विभिन्न आजकल इलेक्ट्रानिक उपकरणों इस्तेमाल होने वाले और सेमीकंडक्टर का हब बनने की डगर पर
केंद्र सरकार ने दी सेमीकंडक्टर यूनिट गुजरात में और एक असम में लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इन तीनों संयंत्रों से हर वर्ष कुल 2602 करोड़ चिप बनेंगी।
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विभिन्न आजकल इलेक्ट्रानिक उपकरणों इस्तेमाल होने वाले और सेमीकंडक्टर का हब बनने की डगर पर
पिछले दिनों केंद्र सरकार ने दो सेमीकंडक्टर यूनिट गुजरात में तथा एक असम में लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। 1.26 लाख करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले इन तीनों संयंत्रों से हर साल कुल 2602 करोड़ चिप बनेंगी। इससे न केवल घरेलू इलेक्ट्रिक वाहन, इलेक्ट्रिक उपकरण, आटोमोबाइल, दूरसंचार और रक्षा क्षेत्र की कंपनियों को पर्याप्त मात्रा में आसानी से एवं किफायती कीमत पर चिप की आपूर्ति हो सकेगी, बल्कि वैश्विक बाजार में भारत के प्रवेश का मार्ग भी खुलेगा
बोलचाल में चिप कहे जाने वाले सेमीकंडक्टर की जो भारी मांग इस दौरान पैदा हुई है, उसने तकरीबन हर अर्थव्यवस्था को प्रेरित किया है कि वे इसके उत्पादन में हाथ आजमाएं। जिन देशों में इसकी मांग होने के बावजूद घरेलू स्तर पर विनिर्माण के कोई खास प्रबंध नहीं हैं, उनके लिए सेमीकंडक्टर की कमी संकट पैदा कर रही है। वजह यह है कि हर काम में डिजिटल निर्भरता बढ़ने के कारण चिप एक अनिवार्यता बन गई है, पर इसे बनाना आसान नहीं है। इस कारण इसके लिए ज्यादातर देश आयात पर निर्भर हैं। अब ज्यादा बेहतर यह माना जाने लगा है कि घरेलू स्तर पर ही इसकी इंडस्ट्री लगाई जाए ताकि इसकी नियमित आपूर्ति में कोई अडचन नहीं आए। भारत ने जो राह पकड़ी है, वह इस मामले में काफी आशाजनक है।
हाल में केंद्र सरकार ने दी सेमीकंडक्टर यूनिट गुजरात में और एक असम में लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इन तीनों संयंत्रों से हर वर्ष कुल 2602 करोड़ चिप बनेंगी। इससे न सिर्फ घरेलू इलेक्ट्रिक वाहन, इलेक्ट्रिक उपकरण, आटोमोबाइल, दूरसंचार, रक्षा क्षेत्र की कंपनियों को पर्याप्त मात्रा में आसानी से पूर्व किफायती कीमत पर चिप की आपूर्ति हो सकेगी, बल्कि वैश्विक बाजार में भारत के प्रवेश का रास्ता भी खुलेगा। इनमें टाटा समूह एवं ताइवान की कंपनी पावरचिप द्वारा गुजरात में लगाया जाने वाले प्लांट है। दूसरा संयंत्र असम में लगाया जाएगा। इसे टाटा समूह एक बड़ी आटोमोबाइल कंपनी के साथ मिलकर लगाएगा।
तीसरा संयंत्र सीजी पावर और जापान की रेनेसा इलेक्ट्रानिक्स कारपोरेशन संयुक्त तौरपर में लगाएंगे। उक्त तीनों परियोजनाओं कुल 1.26 लाख करोड़ रुपये का निवेश कंपनी रही होगा। वहीं इसके लिए एक अन्य माइक्रोन की यूनिट पहले से लग है। सेमीकंडक्टर उद्योग को फलने फूलने हैं। के लिए तीन चीजें चाहिए होती इस उद्योग को पहली जरूरत डिजाइन इंजीनियरों की होती है। दुनिया में जितने सेमीकंडक्टर उद्योग से जुड़े इंजीनियर हैं, उनमें लाख से एक तिहाई (संख्या करीब तीन ) भारत में ही हैं। देश में करीब सौ विश्वविद्यालयों में सेमीकंडक्टर उद्योग के पाठ्यक्रम चलाने की शुरुआत की गई है, आपूर्ति इससे बेहतरीन इंजीनियरों की और बढ़ेगी। दूसरी जरूरत इस उद्योग के लिए फैब्रिकेशन सेंटर की होती है। तीसरी जरूरत होती है एटीएमपी यानी चिप बनाना, उसकी टेस्टिंग करना, मार्किंग करना और पैकेजिंग करके अंतिम उत्पाद बनाना। फैब्रिकेशन सेंटर की कमी को सरकार का ताजा फैसला पूरा करेगा। जबकि एटीएमपी भी स्थापित होने लगे हैं। इस तरह से सेमीकंडक्टर उद्योग की सारी जरूरतें भारत पूरी करने की दिशा में
