कांग्रेस के पराभव का कारण

1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था, 'केंद्र सरकार 100 पैसे भेजती है

Mar 6, 2024 - 22:51
Mar 6, 2024 - 22:57
 1
कांग्रेस के पराभव का कारण

अपेक्षाकृत कम योग्य उत्तराधिकारियों के कारण ही कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दल संकट में हैं। कुछ तो डूब रहे हैं

कई कारणों से 1929 से अब तक कांग्रेस ने नेहरू-गांधी परिवार के अपेक्षाकृत कम योग्य नेताओं को सत्ता और पार्टी के शीर्ष पर बैठाया। जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को जब सत्ता सौंपी गई, तब वे अपने समय के कांग्रेस के श्रेष्ठतम नेता नहीं थे। श्रेष्ठतम नेता कोई और थे, जिन्हें दरकिनार कर इस परिवार के नेताओं को आगे किया गया। आज भी वही हाल है। नतीजतन अगले लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस से एक-एक करके नेता निकलते जा रहे हैं। देश की मूल समस्याओं को समझने और उनके हल प्रस्तुत करने की क्षमता के अभाव में नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य देश, सरकार और दल को सफल नेतृत्व प्रदान नहीं कर सके। आर्थिक, आंतरिक और वैदेशिक मोर्चों पर सफलताएं कम ही मिलीं। कुछ क्षेत्रों में नेहरू-इंदिरा-राजीव की सफलताएं जरूर ध्यान खींचने वाली रहीं, पर इस गरीब देश को जिस तरह के निर्णायक नेतृत्व की जरूरत थी, वह आवश्यकता पूरी नहीं हो सकी। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ठीक ही कहते हैं, 'इस देश के कई जरूरी काम मेरी ही प्रतीक्षा  कर रहे थे।' किसी देश के लिए आर्थिक मोर्चे पर सफलता अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। 

कांग्रेस के लिए कठिन होती राह दोबारा सत्ता में आने के लिहाज से पार्टी का  प्रदर्शन क्षेत्रीय दलों से भी खराब - Congress performance is worse than the  regional parties ...

आर्थिक साधनों से ही विकास, कल्याण तथा सुरक्षा के काम किए जा सकते हैं। इसी पृष्ठभूमि में 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था, 'केंद्र सरकार 100 पैसे भेजती है, पर गांवों तक उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं।' यह काम एक दिन में तो नहीं हुआ होगा। उसमें कुछ न कुछ योगदान 1947 से 1985 तक की सारी सरकारों का रहा ही होगा। यानी उन दिनों की सरकारें भ्रष्टाचार के खिलाफ उतनी सख्त नहीं थीं, जितनी किसी गरीब देश की सरकारों को होना चाहिए। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय में कई दशक पहले सचिव रहे एनसी सक्सेना ने यह सलाह दी थी कि बैंक खातों के जरिये ही लोगों तक आर्थिक मदद पहुंचाई जानी चाहिए। उससे लीकेज बंद होगा, लेकिन यह काम मोदी सरकार ने ही बड़े पैमाने पर शुरू किया। सक्सेना की नेक सलाह को मानने से कई सरकारों ने इन्कार कर दिया। कारण स्पष्ट है।

कांग्रेस के पराभव का कारण कई राजनीतिक दल संकट में ; कुछ डूब रहे - Reason  for Congress defeat many political parties in crisis and some are drowning  Before Lok Sabha Elections 2024


नेताओं के से निकले वंशज परिजन के बीच अपेक्षाकृत कम योग्य उत्तराधिकारियों के कई दल संकट में कारण ही कांग्रेस समेत हैं। कुछ तो डूब रहे हैं। संकेत हैं कि आने वाले दिन भी उनके लिए सुखकर नहीं हैं। इन दलों की स्थिति सुधरती नहीं देखकर बीते दिनों के कुछ लाभार्थी तरह-तरह के उपदेश दे रहे हैं कुछ तो विलाप और हैं। दलों के पराभव के गंभीर चर्चा संबंधित दलों के नेता भी नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इससे हाईकमान के यहां उनकी पूछ खत्म में वंशवाद की शुरुआत चुकी थी। उसे ठोस की मदद से मोतीलाल इससे यह साफ है कि गांधी जी ने प्रारंभिक हिचक के बाद ही जवाहरलाल नेहरू को आगे बढ़ाया। मोतीलाल मुख्यालय संचालन के का अपना विशाल आनंद भवन दे दिया था। गांधी जी पर संभवतः इस बात का असर रहा होगा। तत्कालीन मोतीलाल ने 1928 में बारी-बारी से तीन चिट्ठियां लिखीं। उनके जरिये उन्होंने आग्रह किया कि वह जवाहरलाल को कांग्रेस अध्यक्ष बनवा दें। पहले दो पत्रों पर गांधी राजी नहीं हुए। वह तब जवाहर को उस पद के योग्य नहीं मानते थे। मोतीलाल जी के तीसरे पत्र पर गांधी जी बेमन से मान गए। आजादी के तत्काल बाद जब प्रधानमंत्री प्रलाप भी कर रहे मूल कारणों की हो जाएगी।

