शिक्षा का व्यापारीकरण

"पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया" आखिरकार सरकार को ठोस कदम उठाकर शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक लगानी होगी ठेकेदारों की नकेल कसनी होगी

May 21, 2024 - 17:30
May 24, 2024 - 12:13
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शिक्षा का व्यापारीकरण

प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली

भारतीय शिक्षा प्रणाली विश्व की सबसे प्राचीन शिक्षा प्रणालियों में से एक मानी जाती है। गुरू-शिष्य के बीच वाद-संवाद का चलन दोनों को परम ज्ञान की ओर ले जाता था। ईश्वर का दर्शन, मोक्ष प्राप्ति तथा जीवन के उद्देश्य की पहचान व्यक्ति को देवत्व की ओर ले जाती थी। शिक्षा प्रणाली में सबसे महत्वपूर्ण योगदान गुरूकुल परंपरा का रहा है। यह ऐसा केंद्र माना जाता था। जहां पर दुनिया के प्रकाण्ड विद्वान समय-समय पर अपने गुरूकुल के शिष्यों का ज्ञान वर्धन किया करते थे।

प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति का एक प्रमुख तत्त्व गुरुकुल व्यवस्था रही है। इसमें विद्यार्थी अपने घर से दूर गुरु के घर पर निवास कर शिक्षा प्राप्त करता था। गुरु के समीप रहते हुए विद्यार्थी उसके परिवार का एक सदस्य हो जाता था तथा गुरु उसके साथ पुत्रवत व्यवहार करता था। आत्म-निर्भरता की भावना विकसित होती थी 

पुराने जमाने में गुरु शिष्य की काबिलियत देखकर हर चीज त्याग कर उसे काबिल बनाते थे। शिक्षा देकर उसे आगे बढ़ाते थे, पथ प्रदर्शक बनकर सही राह दिखाते थे, पर आज सही राह दिखाने के बजाय जेबें भरना शिक्षा के नाम पर हो रहा है। कुछ शिक्षक आज भी है जो काबिलियत देखकर पूरी शिक्षा दे रहे हैं और दिल से आगे बढ़ा रहे हैं पर कुछ ऐसे हैं जिससे समाज में शिक्षा के नाम पर हो रहे व्यवसाय के कारण बदनाम भी हो रहें हैं।

चाणक्य-चंद्रगुप्त ऐसे शिक्षक-शिष्य के रूप में जाने जाते है। जिन्होंने शिक्षा की शक्ति का दुनिया को अनुभव कराया तथा दुनिया के सामने यह भी साबित कर दिखाया की बल से ज्य़ादा शिक्षा की ताकत होती है। उस समय भारतीय शिक्षा प्रणाली संसार की सहायता करने का संकल्प, माता पिता की सेवा, दीन-दुखियों की सेवा, दुर्जनों का नाश, अपने धर्म का पालन करना सिखाती थी।

आज की शिक्षा प्रणाली

यह तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि, भारतीय शिक्षा प्रणाली पहले की अपेक्षा काफी बदल चुकी है। भारत में विभिन्न विदेशी आक्रमणकारियों के कारण भारतीय शिक्षा का विखण्डन किया गया. भारतीयों की शिक्षा प्रणाली को खत्म करने का प्रयास किया गया। आज आप देख ही रहें होंगे। किसी समय भारत में शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेशों से हजारों लोग आते थे। लेकिन आज भारत के लोग शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेशों में जा रहें है। कहां गई वह भारतीय शिक्षा प्रणाली जिस समय शिक्षा को शेरनी के दूध की संज्ञा दी जाती थी। और वाकई उस शिक्षा से फलीभूत वह पौरूष सिंहों के पूत्रों से खेला करते थे।

