बाबासाहेब के विरोधी कौन?

गत 17 दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में संविधान पर हो रही बहस में हिस्सा लेते हुए डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों को बहुत विस्तार से उदाहरण सहित रखा। लेकिन विपक्ष ने उनके केवल 12 सेकेंड के भाषण के अंश को लेकर हंगामा करना शुरू कर दिया कि उन्होंने डॉ. आंबेडकर का […]

Dec 22, 2024 - 12:30
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बाबासाहेब के विरोधी कौन?

गत 17 दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में संविधान पर हो रही बहस में हिस्सा लेते हुए डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों को बहुत विस्तार से उदाहरण सहित रखा। लेकिन विपक्ष ने उनके केवल 12 सेकेंड के भाषण के अंश को लेकर हंगामा करना शुरू कर दिया कि उन्होंने डॉ. आंबेडकर का अपमान किया है। जबकि वास्तव में उन्होंने ऐसा नहीं किया था।

डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर यानी भारतीय संविधान के निर्माता और स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री। इससे भी बढ़कर, जातिगत भेद के लिए हिंदू समाज को झकझोरने, जगाने और शासन-संविधान की व्यवस्था के माध्यम से इस भेदभाव को समाप्त करने की राह बनाने वाले राष्ट्रपुरुष। आज भले कितने ही वामपंथी-कांग्रेसी या मुस्लिम ठप्पे वाले मायावी आंबेडकर-भक्त बाबासाहेब की मूर्तियों पर फूल चढ़ाते या उनके दिखाए मार्ग पर चलने की ‘कसमें’ खाते दिखें, लेकिन सचाई यही है कि बाबासाहेब को कांग्रेस और वामपंथी संगठनों से भारी अन्याय, षड्यंत्र और अपमान का सामना करना पड़ा था।

भारतीय राजनीति, समाज और आर्थिक ढांचे में उनके योगदान अद्वितीय थे, लेकिन उनकी नीतियों और विचारों को लगातार आलोचना, विरोध, उपेक्षा, और तो और राजनीतिक षड्यंत्रों तक का सामना करना पड़ा। बाबासाहेब की मेधा और प्रतिभा को कुचलने का सबसे बड़ा षड्यंत्र अगर किसी ने किया तो उसमें सबसे पहले नाम आता है कांग्रेस और नेहरू का।

1952 के आम चुनाव का षड्यंत्र

स्वतंत्रता के बाद भारत में पहले आम चुनाव हुए। डॉ. आंबेडकर ने उत्तर मुंबई से चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने उन्हें हराने के लिए एक दूध बेचने वाले नारायण कजरोलकर को उम्मीदवार बनाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. आंबेडकर के विरुद्ध चुनाव प्रचार किया। पद्मभूषण धनंजय कीर अपनी पुस्तक ‘डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर : जीवन-चरित’ के पृष्ठ 418 पर लिखते हैं, ‘‘मुंबई की जनता ने मुझे इतना बड़ा समर्थन दिया तो वह आखिर कैसे बर्बाद हो गया? चुनाव आयुक्त को इसकी जांच करनी चाहिए।’’ चुनाव में भारी धांधली हुई। कुल 78,000 वोट रद्द कर दिए गए, जिसके चलते डॉ. आंबेडकर करीब 14,000 मतों से हार गए।

समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने भी चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठाया। कई मौकों पर बाबासाहेब का अपमान हुआ। नेहरू इसमें निजी तौर पर दखल और दिलचस्पी रखते थे और अपनी नितांत व्यक्तिगत बातचीत में भी इसका उल्लेख करने में संकोच नहीं करते थे। इसकी बानगी नेहरू द्वारा लेडी माउंटबेटन को लिखी चिट्ठी (16 जनवरी 1952) में भी दिखाई देती है, ‘‘बम्बई शहर में और काफी हद तक बम्बई प्रांत में, हमारी सफलता अपेक्षा से कहीं अधिक रही है।

आंबेडकर को बाहर कर दिया गया है। समाजवादियों ने बिल्कुल भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। कम्युनिस्टों ने, या यूं कहें कि कम्युनिस्ट नेतृत्व वाले समूह ने उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। कांग्रेस को छोड़कर किसी अन्य पार्टी ने कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ा है। फिर कई निर्दलीय भी हैं जो चुपके से आ गए हैं।’’

चुनावी हार का प्रभाव

डॉ. आंबेडकर की पत्नी डॉ. सावित्रीबाई आंबेडकर ने कमलकांत चित्रे को लिखे पत्र में लिखा, ‘‘राजनीति डॉक्टर साहब का जीवन है। वही उनकी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए शक्तिवर्धक दवा है। इस हार ने न केवल डॉ. आंबेडकर को मानसिक रूप से प्रभावित किया, बल्कि उनकी सेहत भी गिरने लगी।’’

भीम-मीम का सच

बाबासाहेब ने अपनी आत्मकथा Waiting for a Visa के पृष्ठ 12 पर लिखा है, ‘‘निजाम के शासन वाले हैदराबाद राज्य में मुसलमानों ने उन्हें रमजान के महीने में तालाब का पानी छूने भर के कारण गंदी गालियां दीं।’’ बात 1934 की है। वह महीना रमजान का था। किले के गेट के ठीक बाहर पानी से लबालब भरा एक छोटा सा टैंक है। चारों ओर विस्तृत पथरीला फुटपाथ।

हमारे चेहरे, शरीर और कपड़े यात्रा के दौरान धूल से भर गए थे और हम सभी इसे धोना चाहते थे। बिना अधिक सोचे पार्टी के कुछ सदस्यों ने फुटपाथ पर टंकी के पानी से अपने चेहरे और पैर धोए। स्नान के बाद हम किले के द्वार पर गए। अंदर हथियारबंद सैनिक थे।

