जबलपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विकास यात्रा और स्वाधीनता संग्राम में योगदान

सर्व समावेशी दर्शन के आलोक में हिंदुत्व ही राष्ट्रत्व है। सभी को एक मानना ही हिंदुत्व है। वसुधैव कुटुम्बकम् अंतरात्मा में निहित है। “सर्वे भवन्तु सुखिन:” मूल तत्व है और सेवा ही धर्म है। राष्ट्र और समाज के लिए सर्वस्व अर्पित करना, यह मूल भाव है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का। सन् 1925 में महान् स्वतंत्रता […]

Nov 7, 2024 - 04:14
Nov 7, 2024 - 09:31
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जबलपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विकास यात्रा और स्वाधीनता संग्राम में योगदान

सर्व समावेशी दर्शन के आलोक में हिंदुत्व ही राष्ट्रत्व है। सभी को एक मानना ही हिंदुत्व है। वसुधैव कुटुम्बकम् अंतरात्मा में निहित है। “सर्वे भवन्तु सुखिन:” मूल तत्व है और सेवा ही धर्म है। राष्ट्र और समाज के लिए सर्वस्व अर्पित करना, यह मूल भाव है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का। सन् 1925 में महान् स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार ने विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। तभी से संघ ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम वरन हर संकट काल में अपना सर्वस्व अर्पित कर देश और समाज की रक्षा की है। यह क्रम अनवरत प्रवहमान है। राष्ट्रीय आपदाओं और आपातकालीन परिस्थितियों में संघ के कार्यकर्ताओं ने बलिदान देकर तिरंगे की आन -बान -शान बनाए रखी। बाढ़ हो या फिर भूकंप, जहां भी त्रासदी आई वहां संघ के कार्यकर्ता सेवा करने पहुंच जाते हैं। मेघों की गर्जना हो या ठिठुरती रातें या फिर गर्म हवा के झोके, ये हर मौसम में तैयार रहते हैं। संकल्प यही कि देश की सेवा कर लोगों की जीवन रक्षा कर सकें। राष्ट्रत्व की भावना से लेकर 1925 में जो बीज बोया गया था वह आज देश में कई शाखाओं और अनेक स्वरुपों में दृष्टिगोचर होता है। संघ के हर स्वयंसेवक यही चाहता कि देश सेवा में ही उसकी पूर्णाहुति हो और भारत परम वैभव पर आरुढ़ हो।

तीन बार जबलपुर आए थे डॉ. हेडगेवार

संघ के वरेण्य स्वयंसेवकों एवं श्री दीपक मुंजे जी से प्राप्त जानकारी और दस्तावेजों के अनुसार संस्कारधानी में भी बड़ी संख्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता राष्ट्रत्व की भावना के साथ कार्य कर रहे हैं। यहां संघ के प्रथम सरसंघचालक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने पहली शाखा में गौरवमयी उपस्थिति दर्ज कराई थी। डॉ. हेडगेवार का तीन बार जबलपुर प्रवास हुआ था। 2 मार्च 1936 को वे पहली बार जबलपुर में एक विवाह समारोह में सम्मिलित होने आए थे तब उन्होंने संघ की पहली शाखा में अपनी गरिमामयी उपस्थिति से सभी स्वयंसेवकों को भाव-विभोर कर दिया था। कृष्ण कुंज में संघ कार्यालय था और शाखा लगती थी। तब पहले नगर संघचालक की कमान पंडित कुंजीलाल दुबे को दी गई थी। उसके बाद 24 मार्च 1939 में जबलपुर और नरसिंहपुर में डॉ. हेडगेवार का आगमन हुआ। वे तीसरी बार 20 अप्रैल 1940 को जबलपुर आए थे। तीनों में में डॉ. हेडगेवार में संघ के साथ स्वाधीनता संग्राम में सहभागिता के लिए प्रेरित किया।

