चार बार के विधायक बने जर्मनी के नागरिक, हाईकोर्ट ने लगाया लाखों का जुर्माना

भारत में राजनीति की दुनिया कभी-कभी ऐसे विवादों से गूंज उठती है, जिनकी कल्पना करना भी मुश्किल होता है। तेलंगाना हाई कोर्ट का हालिया निर्णय इस बात का गवाह है, जहां अदालत ने एक ऐसे नेता को दोषी ठहराया, जो भारत के नागरिक होने का दावा करता रहा लेकिन वह वास्तव में जर्मनी का नागरिक […]

Dec 11, 2024 - 15:04
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चार बार के विधायक बने जर्मनी के नागरिक, हाईकोर्ट ने लगाया लाखों का जुर्माना

भारत में राजनीति की दुनिया कभी-कभी ऐसे विवादों से गूंज उठती है, जिनकी कल्पना करना भी मुश्किल होता है। तेलंगाना हाई कोर्ट का हालिया निर्णय इस बात का गवाह है, जहां अदालत ने एक ऐसे नेता को दोषी ठहराया, जो भारत के नागरिक होने का दावा करता रहा लेकिन वह वास्तव में जर्मनी का नागरिक था। यह मामला अब देशभर में चर्चा का विषय बन गया है।

तेलंगाना हाई कोर्ट ने हाल ही में यह फैसला सुनाया कि भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के नेता चेन्नामनेनी रमेश जर्मन नागरिक हैं और उन्होंने वेमुलावाड़ा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था। कोर्ट के अनुसार, रमेश ने जाली दस्तावेजों के जरिए खुद को भारतीय नागरिक साबित किया और विधानसभा चुनावों में भाग लिया।

आरोप और सजा

यह मामला कांग्रेस नेता आदी श्रीनिवास द्वारा दायर की गई याचिका से सामने आया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि रमेश ने झूठे दस्तावेजों के आधार पर चुनाव लड़ा और विधानसभा चुनाव में सफलता पाई। तेलंगाना हाई कोर्ट ने इस मामले में गंभीर टिप्पणी करते हुए रमेश पर 30 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। इसमें से 25 लाख रुपये आदी श्रीनिवास को दिए जाएंगे। श्रीनिवास ने नवंबर 2023 में रमेश को विधानसभा चुनाव में हराया था।

अदालत ने यह भी कहा कि रमेश जर्मन दूतावास से ऐसे दस्तावेज पेश करने में नाकाम रहे, जो यह साबित कर सकें कि वे अब जर्मनी के नागरिक नहीं हैं। अदालत का यह आदेश एक बड़ी सजा के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि रमेश जैसे नेता ने भारतीय राजनीति में यह गहरी छाप छोड़ी थी, लेकिन उनके नागरिकता संबंधी विवाद ने पूरे मामले को एक नया मोड़ दे दिया है।

चेन्नामनेनी रमेश का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प और विवादास्पद रहा है। वह वेमुलावाड़ा विधानसभा सीट से चार बार विधायक चुने गए। 2009 में उन्होंने तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के टिकट पर चुनाव जीता था, जबकि 2010 से 2018 तक उन्होंने बीआरएस के टिकट पर तीन बार जीत दर्ज की थी। उनके राजनीतिक करियर ने उन्हें राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया, लेकिन अब यह विवाद उनके पूरे करियर पर एक प्रश्नचिह्न लगा देता है।

इस विवाद की शुरुआत तब हुई, जब साल 2020 में केंद्र सरकार ने तेलंगाना हाई कोर्ट को बताया कि रमेश के पास जर्मन पासपोर्ट था, जो 2023 तक वैध था। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश जारी किया कि रमेश की भारतीय नागरिकता को समाप्त कर दिया जाए, क्योंकि उन्होंने आवेदन के दौरान महत्वपूर्ण जानकारी छुपाई थी। गृह मंत्रालय का कहना था कि अगर रमेश ने यह बताया होता कि वह एक साल तक भारत में नहीं रहे थे, तो उन्हें भारतीय नागरिकता नहीं मिलती।

इस मामले में रमेश ने गृह मंत्रालय के आदेश को अदालत में चुनौती दी थी। अदालत ने उन्हें यह निर्देश दिया कि वे यह स्पष्ट करें कि उन्होंने अपना जर्मनी का पासपोर्ट सरेंडर किया है और यह भी साबित करें कि उन्होंने जर्मनी की नागरिकता छोड़ दी है। इसके बाद ही अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाया।

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