सुश्रुत संहिता में मिलता है पारंपरिक बर्तनों का उल्लेख
भारतीय परिवारों के रसोईघरों में उपयोग किए जाने वाले बर्तन व उपकरण उपमहाद्वीप में ही विकसित हुए। 'थाली' हड़प्पाई सभ्यता में भी पाई गई है। भोजन को पकाने हेतु ‘मिट्टी की हांडी’ एक मूलतः भारतीय बर्तन हुआ। इसका स्पष्ट लिखित उल्लेख सुश्रुत संहिता में लिखा हुआ है।
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भारत में रसोईघर माता अन्नपूर्णा का स्थान एंव पवित्र जगह मानी जाती है। भारतीय परिवारों में रसोईघर में प्रवेश करने से पहले जूते निकालना और भोजन पकाने से पहले स्नान करना सांस्कृतिक नियम है। यह रसोईघर की शुभता का संकेतक भी माना जाता है। वैदिक काल के समय यज्ञशाला में भी बहुधा तीन अग्नियां जलाई जाती थीं।
पहली अग्नि को ‘गार्हपत्य अग्नि’ कहते थे। दूसरी अग्नि ‘आहवनीय अग्नि’ देवताओं का आवाहन करने हेतु पूर्व दिशा में जलाई जाती थी। तीसरी अग्नि ‘दक्षिणाग्नि’ पूर्वजों का आवाहन करने हेतु दक्षिण दिशा में जलाई जाती थी। गृहस्थी के कार्य गार्हपत्य अग्नि से किए जाते थे। इसलिए वह गृहस्थी के भीतर रसोईघर में लाई जाती थी और महिलाएं उस पर भोजन पकाती थीं।
ग्रंथों एंव पुराणों के अनुसार भगवान शिव जी की पत्नी अन्नपूर्णा देवी रसोईघर की देवी मानी जाती हैं और भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी अन्न की देवी मानी जाती है। इस प्रकार गृहस्थी के माध्यम से देवियां और देवों को सांसारिक विश्व से बंधा हुआ रखती हैं। भारतीय परिवारों के रसोईघरों में उपयोग किए जाने वाले बर्तन व उपकरण उपमहाद्वीप में ही विकसित हुए। बात ‘थाली’ से ही शुरू करते हैं। उसका किनारा ऊपर की ओर मुड़ा हुआ होने के कारण उस पर परोसे गए तरल पदार्थ नीचे नहीं गिरते हैं। थाली हड़प्पाई सभ्यता में भी पाई गई है। 'थाली' के पात्र पर विभिन्न प्रकार के पकवान कहां रखे जाने चाहिए, इसका स्पष्ट लिखित उल्लेख सुश्रुत संहिता में लिखा हुआ है। यही बराबर जानकारी रसोईघर की कुछ मध्यकालीन लिखी गई पुस्तकों में भी दोहराई गई है।
भोजन को पकाने हेतु ‘मिट्टी की हांडी’एक मूलतः भारतीय बर्तन हुआ। उसका एक निश्चित किनारा होता है, लेकिन इसमें हत्थी यानि हाथ का स्टेंड नहीं होता है।
(कटोरे में चॉपस्टिक एंव छुरी-कांटे के द्वारा भोजन खाना क्रमश: चीन और यूरोप देश में शुरू हुआ। केले और ढाक के पत्तों पर भोजन ग्रहण करना मूलतः प्राचीन भारतीय प्रथा है। पत्तों के द्वारा बनी प्लेटों को हिंदी में ‘पत्रावली’ या ‘पत्तल’ कहते हैं।)
यह भोजन के लिए सबसे शुद्ध पात्र माना जाता है। प्राचीन काल के समय में लोग पत्रावलियों और मिट्टी की प्लेटों का उपयोग कर बहुधा फेंक देते थे। इसी कारण से टूटी हुईं प्लेटों के टुकड़ों पर किसी को भोजन खिलाना उनका अपमान करने के समान माना जाता था। भारत के ग्रामीण क्षेत्र में ‘लोटा नामक पात्र’ रसोईघरों में पाया जाने वाला बढ़िया आविष्कार है। यह यूनानी ‘एम्फ़ोरा’ और फ़ारसी ‘सुराही’ से भिन्न है। इन दोनों बर्तनों में असमानता यही है कि यह चौड़े कम और लंबे अधिक होते हैं, जबकि लोटे आकार व प्रकार उनके विपरीत होता है। हम प्रक्षालन, हाथ धोते और भोजन पकाते समय उसके ऊपरी किनारे को पकड़कर उसका भरपुर उपयोग कर सकते हैं।
वह मशीन का निचला भाग सपाट होता है, ताकि वह ज़मीन पर स्थिर रह सके। कई जगहों पर उसे कलश के रूप में पूजा किया जाता है, जिसमें केला, नारियल या देवता की प्रतिमा रखी जाती है। इससे वह पवित्र रूप में अस्थायी पूजा स्थल में परिवर्तित हो जाता है। भारतीय परिवारों में दरांती या छुरी अनोखी चीज है, जिन्हें लोहे की विशिष्ट छुरियों को पैरों के बीच में पकड़ा जाता है। उन्हें बंगाली में ‘बोटी’, ओड़िया में ‘पानिकी’ और मराठी में ‘विळी’ कहा जाता है। ये छुरियाँ दक्षिण भारत, बिहार और नेपाल में विभिन्न नामों से पहचानी जाती हैं। इनसे फल, सब्ज़ियाँ और मछली सहजता से काटी जा सकती है।
इस उपकरण में थोड़ा सा परिवर्तन कर उस पर नारियल भी घिसा जा सकता है। वैदिक काल में भारतीय रसोईघरों में कई प्रकार के चम्मचों का उपयोग भी किया गया जाता है। अग्नि में घी धारणी नामक चम्मच से डाला जाता था। उसी तरह का खाना पकाते समय खाने में मसाले डालने के लिए अलग और भोजन पकाने और भोजन परोसने के लिए अलग चम्मच होते हैं। खाना हाथों से खाया जाता था, न कि छुरी-कांटों से। छुरी-कांटे का उपयोग अंग्रेजों के जमानें में भारत आने के पश्चात ही शुरू किया गयी. भारत में हांडियों के पात्र में हत्थी नहीं होती है। इसलिए गरम हांडियों को पकड़ने के लिए ‘पक्कड़’ का होना आवश्यक होता है। कई महिलाएं गरम बर्तन को कपड़े से पकड़कर आंच से नीचे उतारना पसंद करती हैं। पक्कड़ एक ऐसा उपकरण है, जो केवल भारतीय रसोईघरों में ही पाया जाता है। रोटियों को पकड़ने हेतु ‘चिमटा’ भी यहीं पाया जाता है, न कि मध्य एशिया के तंदूरों में। इस प्रकार केवल भारतीय रसोईघरों में पाए जाने वाले ‘थाली’, ‘हांडी’, ‘लोटा’, ‘पक्कड़’ और ‘पानिकी’ जैसे उपकरण अज्ञात भारतीय महिलाओं के अनोखे आविष्कार माने जा सकते हैं।
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