ट में देश में मुस्लिम समुदाय की स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि बंगाल सरकार के कर्मचारियों में केवल 3.5 प्रतिशत ही मुस्लिम हैं। इसी को आधार बनाकर 2010 में बंगाल की तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने मुस्लिम समुदाय के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी थी और राज्य पिछड़ा आयोग ने 42 जातियों को इसमें शामिल करने की संस्तुति की थी, जिसमें मुस्लिमों की 41 जातियां थीं। इसी के साथ ओबीसी आरक्षण सात प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत कर दिया गया था।


प्रतिशत 45 है, जिसमें एससी को 22 दरअसल, बंगाल में ओबीसी आरक्षण को भी दो वर्गों 'ए' और 'बी' में बांट दिया गया। 10 प्रतिशत आरक्षण अति पिछड़ा वर्ग और सात प्रतिशत पिछड़ा वर्ग को दिया गया। 10 प्रतिशत वाले आरक्षण में अधिकतर जातियां मुस्लिम समुदाय की हैं। दूसरे वर्ग को सात प्रतिशत आरक्षण मिला, जिसमें हिंदू- मुस्लिम दोनों समुदायों की जातियां हैं। न्यायमूर्ति तपोव्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने 211 पन्नों के अपने आदेश में स्पष्ट किया कि 2010 से पहले ओबीसी के 66 वर्गों को वर्गीकृत करने वाले राज्य सरकार के कार्यकारी आदेशों में हस्तक्षेप नहीं किया गया क्योंकि इन्हें याचिकाओं में चुनौती नहीं दी गई थी।

अदालत ने आयोग से परामर्श न लेने के आधार पर सितंबर, 2010 के एक कार्यकारी आदेश को रद कर दिया, जिसके जरिए ओबीसी आरक्षण सात प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत किया गया था। बंगाल में एससी एसटी एवं ओबीसी के कुल आरक्षण का प्रतिशत, एसटी को छह और ओबीसी को 17 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने 21 मार्च, 2023 को ही अनुशंसा की थी कि ओबीसी के आरक्षण को 17 से बढ़ाकर 22 प्रतिशत करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है, परंतु 14 अप्रैल, 2023 को पिछड़ा वर्ग कल्याण, बंगाल सरकार ने आयोग को अपने लिखित उत्तर में कहा कि राज्य सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया है। अब जब हाई कोर्ट ने ओबीसी प्रमाणपत्र रद करने का फैसला सुनाया है तो ममता ने कह दिया कि वे उक्त फैसले को नहीं मानेंगी और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी। यह बता रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो कह रहे हैं कि विपक्षी पार्टियां एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण छीनकर मुस्लिमों को दे रही हैं, उनकी बातें हाई कोर्ट के इस फैसले से सही साबित हो रही है। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट में जब यह मुद्दा जाता है तो क्या होता है।

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