उच्च न्यायालय ने कहा, ‘सर तन से जुदा’ का नारा भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए भी एक चुनौती

प्रयागराज। सितंबर माह में बरेली में हुई हिंसा के सिलसिले में एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि ‘गुस्ताख-ए-नबी की एक ही सज़ा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा’ (पैगंबर का अपमान करने की एक ही सज़ा है: सिर कलम करना, सिर कलम करना) […] The post उच्च न्यायालय ने कहा, ‘सर तन से जुदा’ का नारा भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए भी एक चुनौती appeared first on VSK Bharat.

Dec 19, 2025 - 21:50
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प्रयागराज। सितंबर माह में बरेली में हुई हिंसा के सिलसिले में एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि ‘गुस्ताख-ए-नबी की एक ही सज़ा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा’ (पैगंबर का अपमान करने की एक ही सज़ा है: सिर कलम करना, सिर कलम करना) का नारा कानून के अधिकार के साथ-साथ भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए भी एक चुनौती है, क्योंकि यह लोगों को हथियारबंद विद्रोह के लिए उकसाता है।

जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि ऐसे नारे का इस्तेमाल न सिर्फ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला काम) के तहत दंडनीय होगा, बल्कि यह इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों के भी खिलाफ है।

न्यायालय ने कहा, “गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा सर तन से जुदा, सर तन से जुदा” का नारा लगाना, जिसमें नबी (पैगंबर) का अपमान करने पर सिर कलम करने की सज़ा दी जाती है, यह भारत की संप्रभुता और अखंडता के साथ-साथ भारतीय कानूनी व्यवस्था को भी चुनौती देने जैसा है, जो गंभीर संवैधानिक उद्देश्य पर आधारित है, जिसकी जड़ें लोकतांत्रिक सिद्धांतों में हैं।”

न्यायालय ने कहा कि भीड़ द्वारा लगाया गया कोई भी नारा जो कानून द्वारा दी गई सही सज़ा के खिलाफ मौत की सज़ा देता है, वह न सिर्फ संवैधानिक मकसद के खिलाफ है, बल्कि भारतीय कानूनी सिस्टम के कानूनी अधिकार के लिए भी एक चुनौती है।

न्यायालय ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जो दिखाते हैं कि पैगंबर मोहम्मद ने कुछ लोगों द्वारा अपमान किए जाने के बावजूद दया दिखाई थी। न्यायालय ने कहा कि पैगंबर ने कभी भी ऐसे व्यक्ति का सिर कलम करने की इच्छा नहीं जताई या ऐसा करने को नहीं कहा।

न्यायालय ने राय दी कि अगर इस्लाम का कोई भी अनुयायी पैगंबर का अपमान करने वाले किसी भी व्यक्ति का सिर कलम करने का नारा लगाता है, तो यह पैगंबर मोहम्मद के आदर्शों का अपमान है।

न्यायालय ने कहा कि केस डायरी में पर्याप्त सबूत थे जो दिखाते हैं कि वह एक गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा था, जिसने न केवल भारतीय कानूनी प्रणाली के अधिकार को चुनौती देने वाले आपत्तिजनक नारे लगाए, बल्कि पुलिस कर्मियों को चोट भी पहुंचाई और सार्वजनिक और निजी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया। “इसलिए, यह अदालत आवेदक को जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं पाती है”, यह निर्णय सुनाते हुए न्यायालय ने जमानत याचिका खारिज कर दी।

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