जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुस्लिमों पर उत्पीड़न और धर्मांतरण का दबाव: कॉल फॉर जस्टिस की रिपोर्ट में गंभीर आरोप

नई दिल्ली । जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में गैर-मुस्लिम छात्रों और शिक्षकों के उत्पीड़न और कथित कन्वर्जन के मुद्दे पर कॉल फॉर जस्टिस द्वारा गठित तथ्यान्वेषण समिति ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की। रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि पिछले दो दशकों में कई हिंदू और खासकर अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और […]

Nov 14, 2024 - 19:01
Nov 14, 2024 - 20:18
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जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुस्लिमों पर उत्पीड़न और धर्मांतरण का दबाव: कॉल फॉर जस्टिस की रिपोर्ट में गंभीर आरोप

जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुस्लिमों पर उत्पीड़न और धर्मांतरण का दबाव: कॉल फॉर जस्टिस की रिपोर्ट में गंभीर आरोप

नई दिल्ली। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में गैर-मुस्लिम छात्रों और शिक्षकों के उत्पीड़न तथा कथित धर्मांतरण के मामले पर कॉल फॉर जस्टिस द्वारा गठित तथ्यान्वेषण समिति ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले दो दशकों में कई गैर-मुस्लिम छात्रों और शिक्षकों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सदस्यों, को भेदभाव, उत्पीड़न और धर्मांतरण का सामना करना पड़ा है।

इस समिति में पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शिव नारायण ढींगरा, पूर्व पुलिस आयुक्त एस.एन. श्रीवास्तव समेत अन्य प्रमुख सदस्य शामिल हैं। समिति ने जामिया में गैर-मुस्लिमों के साथ हुए भेदभाव और उत्पीड़न के मामलों की गहन जांच की और अपनी रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और दिल्ली के उपराज्यपाल को भेजने का निर्णय लिया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, कई गैर-मुस्लिम छात्रों और शिक्षकों ने अपने साथ हुए भेदभाव की शिकायत की है, लेकिन उनमें से कुछ ने अपनी पहचान गोपनीय रखने का आग्रह किया है, क्योंकि उन्हें डर था कि इससे उन्हें और भी अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। रिपोर्ट में एक सहायक प्रोफेसर ने दावा किया कि उन्हें उनके शोध कार्य को लेकर अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा। एक अन्य प्रोफेसर ने आरोप लगाया कि उन्हें मुस्लिम सहकर्मियों के मुकाबले कम सुविधाएं दी गईं, जबकि बाद में नियुक्त हुए मुस्लिम प्रोफेसरों को सभी सुविधाएं प्रदान की गईं।

रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि कुछ प्रोफेसर कक्षा में छात्रों पर इस्लाम का पालन करने का दबाव डालते थे। एक शिक्षक ने कहा कि उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जो छात्र इस्लाम का अनुसरण नहीं करेंगे, उन्हें शिक्षा पूरी करने में समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। कई गैर-मुस्लिम छात्र इस तरह के भेदभाव और उत्पीड़न के कारण विश्वविद्यालय छोड़ने पर मजबूर हो गए।

समिति के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एस.एन. ढींगरा ने बताया कि इस जांच में 27 गवाहों ने अपने बयान दिए, जिसमें 7 प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर, और पीएचडी स्कॉलर शामिल हैं। एक फैकल्टी सदस्य को "वंदे मातरम" गाने के कारण उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जबकि कुछ मामलों में विधवा महिला कर्मचारियों पर मुस्लिम से विवाह करने का दबाव डाला गया। रिपोर्ट में लव जिहाद जैसे मामले भी सामने आए हैं, और मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न का उल्लेख किया गया है।

समिति ने गृह मंत्रालय से इस मामले में तत्काल कार्रवाई की मांग की है। समिति का मानना है कि किसी भी व्यक्ति पर धर्मांतरण का दबाव डालना या उसे मानसिक और शारीरिक रूप से उत्पीड़ित करना भारत के संविधान के खिलाफ है, जो प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।

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