"शिक्षा का मतलब तमसो मा ज्योतिर्गमय" अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने का अगर सबसे बड़ा सूत्र है तो वह शिक्षा है। जिससे पूरा विकास संभव है। सरकारी संस्था की बात करें तो लाभ पहुंचाने के लिए शिक्षा का पूरा प्रयास किया गया जो अनिवार्य था किंतु इसमें भी कुछ लोगों ने मुनाफाखोरी की वजह से गरीब लोगों तक ठीक से पहुंचने नहीं दीया गया जिससे शिक्षा का समुचित लाभ लोगों तक नहीं पहुंच पाया। जो उद्देश्य था वह पूरा नहीं हो पा रहा। आज शिक्षा एक व्यवसाय का रूप ले चुका है। स्कूलों की मनमानी बढ़ती फीस और अभिभावकों का शोषण सब बढ़ता ही जा रहा है। कहा जाता है शिक्षक या गुरु सही मार्ग दर्शक बनकर अपनी भूमिका अदा कर समाज को एक सुंदर भविष्य की कल्पना में ले जाता है और एक सफल व्यक्ति देता है लेकिन आज वही शिक्षक पैसे कमाने में अपनी गरिमा भूलते जा रहे हैं। जीवन के रास्ते पर हम शिक्षा के महत्व को समझ भी रहे हैं। आज शिक्षा नीति की वजह से देश आगे बढ़ रहा है।

वर्तमान समय में आधुनिक शिक्षा प्रणाली अपनी दशा व दिशा खो चुकी है। आज का आम जनमानस शिक्षा को केवल नौकरी पेशे तक सीमित मान बैठा है। और आज के शिक्षण संस्थान भी शिक्षा के बजाय अपनी कमाई पर ज्यादा केंद्रित दिखाई पड़ते है। शिक्षा को तो मानों बिजनेस के रूप में प्रारम्भ कर चुके है। अभी में कुछ समय से अपने भाई के एडमिशन के लिए विभिन्न शिक्षण संस्थानों में भ्रमण कर चुका हूं। जहां पर भी मैंने फीस के विषय में पूछा वहां पर शिक्षण शुल्क असामान्य दिखाई पड़ा। ऐसे में उन आर्थिक रूप से सबल परिवारों के लिए यह शिक्षण शुल्क मन मुताबिक हो सकता है। पर सामान्य परिवार का बच्चा इतनी मंहगाई में शिक्षा ग्रहण कैसे कर पायेगा। ऊपर से कॉलेज के अन्य खर्चे जो की विद्यार्थी को मानसिक रूप से विक्षिप्त कर सकते है। कॉलेज की यूनिफॉर्म के विषय में बात की तो पता चला। यूनिफॉर्म की फीस 8,000 रूपए मात्र है। इसके अलावा एग्जाम फीस का अलग चलन।

विभूतियों का शिक्षा पर विचार

·  "शिक्षा हमारे भविष्य की नींव है, जिसे हमें मजबूती से निर्माण करना चाहिए।" - माहात्मा गांधी

·  "शिक्षा वह रक्षक है, जो सपनों को साकार में बदल सकती है।" - डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

· "शिक्षा हमें स्वतंत्रता की ओर ले जाती है, जहां हमारी सोच की कोई सीमा नहीं होती।" - स्वामी विवेकानंद

· शिक्षा का उद्देश्य तथ्यों को सीखना नहीं होता है बल्कि शिक्षा का मुख्य दिमाग को प्रशिक्षित करना होता है। अल्बर्ट आइन्स्टीन

· शिक्षा की स्थायी प्रासंगिकता: चाणक्य ने अपने मौलिक सिद्धांतों में से एक के रूप में शिक्षा के महत्त्व पर बहुत ज़ोर दिया। उनका दृढ़ विश्वास था कि ज्ञान प्राप्त करना तथा कौशल विकसित करना जीवन में विजय के लिये आवश्यक है और वह अर्थशास्त्र, राजनीति एवं युद्ध सहित विविध क्षेत्रों में सर्वांगीण शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के प्रति अत्यधिक समर्पित थे।ः चाणक्य

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Abhishek Chauhan भारतीय न्यूज़ का सदस्य हूँ। एक युवा होने के नाते देश व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य लिए पत्रकारिता में उतरा हूं। आशा है की आप सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जिससे मैं देश में समाज के लिए कुछ कर सकूं। सादर प्रणाम।