बड़े खून-खराबे की आहट

चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना 2015 में शुरू हुई। तब से बलूचिस्तान में इससे जुड़ी दो बातें अक्सर सुर्खियों में रही हैं। पहली, इसकी परियोजनाओं, उनमें काम करने वाले चीनी नागरिकों पर बलूचों के हमले और अपने नागरिकों पर हो रहे हमलों पर कभी पुचकार कर तो कभी आंखें तरेर कर पाकिस्तान को सुरक्षा चाक-चौबंद […]

Dec 6, 2024 - 11:06
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बड़े खून-खराबे की आहट

चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना 2015 में शुरू हुई। तब से बलूचिस्तान में इससे जुड़ी दो बातें अक्सर सुर्खियों में रही हैं। पहली, इसकी परियोजनाओं, उनमें काम करने वाले चीनी नागरिकों पर बलूचों के हमले और अपने नागरिकों पर हो रहे हमलों पर कभी पुचकार कर तो कभी आंखें तरेर कर पाकिस्तान को सुरक्षा चाक-चौबंद करने की चीन की नसीहत और उड़ती-उड़ती खबर कि चीन ने साफ कह दिया है कि पाकिस्तान उसके पैसे और उसके नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे या यह काम उसे सौंप दे। इसी क्रम में कई बार सुनने में आया कि चीनी सैनिक सीपीईसी की हिफाजत करने वाले हैं। एक बार फिर वैसी ही अटकलें हैं, लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग है।

चीन सीपीईसी पर लगभग 65 अरब डॉलर खर्च कर चुका है और जब तक यह गलियारा सुरक्षित नहीं होता, उसके हसीन ख्वाब हकीकत बनने से रहे। यही कारण है कि जब भी लगातार 2-3 हमले होते हैं, सीपीईसी की सुरक्षा चीनी सैनिकों द्वारा अपने हाथ में लेने की अटकलें शुरू हो जाती हैं। इस बार भी ऐसा ही कुछ हुआ।

हाल ही में बलूच लड़ाकों ने कई हमले कर पाकिस्तानी हुकूमत की नींद उड़ा दी। 16 नवंबर को कलात में चेक पोस्ट पर हमला किया गया, जिसमें सात सैनिक मारे गए। 25 नवंबर को कलात के ही हरबोई इलाके में बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के लड़ाकों ने आईईडी विस्फोट कर 10 सैनिकों को मार डाला। इस तरह के हमले बलूचिस्तान में आम हैं। सीपीईसी को सुरक्षित करने के चीनी दबाव के बीच शहबाज सरकार ने बलूचिस्तान में बड़े सैनिक अभियान छेड़ने की घोषणा की है।

संयुक्त ऑपरेशन!

कहा जा रहा है कि इस अभियान में चीन भी शामिल होगा। 27 नवंबर को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान से जब पूछा गया कि बलूचिस्तान में शुरू होने वाले पाकिस्तान के बड़े सैन्य अभियान में क्या चीन भी शामिल होगा, तो उन्होंने इसका सीधा जवाब न देकर कहा, ‘चीन पाकिस्तान के साथ व्यावहारिक सहयोग को गहरा करना चाहता है।’ बस यहीं से अटकलें लगाई जाने लगीं। 2019 में ऐसी खबरें आई थीं कि चीन ने ग्वादर बंदरगाह पर अपनी निवेश वाली परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए फ्रंटियर सर्विसेज ग्रुप नाम की निजी सिक्योरिटी कंपनी से करार किया है। 2020 में ‘साउथ चाइना पोस्ट’ में प्रकाशित खबर में कहा गया था कि चीन ने पाकिस्तान में काम करने वाले अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए निजी सुरक्षा एजेंसी की सेवाएं ली हैं।

