भारत में आज औरंगजेब होता तो कैसे होते हालात? अफगानिस्तान के पूर्व उप-राष्ट्रपति ने तालिबान से की तुलना, कहा- बदल गई दिल्ली!

अमरुल्लाह सालेह अफगानिस्तान के पूर्व उप-राष्ट्रपति थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में अमेरिका के अफगानिस्तान से बाहर निकलने को धोखा करार दिया है। उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान 29 फरवरी 2020 को तालिबान के साथ दोहा समझौता किया था, जिसके बाद ही तालिबान, अफगानिस्तान पर कब्जा करने में कामयाब हो पाया।

Mar 27, 2025 - 11:13
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भारत में आज औरंगजेब होता तो कैसे होते हालात? अफगानिस्तान के पूर्व उप-राष्ट्रपति ने तालिबान से की तुलना, कहा- बदल गई दिल्ली!
काबुल: भारत में पिछले दिनों औरंगजेब के नाम पर संग्राम मचा हुआ था। और अब अफगानिस्तान के पूर्व उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने बताया है कि अगर आज 2025 में भारत में औरंगजेब का शासन होता, तो वो तालिबान से कितना अलग होता? आपको बता दें कि अमरुल्लाह सालेह पिछले करीब 25 सालों से तालिबान के खिलाफ जंग लड़ते आए हैं। उनका जन्म अफगानिस्तान के उत्तर-पूर्वी हिस्से पंजशीर में 1972 में हुआ था। 1992-1996 के गृहयुद्ध के दौरान देश की कम्युनिस्ट सरकार से लड़ने के बाद वे अहमद शाह मसूद के नॉर्दर्न एलायंस में शामिल हो गए थे। 1997 में तालिबान के खिलाफ लड़ाई में अमरुल्लाह सालेह की वजह से ही नॉर्दर्न एलायंस को भारत का समर्थन हासिल हुआ था। अमरुल्लाह सालेह हमेशा से भारत के करीब रहे हैं और अशरफ गनी की सरकार के दौरान वो अफगानिस्तान के उप-राष्ट्रपति थे।तालिबान ने जब 2021 में अफगानिस्तान पर कब्जा किया था उस वक्त भी अमरुल्लाह सालेह अफगानिस्तान के उप-राष्ट्रपति थे। हालांकि तालिबान के शासन के बाद वो गुप्त स्थान से अभी भी तालिबान शासन के खिलाफ नॉर्दर्न एलायंस का नेतृत्व कर रहे हैं। पंजशीर में अभी भी तालिबान का कब्जा पूरी तरह से नहीं हो पाया है। अमरुल्लाह सालेह अब अफगानिस्तान की निर्वासित सरकार के प्रमुख हैं, जिसका मकसद देश में एक लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना करना है। उन्होंने डेक्कन हेराल्ड को दिए गये एक इंटरव्यू में अमेरिका पर धोखा देने के आरोप लगाए हैं।अमेरिका पर लगाए धोखा देने के आरोपअमरुल्लाह सालेह ने डेक्कन हेराल्ड को दिए गये इंटरव्यू में अमेरिका के अफगानिस्तान से बाहर निकलने को धोखा करार दिया है। उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान 29 फरवरी 2020 को तालिबान के साथ दोहा समझौता किया था, जिसके बाद ही तालिबान, अफगानिस्तान पर कब्जा करने में कामयाब हो पाया। उन्होंने कहा कि ये एक सुनियोजित तख्तापलट था। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के साथ अमेरिका ने जो विश्वासघात किया है, उसकी कोई भरपाई नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि लोगों को लगा कि तालिबान ने अचानक काबुल पर कब्जा कर लिया और अफगानिस्तान की सेना मुकाबला नहीं कर सकी। जबकि हकीकत ये है कि कई महीने पहले से अफगानिस्तान की सेना की अमेरिका ने मदद काफी कम कर दी थी, जिससे सेना युद्ध लड़ने के काबिल ही नहीं रह गई थी।डेक्कन हेराल्ड को दिए गये इंटरव्यू में अमरुल्लाह सालेह ने अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति की तुलना औरंगजेब से करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई अभी भी तालिबान के खिलाफ जारी है और वो अभी भी लगातार देश के लोगों के साथ संपर्क में है। उन्होंने कहा कि "तालिबान जिस इस्लाम की व्याख्या कर अफगानिस्तान में शासन चला है, ज्यादातर मुस्लिम देशों ने उस व्याख्या को गलत कहा है। तालिबान वही कर रहा है जो उसने पाकिस्तान के मदरसों में सीखा है।" उन्होंने कहा कि "पश्चिमी देशों ने आतंकी इस्लामिक विचारधारा के साथ समझौता किया है और पाकिस्तान ने दशकों से मजहबी उन्माद को पनाह दी है और वो विचारधारा पर अफगानिस्तान पर शासन कर रहा है।तालिबान से की औरंगजेब की तुलना अमरुल्लाह सालेह ने कहा है कि तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान को नर्क बना दिया है। प्रमुख शहरों और देश के उत्तरी क्षेत्रों में हालात भयावह हैं। इन क्षेत्रौं में तालिबान अभी भी अपना आधार नहीं बना पाया है। उन्होंने कहा कि "अगर तुलना के आधार पर कहा जाए तो यह ऐसा है जैसे 2025 में औरंगजेब को भारत में फिर से स्थापित किया जा रहा हो। क्या यह किसी बुरे सपने जैसा नहीं लगता? तालिबान के शासन में अफगानिस्तान के हालात उससे भी बदतर हैं।" वहीं तालिबान शासन के साथ भारत की हालिया दिनों में होने वाली बातचीत और जुड़ाव को लेकर उन्होंने कहा कि "यह एक कड़वी सच्चाई और कठोर वास्तविकता है कि हम अब मूल्यों और विचारधाराओं से आकार लेने वाले युग में नहीं रह गए हैं। इसके बजाय, हमारा समय व्यावहारिकता से तय होता है। एक ऐसा बदलाव जो किसी भी देश को नहीं बख्शता, यहां तक कि भारत को भी नहीं।"उन्होंने कहा कि "भारत तालिबान के साथ बातचीत करके, उनकी संरचना में घुसपैठ करके अपने देश में आतंकवाद के जोखिम को करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। नई दिल्ली के सामने एक नाजुक विकल्प हैं, मूल्यों को बचाने के लिए, शुद्ध व्यावहारिकता को अपनाने के बीच एक महीन रेखा पर चलना।" इसके अलावा उन्होंने कहा कि "भारत ने अब उन अफगानों के साथ संबंध को कम कर दिया है जो एक बहुलतावादी सरकार चाहते हैं। जबकि तालिबान को अस्थिर करने के लिए ही डिजाइन किया गया है और उनकी सच्चाई सामने आने में बस समय की बात है।"

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