सोचा नहीं था ईश्वर वादी के रूप में मेरे सामने होंगे

मंदिर के विवाद में भगवान हनुमान को पक्षकार बनाने वाले व्यक्ति पर एक लाख रुपये का लगाया जुर्माना, एक निजी मंदिर में सार्वजनिक पूजा से वास्तव में यह नहीं माना जा सकता कि यह सार्वजनिक मंदिर है

May 8, 2024 - 21:07
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सोचा नहीं था ईश्वर वादी के रूप में मेरे सामने होंगे

सोचा नहीं था ईश्वर वादी के रूप में मेरे सामने होंगे

मंदिर के विवाद में भगवान हनुमान को पक्षकार बनाने वाले व्यक्ति पर एक लाख रुपये का लगाया जुर्माना, एक निजी मंदिर में सार्वजनिक पूजा से वास्तव में यह नहीं माना जा सकता कि यह सार्वजनिक मंदिर है

एक निजी भूमि पर बने मंदिर के विवाद और उसमें पूजा करने के अधिकार का दावा करने से संबंधित अपील याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन भगवान ही मेरे सामने वादी होंगे। अपील याचिका में भगवान हनुमान को पक्षकार बनाने पर अदालत ने अपीलकर्ता पर एक लाख रुपये जुर्माना लगाते हुए यह टिप्पणी की। इसके साथ ही अपीलकर्ता अंकित मिश्रा की अपील याचिका को खारिज करते हुए उसे संपत्ति के मालिक सूरज मलिक को जुर्माने का भुगतान करने का निर्देश दिया। अपीलकर्ता अंकित मिश्रा ने किसी अन्य पक्ष को भूमि के हस्तांतरण के संबंध में आपत्ति याचिका को खारिज करने वाले निचली अदालत के आदेश के विरुद्ध याचिका दायर की थी। निचली अदालत ने कहा था कि अंकित मिश्रा के पास मुकदमे की संपत्ति में कोई अधिकार, टाइटल या हित नहीं था।

इसमें दावा किया गया था कि संपत्ति पर एक सार्वजनिक मंदिर था, इसलिए भूखंड भगवान हनुमान का है और अपीलकर्ता अंकित मिश्रा अदालत के समक्ष उसके उपासक के रूप में पेश हुआ है। अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपनी निजी संपत्ति पर मंदिर का निर्माण करता है, जो अनिवार्य रूप से उसके और उसके परिवार के लिए है, तो उत्सव के अवसरों पर मंदिर में प्रार्थना करने की लोगों को अनुमति देने पर कोई प्रतिबंध  नहीं है। हालांकि, अदालत ने कहा कि एक निजी मंदिर में सार्वजनिक पूजा से वास्तव में यह नहीं माना जा सकता कि यह एक सार्वजनिक मंदिर है। अदालत ने कहा कि यह एक स्वीकृत स्थिति है कि जिस भूमि पर मंदिर का निर्माण किया गया था वह निजी भूमि है। याचिका में यह नहीं बताया गया है कि मंदिर का निर्माण कैसे हुआ।


अदालत ने कहा कि ऐसा दावा है कि मंदिर का निर्माण 1997 में किया गया था, लेकिन इसके कोई साक्ष्य नहीं हैं कि मंदिर का निर्माण कब हुआ। अदालत ने कहा कि निजी मंदिर में केवल पूजा करने से यह सार्वजनिक मंदिर में परिवर्तित नहीं हो जाता है। अदालत ने सुनवाई के दौरान निष्कर्ष निकाला कि ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे प्रथमदृष्टया यह संकेत मिले कि मंदिर एक सार्वजनिक मंदिर था जहां लोग आते थे। अपीलकर्ता अंकित मिश्रा के इस तर्क को भी अदालत ने ठुकरा दिया कि उपासक के रूप में भगवान हनुमान का बचाव करने का वह हकदार है।

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