2020 में ‘दि डिप्लोमैट’ में भी खबर छपी कि चीन के निजी सुरक्षा ठेकेदार पाकिस्तान में सक्रिय हैं। इस बार चीन की जिन निजी सुरक्षा कंपनियों को चीनी परियोजनाओं और चीनी नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपने की बात हो रही है, उनमें हुआजिन और चाइना ओवरसीज सिक्योरिटी ग्रुप के नाम प्रमुख हैं। एक खबर के मुताबिक डीवी सिक्योरिटी ग्रुप का भी नाम आया है। यह कंपनी पीएलए के कुछ सेवानिवृत्त सैनिकों ने शुरू की थी। यह चीन के बेल्ट रोड इनीशिएटिव परियोजना में शामिल कई देशों में चीनी निवेश और चीनी नागरिकों की सुरक्षा करती है।

चीन के शामिल होने के मायने

सैन्य अभियान शुरू करने की खबर पर बलूचिस्तान नेशनल मूवमेंट (बीएनएम) के अध्यक्ष डॉ. नसीम बलोच कहते हैं, ‘‘ऐसे बयान को सामान्य नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसके कई आयाम हैं। हमें सरकार के इस फैसले के सभी आयामों की गहराई से समीक्षा करनी होगी। हो सकता है कि यह एक मनोवैज्ञानिक चाल हो, जिसके कई फायदे हो सकते हैं।
पहला, यह छिपाना कि वे पहले से ही बलूचिस्तान में सैनिक अभियान चला रहे हैं।
दूसरा, लोगों का ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटकाना। इसी के साथ बलूचों को धमकाना कि अगर हमले बंद नहीं किए तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना होगा।’’

अगर चीन सीपीईसी की सुरक्षा के लिए ऐसा कोई बंदोबस्त करता है तो क्या होगा? इसका जवाब पिछले महीने के एक कार्यक्रम में
डॉ. नसीम बलोच के बयान में मिलता है कि ‘‘जो भी बलूचिस्तान की खनिज संपदा और इसके संसाधनों की लूटपाट करेगा, उसे विरोध का सामना करना पड़ेगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने कौन है। आज पाकिस्तान के साथ चीन है, हो सकता है कल कोई और हो, लोकिन जो भी होगा उसे ऐसी ही स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।’’

वहीं, बीएनएम के सूचना सचिव काजिदाद मोहम्मद रेहान कहते हैं, ‘‘अगर चीन वाकई सीपीईसी की सुरक्षा में सीधे तौर पर शामिल होता है तो इसका एक मतलब यह भी है कि वह पूरी तरह से समझ चुका है कि सीपीईसी को सुरक्षित करना पाकिस्तान के बूते की बात नहीं। यह भी कि उसके नागरिक बलूचिस्तान ही नहीं, पाकिस्तान के किसी भी कोने में महफूज नहीं। हालांकि अगर दोनों मिलकर संयुक्त ऑपरेशन चलाते हैं तो निश्चित ही बलूचों के लिए यह मुश्किल मोर्चा होगा, क्योंकि पाकिस्तान को बेहतर तकनीक और बेहतर हथियार मिलेंगे। लेकिन हम उनका भी विरोध करेंगे और हो सकता है कि हमारे सामने भी कोई और तरीका आ जाए।’’

पाकिस्तान सरकार में एक बड़ा वर्ग है जो चीन को इस तरह की छूट देने के खिलाफ रहा है। लेकिन अब हालात अलग हैं। अफगानिस्तान से लगती सीमा पर उसे काफी संसाधन झोंकने पड़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में चीन कितना भी कह ले, सीपीईसी की सुरक्षा को लेकर पाकिस्तान ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं है। राजनीतिक कार्यकर्ता गुल बख्श कहते हैं, ‘‘यह अफगानिस्तान के मोर्चे पर सैनिकों की तैनाती बढ़ाने का ही असर है कि पाकिस्तान को बलूचिस्तान की कई चौकियां या तो हटानी पड़ी हैं या उनमें सैनिकों की संख्या घटानी पड़ी है।’’ राजनीतिक कार्यकर्ता हुनक बलोच का कहना है, ‘‘चीन पहले से ही समय-समय पर पाकिस्तान को सैन्य ऑपरेशन में मदद करता रहा है। तकनीकी मदद तो देता ही रहा है। इसके अलावा ग्वादर पर उसके नौसैनिक जहाज आते रहे हैं। दरअसल, चीन ग्वादर को एक रणनीतिक नौसैनिक अड्डे के तौर पर भी विकसित कर रहा है।’’

मतलब आने वाले समय में बलूचिस्तान में खून-खराबा बढ़ने वाला है। अगर बलूचिस्तान में होने वाले कथित व्यापक सैन्य अभियान में चीन शामिल भी होता है तो उसकी परोक्ष भूमिका की संभावना ज्यादा दिखती है। लेकिन इतना तय है कि बलूचिस्तान में संघर्ष एक महत्वपूर्ण दौर में प्रवेश करने जा रहा है, जिसमें दोनों ओर से बड़ी संख्या में लोग मारे जाएंगे।

उबल रहा पाकिस्तान

पूरे पाकिस्तान में उथल-पुथल है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रिहाई की मांग के साथ पाकिस्तान तहरीके इंसाफ (पीटीआई) के कार्यकर्ता सड़कों पर हैं और जगह-जगह हिंसा हो रही है। इमरान की अपील पर विरोध प्रदर्शन 24 नवंबर से शुरू हुआ और 26 नवंबर को प्रदर्शनकारी इस्लामाबाद के ‘ब्लू एरिया’ क्षेत्र में एकत्र प्रदर्शनकारी रेड जोन में घुसे तो सुरक्षा बल उन पर टूट पड़े। इसी इलाके में संसद, सर्वोच्च कोर्ट, राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री निवास है।

शहबाज शरीफ सरकार ने हर हाल में प्रदर्शन को रोकने का आदेश दिया, तो सुरक्षाबलों ने सख्त रुख अपनाया और प्रदर्शनकारियों पर गोलियां भी चलाईं। इसमें कई लोग मारे गए। पार्टी के लोग कह रहे हैं कि कमसे कम आठ लोगों की मौत हुई। झड़प में एक पुलिसकर्मी भी मारा गया। हालांकि, पीटीआई के नेता सोशल मीडिया पर कह रहे हैं कि लोग मारे गए, इसकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं है, क्योंकि कई लोग लापता हैं।

गृहमंत्री मोहसिन नकवी ने दावों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि सुरक्षाबलों की कार्रवाई में किसी की जान नहीं गई। हालांकि, एक बात है जो नकवी की बातों पर संदेह पैदा करती है। न केवल अस्पताल, बल्कि स्वास्थ्य विभाग ने चुप्पी साध रखी है। अस्पताल बता नहीं रहे कि कितने घायल भर्ती किए गए। इमरान की पत्नी बुशरा बीबी और खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री अमीन गुंडापुर प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे।

उन्होंने ऐलान किया था कि जब तक इमरान खान को रिहा नहीं किया जाता, वे पीछे नहीं हटेंगे। लेकिन सुरक्षाबलों की सख्ती को देखते हुए उन्हें अपना प्रदर्शन निलंबित करना पड़ा। शहबाज शरीफ सरकार नहीं चाहती थी कि पिछले साल 9 मई जैसी स्थिति का सामना करना पड़े। तब इमरान की गिरफ्तारी से गुस्साए लोगों ने व्यापक हिंसा की थी। यहां तक कि तब सेना के दफ्तर पर भी धावा बोला था। बहरहाल, प्रदर्शनकारियों की सुरक्षाबलों के साथ हिंसक झड़प और शहबाज शरीफ सरकार के सख्त रवैये को देखते हुए इमरान खान को विरोध प्रदर्शन वापस लेना पड़ा।

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