बढ़ रहा है। जहां भी सेमीकडंवटर उद्योग पनपता है वहां इलेक्ट्रानिक उद्योग भी स्थापित होता है। उम्मीद है कि भारत में कई तरह के इलेक्ट्रानिक उपकरण बनाने वाली कंपनियां आएंगी। अभी भारतीय इलेक्ट्रानिक उपकरण उद्योग का बाजार 105 अरब डालर का है, जो अगले कुछ वर्षों में 300 अरब डालर का हो जाएगा। पूर्व में भी सेमीकंडक्टर उद्योग लगाने की कोशिशें हुई थीं, लेकिन सफलता नहीं मिली। एक सेमीकंडक्टर बनाने के लिए 16,000 विभिन्न तरह की चीजों की जरूरत होती है। कई तरह की गैस चाहिए, अलग किस्म का पानी चाहिए, बेहद सुक्ष्मता से एवं अत्यंत सफाई से काम करने वाली प्रौद्योगिकी चाहिए होते हैं।
अनुमान है कि भारत में अभी 25 अरब डालर के चिप की जरूरत है। जल्द ही यह मांग 100 अरब डालर की होगी। आज घर के पर्दे और स्विच बोर्ड से लेकर इलेक्ट्रिक कार और राकेट में चिप का इस्तेमाल होने लगा है। ईवी और प्रौद्योगिक का इस्तेमाल बढ़ने से इसकी मांग और बढ़ेगी सप्लाई का जोखिम घटाने की पहल असम को इसके लिए चुनने की एक खास वजह है। यह स्थान ताइवान, मलेशिया, वियतनाम और सिंगापुर जैसे उन देशों के करीब है, जो सेमीकंडक्टर की पैकेजिंग और टेस्ट की धुरी माने जाते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2030 तक ग्लोबल सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के बढ़कर एक ट्रिलियन डालर पहुंचने का अनुमान है।
सेमीकंडक्टर के निर्माण में भारत के प्रवेश से वैश्विक सप्लाई को श्रृंखला में जोखिम घटेगा और ग्लोबल सेमीकंडक्टकर इंडस्ट्री में भारत की भूमिका अहम होगी। मौजूदा समय में आत्मनिर्भरता की फैक्ट्री भारत में अभी वैश्विक जरूरतों की तुलना कम चिप बनाए जा रहे हैं। इससे भारत की अपनी आवश्यकताएं भी पूरी रही हैं। इसके लिए भारत मुख्य ताइवान, चीन और अमेरिका पर निर्भर है। भारत सालाना करीब 1.90 लाख करोड़ रुपये के सेमीकंडक्टर दूसरे देशों (खासकर चीन ताइवान) से है। हालांकि इसके लिए कई मंगाता रहा कोशिशें शुरू हो चुकी हैं जिससे कि देश इस मामले में आत्मनिर्भर हो सके। देश में सेमीकंडक्टर उद्योग की वृद्धि के लिए एक पूरा पारिस्थितिकी तंत्र तैयार किया जा इसके लिए यानी सेमीकंडक्टर बनाने की फैक्ट्री लगाने के लिए प्रौद्योगिकी कंपनियों को 50 प्रतिशत वित्तीय सहायता देने का एलान भी किया गया है। सेमीकडंक्टर सप्लाई को एक श्रृंखला विकसित करने के इरादे से देश में सेमीकंडक्टर डिजाइन पर पाठ्यक्रम भी शुरू गया है। सेमीकंडक्टर का मामला कुछ ऐसा बन गया है कि इसे दुनिया की एक नई औद्योगिक क्रांति के रूप में देखा जा रहा है। जो देश सेमीकंडक्टर और उसकी तकनीक में दूसरों से आगे नहीं हैं, आने वाले वक्त में न तो इलेक्ट्रानिक जरूरतें पूरी होंगी और न ही वहां रोजगार पैदा करने वाला विकास हो पाएगा।
पेट्रोल-सोने के बाद चिप का नंबर सेमीकंडक्टर के निर्माण की और भारत आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, औद्योगिक और इलेक्ट्रानिक्स क्षेत्र में उद्योग जगत की समग्र जरूरतें चिप पर निर्भर हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेस पर आधारित डिजिटलीकरण की मौजूदा तरक्की में भी सेमीकंडक्टर द्योतक है। यह बदलाव उस विरोधाभासी विडर्बना पर प्रहार है कि कंप्यूटर-आइटी में भारत खुद को हमेशा से अगुआ देश मानता रहा, लेकिन उसी क्षेत्र से जुड़े अहम उत्पाद-सेमीकंडक्टर के निर्माण में निहायत फिसड्डी रहा है। हमारे देश में पेट्रोल और सोने के बाद सबसे ज्यादा आयात इलेक्ट्रानिक साजो-सामान का होता है। हमारे देश में फरवरी 2021 से अप्रैल 2022 के बीच 550 अरब डालर के आयात बिल में अकेले इलेक्ट्रानिक्स वस्तुओं की हिस्सेदारी 62.7 अरब डालर थी। ऐसे में स्मार्टफोन, कंप्यूटर, लैपटाप, नोटबुक्स और टेलीविजन से लेकर स्मार्ट फीचर वाली कारों और वाशिंग मशीन तक में लगने वाले सेमीकंडक्टर अगर भारत में ही बनने लगें तो ये चीजें बेहद सस्ती हो सकती हैं। हालांकि आज की तारीख में ताइवान और चीन जैसे देशों ने सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में अपना दबदबा कायम कर रखा है।
ताइवान तो दुनिया में एडवांस्ड सेमीकंडक्टर चिप का सबसे अग्रणी उत्पादक देश है। यहां तक कि खुद चीन भी अपनी सेमीकंडक्टर की जरूरतें पूरी करने के लिए कुछ मायनों में ताइवान पर निर्भर है। ताइवान की सेमीकंडक्टर निर्माता कंपनी 'ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी' (टीएसएमसी) दुनिया भर में सेमीकंडक्टर चिप की मांग के बड़े हिस्से की पूर्ति करती है। दुनिया में इस्तेमाल होने वाले सभी चिप का आठ प्रतिशत ताइवान में बनता है। इसके बाद चीन और जापान का नंबर आता है। अच्छा है कि ताइवान और चीन के इस वर्चस्व को तोड़ने के लिए हमारी सरकार टाटा और वेदांता जैसे समूहों को एक अवसर में किया जा रहा है। हालांकि एक दौर ऐसा भी था, जब इलेक्ट्रानिक उपकरणों में चिप नहीं होते थे। इस वजह से ऐसे तकरीबन सभी डिवाइस आकार में काफी बड़े, वजनी होते थे और काफी जगह घेरते थे। घरों में मौजूद डेस्कटाप कंप्यूटर, रेडियो एवं कैथोड-रे ट्यूब वाले टेलीविजन इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं। यही नहीं, सेमीकंडक्टर-रहित इलेक्ट्रानिक उपकरण काफी ज्यादा बिजली की
खपत भी करते थे, लेकिन जब से दे रही है।
सिलिकान शील्ड का रूपक कहते हैं कि ताइवान को कब्जाने की ताक में बैठा चीन उस पर कोई सीधी सैन्य कार्रवाई इसलिए नहीं कर पा रहा है, क्योंकि अभी वह खुद ताइवान से सेमीकंडक्टर आयात करने के लिए विवश है। इसीलिए ताइवान को चीन से बचाने वाली इस नीति को सिलिकान शील्ड का नाम दिया गया है। इस बारे में यह सच है कि सेमीकंडक्टर बनाने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कोई नया देश इसे रातोंरात नहीं बना सकता है, लेकिन सही नीतियां अपनाकर और रास्ते में आने वाली बाधाओं को खत्म करके आयात पर निर्भरता को धीरे-धीरे खत्म किया जा सकता है। भारत चीन से 40 प्रतिशत इलेक्ट्रानिक आयात घटा सकता है बशर्ते यहां कुछ चीजों पर ठोस घटाने, उन्हें संचालन और बिजली की खपत के मामले में दक्ष बनाने के प्रयास विज्ञान जगत ने शुरू किए तो सेमीकंडक्टर का उपयोग समझ में आया। सेमीकंडक्टर की वजह से इलेक्ट्रानिक डिवाइस को स्लिम-ट्रिम करने में सफलता मिली। मोबाइल, लैपटाप, कंप्यूटर, टीवी, वाशिंग मशीन और यहां तक कि ये कारें भी सेमीकंडक्टर पर निर्भर हो गई, जिनमें तमाम कार्यों का संचालन वन-टच यानी किसी बटन को छूने भर से होता है।
छोटी चिप का बड़ा धमाल अमल किया जाए। जैसे सबसे पहले तोपीएम गति शक्ति स्कीम के तहत मिलने वाली रियायतों को ईमानदारी से लागू किया जाए। साथ ही भारतीय उत्पादको की इस भावना का ध्यान रखा जाए कि वे प्रतिस्पर्धी कीमतों पर अपने उत्पाद तैयार कर सकें। सेमीकंडक्टर का उत्पादन भारत में ही होने से न केवल भारत का आयात बिल कम होगा, बल्कि नौकरियों के सूजन के साथ मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में भी भारत की धाक जम सकेगी।
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