22 जून का इतिहास संत कबीरदास जयंती 22 जून 2024 को है

Jun 22, 2024 - 12:45
 0
 22 जून का इतिहास संत कबीरदास जयंती 22 जून 2024 को है
 22 जून का इतिहास संत कबीर दास कबीरदास जयंती 22 जून 2024 को है
संत कबीरदास के गुरु कौन थे? 
इसके बारे में अनेक बातें प्रचलित हैं किन्तु उनके गुरु कौन थे इसका संकेत स्वयं संत कबीरदास जी की वाणी में मिलता है।
उन्होंने कहा था :- "सतगुरु के परताप से मिटि गयो सब दुख दंद। कह कबीर दुविधा मिटी, गुरु मिलिया रामानंद।।" इससे जात होता है कि संत कबीरदास जी वैष्णव संत रामानंद जी के शिष्य थे।
संत कबीरदास के गुरु कौन थे?
इसके बारे में अनेक बातें प्रचलित हैं किन्तु उनके गुरु कौन थे इसका संकेत स्वयं संत कबीरदास जी की वाणी में मिलता है। उन्होंने कहा था :- "सतगुरु के परताप से मिटि गयो सब दुख दंद। कह कबीर दुविधा मिटी, गुरु मिलिया रामानंद।।" इससे जात होता है कि संत कबीरदास जी वैष्णव संत रामानंद जी के शिष्य थे।
संत कबीरदास ने किताबी ज्ञान पर दर्प करने वाले लोगों को सन्देश देते हुए कहा कि ग्रंथों को रट लेने से कोई पंडित नहीं बनता, जिस मानव के हृदय में प्रेम है वहीं ज्ञानी है। उनका प्रसिद्द दोहा है:-
"पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई। ढाई आखर प्रेम का, पढ़ें सो पंडित होई।।"
संत कबीरदास ने अपने विषय में कहा था, "मसि-कागद तौ छुओ नहि, कलम गही ना हाथ" अर्थात मैंने कभी कागज को नहीं छुआ और कलम को हाथ नहीं लगाया है। कबीर पड़े लिखे नहीं थे किन्तु संत परम्परा से प्राप्त उनका जान आज सबको अचंभित कर देता है। भारत की अनुपम जान परम्परा में संत कबीरदास का जान सत्संग और अनुभव से जनित था।
संत कबीरदास का जन्म विक्रम संवत् 1456 अर्थात् सन 1399 ईस्वी में हुआ था। संत कबीरदास भारतीय संत परम्परा के एक महान संत, दार्शनिक, भक्त एवं कवि माने जाते हैं। वह भारतीय समाज में धार्मिक और सामाजिक सुधार के लिए जाने जाते हैं।
संत कबीरदास ने मुस्लिम धर्म के आचार-विचार में विद्यमान आडम्बरों का घोर विरोध किया। इसका उदाहरण उनकी निम्न वाणी में देखने को मिलता है:- "गुसलमान के पीर-औलिया मुर्गी गुर्गा खाई। खाला केरी बेटी व्याहै घरहि में करै सगाई। बाहर से इक गुर्दा लाए धोय-धाय चढ़वाई। सब सखियाँ जिलि जैवल बैठीं घर-भर करें बड़ाई।"
इसी प्रकार मुल्ला की बांग पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा था कि :-
"कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बलाय। ता चढ़ि गुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।।" 
संत कबीरदास का पालन पोषण एक जुलाहा दम्पत्ति ने किया था जिन्हें वे लहरतारा तालाब के पास मिले थे। जुलाहा जाति नाथपंथी योगियों की शिष्य थी और इस जाति के लोगों में नाथपंथ के विश्वास और संस्कार पूरी तरह से विद्यमान थे। नाथपंथी प्रभात की जुलाहा जाति में पले-बढ़े होने के कारण संत कबीरदास में नाथपंथी विश्वास सहज रूप में विद्यमान थे।
खुदा के नाम पर दिन में रोजा रखने और रात में गौहत्या करने को लेकर संत कबीरदास ने मुस्लिम समाज को चेताया और कहा: "दिन को रोजा रहतु है, राति हलत हो गाय। यह तो खून वह बंदगी, क्यों कर खुसी सौदाय।।" जीव हत्या को लेकर चेताते हुए उन्होंने कहा :- गुरुक रोजा निमाज गुजारे, बिसमिल बांग पुकारे। भिस्त कहाँ ते हॉहै, जो सांझे मुरगी मारे।।"
 
#KabirDas
#KabirdasJayanti
#संत_कबीरदास
 

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad

@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार