हत्या से पहले शेख मुजीब ने किसे फोन किया था? जब बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति पर चलीं ताबड़तोड़ गोलियां

Sheikh Mujibur Rahman Birth Anniversary: सालों से पाकिस्तान के खिलाफ आजादी की जंग लड़ने के बाद शेख मुजीब-उर-रहमान ने भारत की मदद से अलग देश बांग्लादेश तो हासिल कर लिया पर उन्हें इस बात का अहसास भी नहीं रहा होगा कि उनके अपने ही लोग उनकी हत्या कर देंगे. 17 मार्च 1920 को जन्मे बंग बंधु शेख मुजीब-उर-रहमान की जयंती पर आइए जान लेते हैं उनकी हत्या की पूरी कहानी.

Mar 17, 2025 - 08:41
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हत्या से पहले शेख मुजीब ने किसे फोन किया था? जब बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति पर चलीं ताबड़तोड़ गोलियां
हत्या से पहले शेख मुजीब ने किसे फोन किया था? जब बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति पर चलीं ताबड़तोड़ गोलियां

पाकिस्तान के खिलाफ सालों तक आजादी की जंग लड़ने के बाद शेख मुजीब-उर-रहमान ने भारत की मदद से अलग देश बांग्लादेश तो हासिल कर लिया पर उन्हें इस बात का अहसास भी नहीं रहा होगा कि उनके अपने ही लोग उनकी हत्या कर देंगे. 17 मार्च 1920 को जन्मे बंग बंधु शेख मुजीब-उर-रहमान की जयंती पर आइए जान लेते हैं उनकी हत्या की पूरी कहानी.

बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ रहे शेख मुजीब-उर-रहमान ने 25 मार्च 1971 की आधी रात को स्वाधीनता की घोषणा कर दी थी. इसके बाद उनको गिरफ्तार कर पाकिस्तान की मियांवाली जेल में रखा गया. करीब नौ महीने तक वह जेल में रहे. इस बीच, दिसंबर 1971 में बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी की मदद कर भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया.

इसके बाद सात जनवरी 1972 की रात को शेख मुजीब-उर-रहमान को पाकिस्तान ने रिहा कर दिया और वह लंदन चले गए. वहां दो दिन रुक कर नौ जनवरी की शाम को ढाका से वह नई दिल्ली पहुंचे और यहां कुछ घंटे रुकने के बाद बांग्लादेश चले गए.

बांग्लादेश के पुनर्निर्माण में जुटे

बांग्लादेश पहुंच कर शेख मुजीब ने युद्ध की विभीषिका झेल चुके अपने देश का पुनर्निर्माण शुरू किया. राष्ट्रपति के रूप में एक ओर वह अपने देश की तरक्की में लगे थे तो दूसरी ओर, कई चीजें उनके हाथ से निकलने लगी थीं. साल 1975 तक आते-आते बांग्लादेश में भ्रष्टाचार बढ़ने लगा. उच्च पदों पर बैठे लोग भाई-भतीजावाद को शह देने लगे. इससे आम लोगों में तो असंतोष बढ़ा ही सेना में भी उथल-पुथल मचने लगी थी.

सेना ने बोला राष्ट्रपति आवास पर हमला

सेना में असंतोष का ही नतीजा था कि 15 अगस्त 1975 की सुबह कुछ जूनियर अफसरों ने बांग्लादेश के राष्ट्रपति के 32 धनमंडी स्थित सरकारी आवास पर हमला बोल दिया. गोलियों की आवाज सुनने के बाद शेख मुजीब ने बांग्लादेश के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल शफीउल्लाह को फोन किया.

बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में जनरल शफीउल्लाह के हवाले से बताया था कि उस वक्त शेख मुजीब काफी नाराज थे. उन्होंने सेनाध्यक्ष से कहा कि सैनिकों ने मेरे आवास पर हमला कर दिया है. उनको लौटने का आदेश दो. इस पर सेनाध्यक्ष ने उनसे पूछा था कि क्या आप आवास से बाहर आ सकते हैं?

एक-एक कर पूरे परिवार को मार डाला

हालांकि, तब तक राष्ट्रपति आवास में सैनिक घुस चुके थे और नीचे गोलीबारी होने लगी थी. इसको सुनकर शेख मुजीब सीढ़ियों से नीचे आ रहे थे. तभी उन पर गोली चला दी गई. शेख मुजीब मुंह के बल सीढ़ियों पर लुढ़क गए नीचे तक गिरते चले गए. इसके बाद उनकी बेगम को गोली मारी गई. फिर एक-एक कर उनके बेटों और बहुओं को भी मौत के घाट उतार दिया गया. शेख के सबसे छोटे बेटे रसेल उस वक्त केवल 10 साल के थे पर उनको भी नहीं बख्शा गया.

इस वारदात के वक्त शेख मुजीब की बेटियां शेख हसीना और रेहाना जर्मनी में थीं. उनके बांग्लादेश लौटने पर पाबंदी लगा दी गई. इसके बाद उनको राजनीतिक शरण दी थी.

सबको बड़े गड्ढे में दफन किया

वरिष्ठ पत्रकार सुभाष चक्रवर्ती के हवाले से बीबीसी ने लिखा है कि शेख मुजीब न केवल मारा गया, बल्कि बेरहमी से उनको घसीट कर घर से बाहर लाया गया. बाहर एक ट्रक में उनको फेंक दिया गया. अगले दिन यानी 16 अगस्त की सुबह बांग्लादेशी सैनिकों ने शेख मुजीब के परिवार के सारे शवों को इकट्ठा किया. उनको छोड़ कर बाकी सभी शवों को बेनानी कब्रिस्तान के एक बड़े गड्ढ़े में दफन कर दिया. शेख मुजीब के पार्थिव शरीर को हेलिकॉप्टर से उनके गांव टांगीपारा ले गए.

कपड़ा धोने के साबुन से नहलाया गया

पूरे गांव को बांग्लादेशी सैनिकों ने घेर लिया था, जिससे लोग उनकी नमाज-ए-जनाजा में शामिल न हो पाएं. सैनिक इस बात पर जोर दे रहे थे कि जल्द से जल्द शव को दफना दिया जाए. हालांकि गांव के ही एक मौलाना इस बात पर अड़ गए कि बिना नहलाए शव को दफन नहीं किया जा सकता. उस वक्त नहलाने के लिए कोई साबुन नहीं था. इसलिए शेख को कपड़ा धोने वाले साबुन से नहला कर उनके पिता के बगल में दफन कर दिया गया.

इंदिरा गांधी ने पहले ही जताई थी आशंका

भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को शेख मुजीब की हत्या की साजिश की आशंका पहले से थी. बताया जाता है कि साल 1975 में ही इंदिरा गांधी की जमैका में शेख मुजीब-उर-रहमान से मुलाकात हुई थी. तब उन्होंने शेख मुजीब की सुरक्षा पर चिंता जताई थी. हालांकि, शेख मुजीब को नहीं लगा था कि कोई बंगाली भी उन्हें मार सकता है.

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,