मदरसा कानून को लेकर पाकिस्तान में क्यों मचा है बवाल

पाकिस्तान में इन दिनों मदरसों को लेकर बने कानून पर हंगामा मचा है। पाकिस्तान की सरकार और सबसे बड़ी मजहबी पार्टी जमीयत उलेमा ए इस्लाम (फजल) के बीच इन दिनों रस्साकशी का माहौल है। यह सारा विवाद सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन (अमेंडमेंट) बिल 2024 को लेकर है, जिसे संसद ने अक्टूबर में पारित किया था। दरअसल पाकिस्तान […]

Dec 21, 2024 - 06:34
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मदरसा कानून को लेकर पाकिस्तान में क्यों मचा है बवाल

पाकिस्तान में इन दिनों मदरसों को लेकर बने कानून पर हंगामा मचा है। पाकिस्तान की सरकार और सबसे बड़ी मजहबी पार्टी जमीयत उलेमा ए इस्लाम (फजल) के बीच इन दिनों रस्साकशी का माहौल है। यह सारा विवाद सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन (अमेंडमेंट) बिल 2024 को लेकर है, जिसे संसद ने अक्टूबर में पारित किया था।

दरअसल पाकिस्तान में वर्ष 2019 में पारंपरिक मदरसा बोर्ड ने अपना कुछ नियंत्रण देश की सरकार के जिम्मे करने का फैसला लिया था। मदरसों में दीनी तालीम पर सरकार का कुछ नियंत्रण होना चाहिए, इस बात के साथ वर्ष 2019 में मदरसों के साथ सरकार का समझौता हुआ था। इसमें सरकार के प्रभाव में आने के लिए मदरसे सहमत हुए थे, लेकिन अब पांच वर्ष के बाद मदरसों ने संयुक्त रूप से यह कह दिया है कि वे सरकार का नियंत्रण नहीं चाहते हैं।

पाकिस्तान के मीडिया Dawn के अनुसार Societies Registration (Amendment) Bill 2024 को लेकर हंगामा है। ऐसा माना जाता है कि अक्टूबर में यह विधेयक सीनेट से पारित हो गया था। इसमें मदरसों को लेकर पंजीकरण एवं अन्य मामलों को लेकर नियम हैं। इसमें मदरसों को और भी अधिक स्वायत्ता दी गई है।

इसको लेकर अब इत्तेहाद तंजीमत-ए-मदारिस पाकिस्तान (आईटीएमपी), जोकि प्रमुख मदरसा निरीक्षण बॉडी की एक संस्था है, उसने सोमवार रात मांग की कि सोसाइटी पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम 2024 के लिए एक अधिसूचना जारी की जाए। ऐसा माना जाता है कि जमीयत उलेमा ए इस्लाम (फजल) के समर्थन के एवज में इस विधेयक को लाया गया था, मगर इसमें मदरसों को लेकर इतनी स्वायत्ता मांगी गई कि राष्ट्रपति जरदारी ने कहा कि इस बिल को पास करने से समस्याएं बढ़ने का डर है। उन्होंने चेतावनी दी कि सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के तहत मदरसों को पंजीकृत करने से इस कानून के तहत पहले से स्थापित सोसाइटियां विभाजनकारी प्रवृत्तियों के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं। एक ही सोसाइटी के तहत कई मदरसों को संचालित करने की अनुमति देने से “जागीरदारी” पैदा हो सकती है।

जरदारी का यह भी कहना है कि मदरसे शैक्षणिक संस्थान हैं और शिक्षा एक प्रांतीय विषय है। इस विधेयक में मदरसा तालीम पर भी नियम हैं। इसको लेकर अब सभी लोग आमने सामने हैं। जहां सरकार का अपना मत है तो वहीं कट्टरवादी पार्टियों का अपना पक्ष है और वे इसे पारित कराने को लेकर हर मुमकिन कोशिश में हैं। जरदारी का कहना है कि कानून में बदलाव करने से देश को एफएटीएफ जैसी संस्थाओं से भी आलोचना या प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है। अंतर्राष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़ सकता है।

इसको लेकर पाकिस्तान के स्वतंत्र विचार वाले लोग भी चिंतित हैं। पत्रकार अमीर जिया ने एक्स पर मदरसों के नियंत्रण को लेकर लिखा। उन्होंने पोस्ट किया कि अधिकतर मुस्लिम देशों में मदरसों का नियंत्रण किया जाता है। पाकिस्तान में भी वर्ष 2019 में एक अच्छा कदम उठाते हुए मदरसों को देश की शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत लाया गया था। इससे पांच पुराने मदरसा बोर्डों का एकाधिकार भी टूट गया। यह सही दिशा में उठाया गया कदम था। लेकिन, अब मौलाना फजलुर रहमान के नेतृत्व में पुराने नेता सुधारों की प्रक्रिया को उलटना चाहते हैं। शहबाज सरकार के समझौता करने की संभावना है क्योंकि इसमें वैधता का अभाव है और वह शक्तिशाली धार्मिक लॉबी को नाराज नहीं करना चाहेगी।

उन्होंने लिखा कि यह विडंबना है कि एआई और आईटी के इस युग में हमारे नेता और मजहबी अभिजात वर्ग अभी भी यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि मदरसों को कैसे पंजीकृत किया जाए। दुनिया अंतरिक्ष में छलांग लगा रही है और पाकिस्तान अतीत में ही अटका हुआ है। 250 मिलियन से अधिक लोगों वाले इस देश के लिए यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।

सोशल मीडिया पर पाकिस्तान सरकार की किरकिरी भी हो रही है। पीटीआई के नेता तैमूर सलीम खान जागरा ने एक्स पर पोस्ट किया कि सरकार ने मदरसा विधेयक को खारिज करने में राष्ट्रपति जरदारी का समर्थन किया है, जिसे सरकार ने स्वयं डिजाइन किया, उसका मसौदा तैयार किया, मतदान किया और संसद के दोनों सदनों से पारित किया, जिसके लिए राष्ट्रपति जरदारी के बेटे ने 26वें संशोधन के लिए समर्थन प्राप्त करने हेतु जेयूआईएफ के साथ बातचीत की और प्रतिबद्धता जताई। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि मदरसा बिल लोगों को काबू में लाने के लिए कानून है, उन्हें तालीम देने के लिए नहीं।

 

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