महत्वपूर्ण दिन था 6 फरवरी, फिर भी महिला विमर्श से गायब रहा ‘महिला खतना जागरूकता दिवस’

6 फरवरी को एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन विश्व में मनाया जाता है। यह महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। परंतु यह दुर्भाग्य की बात है कि इस महत्वपूर्ण दिन पर और जिस विषय पर यह मनाया जाता है, वह विषय विमर्श से अछूता है अर्थात वहाँ पर विमर्श की एक […]

Feb 18, 2025 - 06:08
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महत्वपूर्ण दिन था 6 फरवरी, फिर भी महिला विमर्श से गायब रहा ‘महिला खतना जागरूकता दिवस’
Female Genital Mutilation

6 फरवरी को एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन विश्व में मनाया जाता है। यह महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। परंतु यह दुर्भाग्य की बात है कि इस महत्वपूर्ण दिन पर और जिस विषय पर यह मनाया जाता है, वह विषय विमर्श से अछूता है अर्थात वहाँ पर विमर्श की एक क्षीण सी रेखा भी नहीं पहुँचती है। यह जानते हुए भी कि यह विषय बहुत ही महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है, इस विषय पर महिला विमर्श के साथ ही मानवाधिकार के मुद्दे पर भी मौन रहता है।

6 फरवरी को Female genital mutilation अर्थात महिला खतना जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है कि जहां-जहां भी यह अमानवीय प्रथा प्रचलन में है, उसका पालन करने वालों को महिलाओं और लड़कियों की उस पीड़ा के विषय मे जागरूक किया जाए, जो इस कुप्रथा के चलते उनके जीवन का अभिन्न अंग बन जाती हैं।

भारत में भी कुछ मुस्लिम समुदायों में यह पाई जाती है और भारत की उन लड़कियों का विरोध भी कभी-कभी दिखाई देता है, मगर विमर्श में कुछ आया हो ऐसा प्रतीत नहीं होता। क्योंकि उन लड़कियों का विरोध विमर्श में आता तो 6 फरवरी का दिन यूँही चुपचाप न चला गया होता।

Female genital mutilation अर्थात महिलाओं के खतने में बच्चियों की क्लिटोरिस को काट दिया जाता है और जो प्रक्रिया बहुत ही दर्दनाक होती है। इसके अतिरिक्त भी कुछ और तरीके होते हैं, जिनसे लड़कियों का खतना किया जाता है। किसी-किसी प्रक्रिया में क्लिटोरिस को अलग ही नहीं किया जाता है, बल्कि वेजाइनल ओपनिंग को भी छोटा कर दिया जाता है।

हालांकि इस अमानवीय कुप्रथा को लड़कियों की सेक्सुअलिटी को नियंत्रण करने के नाम पर किया जाता है। इस विषय पर लगातार शोध होते रहे हैं और जहां-जहां भी इस कुप्रथा का पालन किया जाता है, वहाँ पर लड़कियों के जीवन में क्या कठिनाइयाँ आती हैं, उनके विषय में लगातार लिखा जाता रहा है।

theconversation.com ने इसे लेकर एक रिपोर्ट जारी की है और बहुत ही चौंकाने वाली जानकारी दी है। इसमें लिखा है कि एक नए शोध में यह बताया गया है कि महिला खतना उन देशों में महिलाओं और लड़कियों की मौत का सबसे बड़ा कारण है, जहां इसका पालन किया जाता है।

हालांकि यह शोध वर्ष 2023 का है, मगर इसमें जो आँकड़े हैं, वह डराने वाले हैं। यह भी हो सकता है कि अब तक ये आँकड़े और बढ़ गए हों। इसमें लिखा है कि जिन 15 देशों में उन्होनें जांच की, वहाँ पर 44,000 महिलाओं और लड़कियों की मौत इस कारण से होती है। इसका अर्थ यह हुआ हर 12 मिनट पर एक लड़की या महिला की मौत। यह कुप्रथा कई देशों में व्यापक रूप में पाई जाती है। यह 25 अफ्रीकी देशों में पाई जाती है और इसके साथ ही मध्य एशिया एवं एशिया में भी पाई जाती है।

इस शोध के अनुसार गुइना में 97% महिलाओं और लड़कियों का खतना हुआ था, तो वहीं माली में यह आंकड़ा 83% है, और सिएरा लियोन में 90% है। मिस्र में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला है जहां पर जहाँ 87% महिलाएँ और लड़कियाँ प्रभावित हैं, और यह बताता है कि यह केवल सहारा अफ्रीका तक ही सीमित नहीं है।

यह किसी भी प्रशिक्षित डॉक्टर के हाथों नहीं करवाया जाता है और यह दाइयों के हाथों करवाया जाता है, मगर फिर भी इस स्वास्थ्य समस्या पर बात नहीं होती है। यह केवल शारीरिक स्वास्थ्य की बात नहीं है, बल्कि जो पीडिताऐं होती हैं, उन्हें मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा का भी सामना करना पड़ता है। इस कुप्रथा को शादी के साथ भी जोड़ा जाता है, इसलिए परिवार अधिकतर इसका विरोध नहीं कर पाते हैं।

अब समस्या यूरोपीय देशों में भी पहुँच रही है। जिन अफ्रीकी देशों में यह कुप्रथा प्रचलन में है, वहाँ के शरणार्थी जिन यूरोपीय देशों में पहुँच रहे हैं, वे इस प्रक्रिया को वहाँ भी जारी रखे हुए हैं। और इसके कारण ब्रिटेन जैसे देशों में भी इसके खिलाफ अभियान आरंभ किया जा रहा है।

University of Birmingham ने इसे लेकर एक जागरूकता अभियान आरंभ किया है। इसके अनुसार वेस्ट मिडलैंड समुदायों में इस मामले के विषय में जागरूकता पैदा की जाएगी। लंदन के बाहर पश्चिमी मिडलैंड्स में FGM की दर सबसे अधिक है, जहां प्रति 1,000 महिलाओं में से लगभग 12-16 महिलाएं इसका शिकार होती हैं।

भारत में भी बोहरा समुदाय की महिलाओं और लड़कियों में यह लागू है, हालांकि वहाँ से अब आवाजें उठने लगी हैं। वॉयस ऑफ अमेरिका की एक रिपोर्ट के अनुसार हालांकि भारत उन 31 देशों में नहीं है, जहां पर यह अमानवीय प्रथा व्यापक स्तर पर चलन में है, मगर फिर भी आँकड़े कहते हैं कि लगभग 80% दाऊदी बोहरा लड़कियों को इससे होकर गुजरना पड़ता है।

यह भी सच है कि पहले यह पता ही नहीं था कि भारत में भी कुछ लड़कियां इसका शिकार होती हैं। मगर वर्ष 2011 में इसकी पीडिताओं ने एक ऑनलाइन अभियान चलाया था। और फिर उसके बाद लोगों को पता चला कि यह भी भारत के एक समुदाय में चलन में है।

प्रश्न घूम फिर कर वहीं आता है कि आखिर विमर्श में इस पीड़ा को लेकर इतना सन्नाटा क्यों है? 6 फरवरी इतना चुपचाप क्यों निकल जाता है?

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