सिमरिया वाली रानी की कोठी से केशव कुटी तक

जबलपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रारंभ होने के बारे में संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक अखिलेश सप्रे ने बताया कि उनके पिता वनमाली दामोदर सप्रे बताते हैं कि जबलपुर में संघ का कार्य आरंभ करने के लिए संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री आंबेकर और एकनाथ रानाडे यहां आये थे। उन दिनों संघ का कार्यालय सिमरिया वाली रानी की कोठी में था। किन्हीं परिस्थितियों के कारण वह स्थान छोड़ना पड़ा, तब संघ कार्यालय मेरे निज निवास “कृष्णकुंज” राईट टाऊन में स्थानांतरित किया गया। ज्येष्ठ भ्राता कृष्णराव सप्रे जी का महनीय योगदान रहा। तत्पश्चात वर्तमान संघ कार्यालय केशव कुटी का निर्माण कार्य तत्कालीन संघ प्रचारक रामाराव नायडू की देख-रेख में आरम्भ हुआ। केशव कुटी का निर्माण पूर्ण होने के पश्चात संघ कार्यालय मेरे निवास से केशव कुटी स्थानांतरित किया गया। जिसका उद्घाटन करने तत्कालीन सरसंघचालक गुरुजी का आगमन जबलपुर हुआ था।

सभी सरसंघचालकों का सानिध्य और आशीर्वाद मिला – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्रमशः डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टर साहब(1925-1940)माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी(1940-1973)मधुकर दत्तात्रेय देवरस उपाख्य बालासाहेब देवरस (1973-1993)प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया (1993-2000)कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन उपाख्य सुदर्शनजी (2000-2009)। डॉ॰ मोहन राव मधुकर राव भागवत का 2009 से सतत् वर्तमान तक – संस्कारधानी को समय-समय पर सानिध्य और आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। पूजनीय सरसंघचालक सुदर्शन जी की अभियांत्रिकी की पढ़ाई जबलपुर से ही हुई है।

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का जबलपुर में पांच दिवसीय प्रवास

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत का पांच दिवसीय प्रवास जबलपुर में 7 नवम्बर से 11नवम्बर तक रहेगा। इस पांच दिवसीय प्रवास के विविध प्रयोजन हैं, जिसके तारतम्य में 10 नवम्बर, सायं 4.30बजे ”वर्तमान में विश्व कल्याण हेतु हिंदुत्व की आवश्यकता ” विषय पर प्रबोधन प्राप्त होगा।” गौरतलब है कि अपने पूर्व प्रवास के दौरान दिनांक 19 नवम्बर 2022 की सांध्य बेला में संस्कारधानी के मानस भवन में आयोजित प्रबुद्ध जन गोष्ठी में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने राष्ट्र की अवधारणा, हिंदुत्व, धर्म दर्शन, संस्कृति, वसुधैव कुटुम्बकम्, विविधता में एकता, प्रकृति संरक्षण संविधान के दर्शन पर विहंगम दृष्टि डालते हुए अपने अमृत विचार व्यक्त किए थे ।

जबलपुर के संदर्भ में स्वतंत्रता संग्राम में संघ का अवदान

स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अभूतपूर्व योगदान रहा है परंतु दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह रहा कि जिस तरह से षडयंत्रपूर्वक तथाकथित सेक्युलर, वामी और परजीवी इतिहासकारों ने क्रांतिकारियों को आतंकवादी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को फासिस्ट बताकर स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को धूमिल किया है, उसी प्रकार कुत्सित प्रयास कर संघ के योगदान को भी धूमिल किया है। जबलपुर में भारत छोड़ो आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका संगठनात्मक रूप से अभूतपूर्व रही है, उनके सहयोग से आंदोलन को गति मिली। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में दादा बाबूराव परांजपे के साथ अनेक स्वयंसेवक भर्ती हुए और स्वाधीनता संग्राम में महती योगदान दिया। ब्रिटिश फौज में भर्ती होकर सैनिकों को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया। वस्तुतः ठीक 1947 के पूर्व ब्रिटिश फौज में जो भी अंतर्विरोध उत्पन्न हुए, उसमें स्वयंसेवकों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। जबलपुर ब्रिटिश सरकार का सबसे महत्वपूर्ण सामरिक केन्द्र था। यहां सन् 1946 में कोर आव सिग्नल के 1700 सैनिकों ने जिसमें सम्मिलित स्वयंसेवकों की महत्वपूर्ण भूमिका थी, ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ दिया और एक दृष्टि से यह सफल भी रहा। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार समझ गई थी कि अब शीघ्र ही भारत छोड़ना होगा।

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