भारत में गरीबी में आत्मनिर्भर सफलता: एक दशक में गिरावट का इतिहास
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा गत माह प्रस्तुत किए गए अंतरिम बजट 2024-25 में बहुआयामी गरीबी से देश की जनता को पूरी तरह से मुक्त करने के पक्के इरादों और प्रयासों की कवायद दिखी।
यह अच्छी बात है कि देश में गरीबी कम हो रही है, लेकिन प्रयास यह होना चाहिए कि प्रति व्यक्ति आय भी बढ़े
प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्था द ब्रूकिंग्स प इंस्टीट्यूशन का एक हालिया अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार भारत ने अत्यधिक गरीबी का उन्मूलन करने में सफलता हासिल की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तेज विकास और असमानता में कमी के चलते भारत को यह कामयाबी मिली है। रिपोर्ट में उल्लेख है कि कुल आबादी में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों (प्रतिदिन 1.90 डालर से कम खर्च करने वाले) की संख्या 2011-12 के 12.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में दो प्रतिशत पर आ गई है। यह गरीबों की संख्या में हर वर्ष 0.93 प्रतिशत की कमी के बराबर है। ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक गरीबों की संख्या घटकर 2.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में एक प्रतिशत रह गई है। कहा गया है कि भारत में गरीबों की संख्या में जो गिरावट बीते 11 वर्षों में दर्ज हुई, इससे पहले इतनी गिरावट 30 वर्षों में आई थी।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों नीति आयोग द्वारा जारी किए गए वैश्विक मान्यता के मापदंडों पर आधारित बहुआयामी गरीबी इंडेक्स (एमपीआइ) के मुताबिक बहुआयामी गरीबी कम करने में सरकार की विभिन्न लोककल्याणकारी योजनाओं की भी अहम भूमिका रही है। एमपीआइ के मद्देनजर वित्त वर्ष 2013-14 में देश की 29.17 प्रतिशत आबादी गरीब थी। अब वित्त वर्ष 2022-23 में सिर्फ 11.28 प्रतिशत लोग एमपीआइ के हिसाब से गरीब रह गए हैं। इन नौ वर्षों में 17.89 प्रतिशत लोग यानी करीब 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं। इस परिप्रेक्ष्य में यहां संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यानी यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट भी उल्लेखनीय है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गरीबी 2015-2016 के मुकाबले 2019-2021 के दौरान 25 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत के स्तर पर आ गई है।
यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आइएमएफ सहित सामाजिक सुरक्षा से जुड़े वैश्विक संगठनों द्वारा भारत में बहुआयामी गरीबी घटाने में खाद्य सुरक्षा योजना की जोरदार सराहना की गई है। आइएमएफ द्वारा प्रकाशित शोधपत्र में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा संचालित प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने कोविड-19 की वजह से लगाए गए लाकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज, स्वच्छ ईंधन के लिए उज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना, पेयजल सुविधा के लिए जल जीवन मिशन एवं जन-धन खाते की सुविधा आदि से लोगों को गरीबी से ऊपर लाने में खासी मदद मिली है। खासतौर से गरीबों के सशक्तीकरण में करीब 51 करोड़ से अधिक जनधन खातों (जे), करीब 134 करोड़ आधार कार्ड (ए) तथा करीब 118 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं (एम) की शक्ति वाले 'जैम' से सुगठित बेमिसाल डिजिटल ढांचे की असाधारण भूमिका रही है। इसी के बल पर गरीबों के खातों में सीधे आर्थिक प्रोत्साहन राशि हस्तांतरित हो रही है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा गत माह प्रस्तुत किए गए अंतरिम बजट 2024-25 में बहुआयामी गरीबी से देश की जनता को पूरी तरह से मुक्त करने के पक्के इरादों और प्रयासों की कवायद दिखी। अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने चालू वित्त वर्ष 2023-24 के तहत बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर निकालने के के उद्देश्य से विभिन्न मदों पर किए गए वित्तीय आवंटन की तुलना में औसतन 10 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी की है। यद्यपि देश में एक ओर गरीबों के कल्याण के लिए लागू की गई विभिन्न सरकारी योजनाएं मसलन सामुदायिक रसोई, वन नेशन-वन राशन कार्ड, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, पोषण अभियान आदि से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी लाने और स्वास्थ्य एवं भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायता मिली है, लेकिन अभी भी गरीबी की जो व्यापक चुनौती बनी हुई है, उसका सामना करने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना होगा।
हमें इस पर ध्यान देना होगा कि गरीबों के सशक्तीकरण के साथ ही उनकी प्रतिव्यक्ति आय भी बढ़े। अभी भारत उन प्रमुख 10 देशों में शामिल है, जहां बीते 20 वर्षों में लोगों की आय में असमान बढ़ोतरी हुई है। इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि गरीब लोगों को मुफ्त अनाज के साथ उनके जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी अधिक प्रयास किए जाएं। इतना ही नहीं, देश की तेजी से बढ़ती आबादी के तहत गरीब वर्ग की नई आबादी की खाद्य सुरक्षा के लिए अधिक खाद्यान्न उत्पादन के रणनीतिक प्रयत्न भी जरूरी होंगे। इस पर भी ध्यान देना होगा कि जनकल्याण के मद्देनजर लोगों को रेवड़ियां बांटने जैसा अभियान आगे नहीं बढ़े। ऐसी योजनाएं ही आगे बढ़ाई जानी होंगी जो गरीबी से लड़ाई में सहायक बन सकें और जो गरीब लोगों को उनकी आय बढ़ाने के लिए प्रेरित करने में सक्षम हों।
सरकार को देश में अत्यधिक गरीबी का सामना कर रहे दो प्रतिशत लोगों और बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे करीब 15 करोड़ से अधिक गरीबों को लक्ष्य के मुताबिक वर्ष 2030 तक गरीबी से बाहर लाने के लिए गरीबी कम करने से संबंधित विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन की दिशा में अभी और अधिक कारगर प्रयासों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। गरीबों की प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने के मद्देनजर गरीब परिवारों के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण और डिजिटल कौशल से सुसज्जित करके रोजगार से सशक्तीकरण के रणनीतिक अभियान को आगे बढ़ाना भी उतना ही आवश्यक है।
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