कांग्रेस 1929 में हो हो रूप महात्मा गांधी नेहरू ने दिया। नेहरू ने कांग्रेस लिए प्रयागराज कांग्रेस अध्यक्ष महात्मा गांधी को पद पर किसी नेता को बैठाने की बात आई तो महात्मा गांधी ने सरदार पटेल के दावे को नजरअंदाज कर नेहरू को प्रधानमंत्री बनवा दिया, जबकि देश की 15 में से 12 प्रदेश कांग्रेस कमेटियों ने इस पद के लिए सरदार पटेल का नाम सुझाया था। कांग्रेस के तब के अधिकतर शीर्ष नेतागण इस देश की जमीनी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इस पद के लिए सरदार पटेल को सर्वाधिक योग्य मानते थे। 1958 में इंदिरा गांधी कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य बना दी गई। कल्पना कीजिए, कितने बड़े-बड़े स्वतंत्रता सेनानी तब इस पद के लिए उनसे अधिक काबिल थे। कुछ समय बाद इंदिरा गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दी गईं।

कांग्रेस की बीमारी बेतुके बयानों से रोज लांघ रही सीमा - Congress is  crossing the limits of absurd statements every day

कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी ने इंदिरा को अध्यक्ष बनाए जाने के विरोध में जवाहरलाल नेहरू को कड़ा पत्र लिखा। वास्तव में नेहरू जी इंदिरा को कांग्रेस अध्यक्ष बनवाकर यह संकेत दे रहे थे कि उनके न रहने पर बेटी प्रधानमंत्री बने। अंततः ऐसा ही हुआ। बीच में कुछ समय के लिए लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने। क्या 1984 में इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद राजीव गांधी कांग्रेस मैं पीएम पद के लिए सबसे योग्य नेता थे? ऐसा नहीं था।

राजीव गांधी ने जिस तरह अपनी सरकार और पार्टी चलाई, उसका यह नतीजा हुआ कि उनके बाद कांग्रेस को लोकसभा में पूर्ण बहुमत मिलना बंद हो गया। याद रहे कि इंदिरा गांधी के शासनकाल में ही जनता ने पहली बार 1977 में कांग्रेस को केंद्र की सत्ता से हटा दिया था। दूसरी ओर, बिना किसी पारिवारिक पृष्ठभूमि से राजनीति में आए मोदी के कारण भाजपा की चुनावी ताकत बढ़ती ही जा रही है, क्योंकि मोदी ने देश की मूल समस्याओं को समझा और उनके समाधान पूरे मनोयोग से तलाशे। उसके सकारात्मक परिणाम भी देखे जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि आजादी के तत्काल बाद के हमारे शासकों को सुशासन की सलाह देने वालों की कोई कमी थी।

सिंगापुर के संस्थापक प्रधानमंत्री ली कुआन यू ने नेहरू को इस बारे में सलाह दी थी। जब उनकी सलाह नहीं मानी गई तो उन्होंने कहा, 'समस्याओं के बोझ के कारण नेहरू ने अपने विचारों और नीतियों को लागू करने का जिम्मा मंत्रियों और सचिवों को दे दिया। अफसोस की बात है कि वह भारत के लिए वांछित परिणाम लाने में असफल रहे।' ली कुआन 1959 से 1990 तक सिंगापुर के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने सिंगापुर के लोगों की प्रति व्यक्ति आय को 500 डालर से बढ़ाकर 55 हजार डालर पर पहुंचा दिया। भारत भी सिंगापुर की तरह तरक्की कर सकता था, लेकिन मौका गंवा दिया गया।  

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad