भारत दर्शन कार्यक्रम के प्रणेता विद्यानंद शेणाय
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भारत दर्शन कार्यक्रम के प्रणेता विद्यानंद शेणाय
किसी के सुझाव पर उनकी मां पुराना शहद और बच्च नामक जड़ी पीस कर प्रातःकाल उनके गले पर लगाने लगी। इस दवा और मां शारदा की कृपा से उनका स्वर खुल गया। ‘भारत दर्शन कार्यक्रम’ की लोकप्रियता के बाद उनकी मां ने कहा कि मेरा बेटा इतना बोलेगा, यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था।
ज्योतिषियों ने विद्यानंद को पानी से खतरा बताया था; पर उन्हें तुंगभद्रा नदी के तट पर बैठना बहुत अच्छा लगता था। एक बार नहाते समय वे नदी में डूबने से बाल-बाल बचे। बी.काॅम. की परीक्षा उत्तीर्ण कर वे बैंक में नौकरी करने लगे; पर इसमें उनका मन नहीं लगा। अतः नौकरी छोड़कर वे एक चिकित्सक के पास सहायक के नाते काम करने लगे। इसी बीच उनके बड़े भाई डा0 उपेन्द्र शेणाय संघ के प्रचारक बन गये।
आपातकाल में भूमिगत कार्य करते समय वे पकड़े गये और 15 मास तक जेल में रहे। इसके बाद उन्होंने सी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनके एक बड़े भाई अपने काम के सिलसिले में हैदराबाद रहने लगे थे। अतः पूरा परिवार वहीं चला गया; पर एक दिन विद्यानंद जी भी घर छोड़कर प्रचारक बन गये।
संघ शिक्षा वर्ग में मानचित्र परिचय का कार्यक्रम होता है। विद्यानंद जी प्रायः वर्ग के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से उसे अधिक रोचक बनाने को कहते थे। वे वरिष्ठ प्रचारक श्री कृष्णप्पा जी की प्रेरणा से प्रचारक बने थे। उन्होंने विद्यानंद जी की रुचि देखकर उन्हें ही इसे विकसित करने को कहा। अब विद्यानंद जी ‘भारत दर्शन’ के नाम से शाखा तथा विद्यालयों में यह कार्यक्रम करने लगे। सांस्कृतिक भारत के मानचित्र में पवित्र नदियां, पर्वत, तीर्थ आदि देखते और उनका महत्व सुनते हुए श्रोता मंत्रमुग्ध हो जातेे थे।
कुछ समय बाद उन्हंे बंगलौर में ‘राष्ट्रोत्थान परिषद’ का काम सौंपा गया। शीघ्र ही यह कार्यक्रम पूरे कर्नाटक के गांव-गांव में लोकप्रिय हो गया। यहां तक कि पुलिस वाले भी अपने परिजनों के बीच अलग से यह कार्यक्रम कराने लगेे।
जब इस कार्यक्रम की पूरे देश में मांग होने लगी, तो उन्होंने हिन्दी और अंगे्रजी में भी इसे तैयार किया। अपनी मातृभाषा कोंकणी में तो वे बोल ही लेते थे। भारत दर्शन के 50,000 कैसेट भी जल्दी ही बिक गये। इस प्रकार भारत दर्शन ने युवा पीढ़ी में देश-दर्शन के प्रति जागृति निर्माण की।
परन्तु इसी बीच उनके सिर में दर्द रहने लगा। काम करते हुए अचानक आंखों के आगे अंधेरा छा जाता था। जांच से पता लगा कि मस्तिष्क में एक बड़ा फोड़ा बन गया है। यह एक असाध्य रोग था। चिकित्सकों के परामर्श पर दो बार शल्यक्रिया हुई; पर कुछ सुधार नहीं हुआ और कष्ट बढ़ता गया।
इसी अवस्था में 26 अप्रैल, 2007 को 55 वर्ष की आयु में बंगलौर के चिकित्सालय में अपने मित्र और परिजनों के बीच उनका प्राणांत हुआ।
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