SEBI प्रमुख माधबी बुच पर हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोप: हमारी ज़िन्दगी खुली किताब

हिंडनबर्ग रिसर्च ने सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच पर अडानी ग्रुप से जुड़े ऑफशोर फंड्स में हिस्सेदारी रखने का आरोप लगाया है। बुच ने दावों का खंडन करते हुए उन्हें निराधार और चरित्र हनन बताया। यह लेख आरोपों, बुच की प्रतिक्रिया और मामले को लेकर चल रहे विवाद की पड़ताल करता है।

Aug 11, 2024 - 09:51
Aug 11, 2024 - 11:10
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SEBI प्रमुख माधबी बुच पर हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोप: हमारी ज़िन्दगी खुली किताब

हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के घेरे में SEBI प्रमुख माधबी बुच: 'हमारी ज़िन्दगी खुली किताब'

हाल ही में अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने भारतीय बाजार नियामक सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच पर गंभीर आरोप लगाए हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की अडाणी ग्रुप से जुड़ी एक ऑफशोर कंपनी में हिस्सेदारी है। ये आरोप उस समय सामने आए हैं जब SEBI पहले से ही अडाणी ग्रुप के वित्तीय लेन-देन की जांच कर रहा है।

आरोपों का केंद्रबिंदु: ग्लोबल डायनेमिक अपॉर्च्युनिटी फंड

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है कि माधबी पुरी बुच और उनके पति की मॉरीशस स्थित ग्लोबल डायनेमिक अपॉर्च्युनिटी फंड में हिस्सेदारी है, जिसमें अडाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी ने अरबों डॉलर का निवेश किया है। रिपोर्ट का दावा है कि इस फंड का इस्तेमाल अडाणी ग्रुप के शेयरों के दाम बढ़ाने के लिए किया गया था, जिससे अडाणी ग्रुप को भारी मुनाफा हुआ।

बुच का जवाब: 'निराधार आरोप

इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुच ने इन्हें "निराधार" और "चरित्र हनन" का प्रयास बताया। उन्होंने कहा कि उनकी और उनके पति की वित्तीय स्थिति पूरी तरह से पारदर्शी है। एक जॉइंट स्टेटमेंट में बुच दंपति ने कहा, "हमारा जीवन और फाइनेंसेस एक खुली किताब है।" उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने सभी वित्तीय रिकॉर्ड्स सार्वजनिक करने को तैयार हैं, ताकि सच सामने आ सके।

अडाणी ग्रुप की प्रतिक्रिया

अडाणी ग्रुप ने हिंडनबर्ग के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि रिपोर्ट में उपलब्ध जानकारी का गलत इस्तेमाल किया गया है। ग्रुप के अनुसार, यह आरोप पहले भी निराधार साबित हो चुके हैं, और सुप्रीम कोर्ट ने भी जनवरी 2024 में इन आरोपों को खारिज कर दिया था। अडाणी ग्रुप ने कहा कि हिंडनबर्ग ने अपने फायदे के लिए इस तरह के आरोप लगाए हैं, ताकि वह शेयर बाजार में मुनाफा कमा सके।

हिंडनबर्ग का जवाब: SEBI पर कड़े आरोप

हिंडनबर्ग ने SEBI पर आरोप लगाया कि उसने अडाणी ग्रुप की जांच में लापरवाही बरती और धोखाधड़ी करने वालों की रक्षा करने का प्रयास किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि SEBI ने उनकी रिपोर्ट पर कार्रवाई करने में देरी की और अडाणी ग्रुप को गुप्त सहायता प्रदान की। हिंडनबर्ग का दावा है कि SEBI ने अडाणी ग्रुप के खिलाफ जांच करने के बजाय, उन ब्रोकर्स पर दबाव डाला जो अडाणी के शेयरों में शॉर्ट पोजीशन्स ले रहे थे, ताकि अडाणी ग्रुप के शेयरों की कीमत को बनाए रखा जा सके।

मामले की गंभीरता

यह मामला इसलिए भी गंभीर हो गया है क्योंकि इसमें भारत के वित्तीय नियामक संस्था SEBI के प्रमुख पर सीधे आरोप लगाए गए हैं। हिंडनबर्ग का आरोप है कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने अपनी राजनीतिक रूप से संवेदनशील नियुक्ति से पहले अपने निवेशों को छिपाने की कोशिश की थी। इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि माधबी पुरी बुच ने SEBI के होलटाइम मेंबर बनने से पहले अपने निवेशों को ट्रांसफर किया था।

SEBI की भूमिका पर सवाल

SEBI की भूमिका पर पहले भी सवाल उठाए जाते रहे हैं, लेकिन इस बार के आरोप अधिक गंभीर हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, SEBI ने अडाणी ग्रुप के खिलाफ कार्रवाई करने में देरी की और इसके बजाय हिंडनबर्ग पर निशाना साधा। रिपोर्ट में कहा गया है कि SEBI ने 46 पेज का कारण बताओ नोटिस जारी किया था, जिसमें हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को गलत और गुमराह करने वाला बताया गया था।

निवेशकों के लिए संदेश

इस विवाद के बीच निवेशकों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और SEBI की प्रतिक्रिया ने भारतीय शेयर बाजार में एक अनिश्चितता का माहौल पैदा कर दिया है। ऐसे में निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए और अपने निवेशों को लेकर पूरी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। 

हिंडनबर्ग का अगले कदम

हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए इन आरोपों की जांच करना SEBI के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। यह देखना होगा कि SEBI इन आरोपों का जवाब कैसे देता है और क्या वह अपने प्रमुख पर लगे आरोपों की स्वतंत्र जांच की अनुमति देगा। वहीं, माधबी पुरी बुच और उनके पति ने अपनी ओर से पूरी पारदर्शिता दिखाने का वादा किया है।

यह मामला न केवल SEBI के प्रमुख पर लगे आरोपों का है, बल्कि भारतीय वित्तीय प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है। इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि वित्तीय नियामक संस्थाओं की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है और कैसे उन्हें निष्पक्षता से काम करना चाहिए। इस मामले का आगे क्या परिणाम निकलता है, यह भारतीय वित्तीय बाजारों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। 

इस विवाद के बीच, निवेशकों, नियामकों और अन्य स्टेकहोल्डर्स के लिए यह आवश्यक है कि वे सतर्क रहें और सच को सामने लाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।

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AGUSTYA ARORA युवा पत्रकार BJMC Tilak School of Journalism and Mass Communication C.C.S. University MEERUT