उन्होंने बड़े द्वार खोले और हमें तोरणद्वार में प्रवेश कराया। हमने गार्ड से किले में जाने की अनुमति लेने की प्रक्रिया पूछनी शुरू ही की थी, तभी सफेद दाढ़ी वाला एक वृद्ध मुसलमान पीछे से चिल्लाता हुआ आ रहा था, ‘‘ढेडों (अर्थात अछूतों) ने तालाब को प्रदूषित कर दिया है।’’ जल्दी ही सभी युवा और बुजुर्ग मुसलमान जो आसपास थे, उनके साथ शामिल हो गए और सभी ने हमें गाली देना शुरू कर दिया, ‘‘ढेड अहंकारी हो गए हैं। ढेड अपना धर्म भूल गए हैं (अर्थात् नीच और अपमानित बने रहना)। ढेडों को सबक सिखाया जाना चाहिए।’’

नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा

स्वतंत्रता के बाद डॉ. आंबेडकर को नेहरू मंत्रिमंडल में कानून मंत्री नियुक्त किया गया। लेकिन जब उन्होंने हिंदू कोड बिल प्रस्तुत किया, तो कांग्रेस ने इसका जोरदार विरोध किया। इस विरोध के कारण डॉ. आंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया, जो कांग्रेस की सुधार विरोधी मानसिकता को दर्शाता है।

नेहरू और कांग्रेस का रवैया

नेहरू और कांग्रेस नेतृत्व के पत्र और कार्य स्पष्ट करते हैं कि उन्होंने डॉ. आंबेडकर के प्रभाव को कमजोर करने के लिए साजिशें रचीं। याद रखिए नेहरू जी की ही तरह डॉ. आंबेडकर यदि किसी और को खटकते थे तो वे थे वामपंथी। अब जरा कम्युनिस्टों की भूमिका भी देख लें।

श्रीपाद अमृत डांगे की भूमिका

वामपंथी नेताओं ने चुनाव में डॉ. आंबेडकर के खिलाफ प्रचार किया और उन्हें ‘देशद्रोही’ तक कह डाला। अमेरिकी लेखिका गेल ओमवेट अपनी किताब ‘आंबेडकर : प्रबुद्ध भारत की ओर’ के पृष्ठ 133 पर लिखती हैं, ‘‘1952 के चुनाव में हार के बाद डॉ. आंबेडकर ने अदालत में केस दायर किया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि वामपंथियों ने श्रीपाद अमृत डांगे के नेतृत्व में उनके खिलाफ धोखाधड़ी की थी।’’

वामपंथियों का वैचारिक विरोध

डॉ. आंबेडकर ने मार्क्सवाद और साम्यवाद की तीखी आलोचना की थी। उन्होंने इसे भारतीय समाज के लिए अनुपयुक्त और दलित समाज के लिए नुकसानदेह बताया। इस वैचारिक मतभेद ने वामपंथी संगठनों को उनके खिलाफ अभियान चलाने के लिए प्रेरित किया। डॉ. आंबेडकर ने कांग्रेस और वामपंथियों के षड्यंत्र और अन्याय का कड़ा विरोध किया। उन्होंने इसे भारतीय राजनीति में नैतिकता और लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया।

कांग्रेस-वामपंथ पर टिप्पणी

डॉ. आंबेडकर ने कहा, ‘‘कांग्रेस का दलितों के उत्थान से कोई सरोकार नहीं है। उनका मुख्य उद्देश्य सत्ता पर एकाधिकार बनाए रखना है।’’ डॉ. आंबेडकर ने वामपंथी विचारधारा को ‘आर्थिक समानता के नाम पर लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के खिलाफ एक षड्यंत्र’ कहा था।

कांग्रेस और वामपंथी संगठनों द्वारा डॉ. आंबेडकर के साथ किया गया व्यवहार यह दर्शाता है कि स्वतंत्रता के बाद भी भारतीय राजनीति में दलित नेतृत्व को दबाने और हाशिए पर रखने की कोशिशें जारी रहीं। डॉ. आंबेडकर के अनुभव और उनकी आलोचनाएं भारतीय समाज को आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करती हैं और लोकतंत्र को अधिक न्यायसंगत और समावेशी बनाने के उनके दृष्टिकोण को आज भी प्रासंगिक बनाती हैं।

आज राजनीतिक पटल पर बाबासाहेब को अपना बनाने की भले चाहे जैसी होड़ हो, किंतु यह सत्य है कि मायावी ‘आंबेडकर भक्तों’ के राजनीतिक छल ने हिंदू समाज को तोड़ने और राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के लिए आंबेडकर की विरासत का सौदा ही किया है।

पाञ्चजन्य की पहल

पाञ्चजन्यने इस देश के महापुरुषों को समग्रता में देखने के प्रयास की दृष्टि से बाबासाहेब पर केंद्रित एक संग्रहणीय अंक प्रकाशित किया था, जिसे पूरे देश और अंतरराष्ट्रीय जगत से अभूतपूर्व प्रतिसाद, उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली थी।

राहुल के विरुद्ध एफ.आई.आर.

19 दिसंबर को संसद भवन में प्रवेश के दौरान विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने वहां धरना दे रहे भाजपा सांसदों को धक्का मार दिया। इससे भाजपा सांसद प्रताप सारंगी और मुकेश राजपूत फर्श पर गिर पड़े और उन्हें चोट लग गई। दोनों को तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया। इसके बाद भाजपा ने संसद मार्ग थाने में राहुल के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज कराई है।

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