खालिस्तान समर्थकों ने कांग्रेस का पाप पूरे हिंदू समुदाय पर थोपने का रचा षड्यन्त्र

खालिस्तान समर्थक कनाडा में बैठकर भारत विरोधी गतिविधियां करते रहते हैं। अब उन्होंने कांग्रेस के पाप को पूरे हिंदू समुदाय पर थोपने का षड्यंत्र रचा। कनाडा की संसद में खालिस्तान समर्थक राजनीतिक दलों ने भारत में इंदिरा गांधी की हत्या के उपरांत सिखों के खिलाफ हुए दंगों को “जीनोसाइड” घोषित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे […]

Dec 9, 2024 - 06:30
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खालिस्तान समर्थकों ने कांग्रेस का पाप पूरे हिंदू समुदाय पर थोपने का रचा षड्यन्त्र

खालिस्तान समर्थक कनाडा में बैठकर भारत विरोधी गतिविधियां करते रहते हैं। अब उन्होंने कांग्रेस के पाप को पूरे हिंदू समुदाय पर थोपने का षड्यंत्र रचा। कनाडा की संसद में खालिस्तान समर्थक राजनीतिक दलों ने भारत में इंदिरा गांधी की हत्या के उपरांत सिखों के खिलाफ हुए दंगों को “जीनोसाइड” घोषित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। दो दिनों में यह प्रयास दूसरी बार किया गया। कनाडा की राजनीति में बढ़ते खालिस्तानी प्रभाव के चलते यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसा प्रयास फिर से नहीं होगा। वर्ष 1984 में सिख समुदाय के प्रति जो हिंसा हुई थी, उसे लेकर भारत के नागरिक हमेशा ही सिख समुदाय के साथ खड़े रहे क्योंकि वे कभी भी उन अत्याचारों को भूल नहीं पाए हैं जो राजनीतिक कारणों से उनके प्रति हुई थी।

अलगाववादी और भारत विरोधी खालिस्तान लॉबी का इसे जीनोसाइड घोषित करवाने के लिए कोशिश एक बड़े षड्यन्त्र का हिस्सा है। सिखों के साथ हिंसा उनकी धार्मिक पहचान के कारण किसी धार्मिक समुदाय के हाथों नहीं हुई थी। सिखों के साथ हिंसा एक घटना के कारण हुई थी। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा की गई हत्या।
यह हत्या हालांकि दो ही लोगों ने की थी, परंतु यह दुर्भाग्य रहा कि उसका खामियाजा सिख समुदाय के हजारों लोगों को भुगतना पड़ा और उनके साथ हिंसा जो हुई थी, वह किसी धार्मिक समुदाय ने नहीं की थी, बल्कि उस राजनेता के आहत प्रशंसकों ने की थी।

हिंसा की जितनी भी निंदा की जाए वह कम है, परंतु उसे जीनोसाइड घोषित करवाने का अर्थ है हिंदुओं के प्रति घृणा का विस्तार। जीनोसाइड किसी धार्मिक समुदाय की धार्मिक पहचान को मिटाने का पूरी तरह का प्रयास होता है और उसके लिए कई रणनीतिक कदम और सुनियोजित प्रक्रिया अपनाई जाती है, जिससे उस धार्मिक, राष्ट्रीय, नस्लीय समूह को समूल नष्ट कर दिया जाए।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1948 में जीनोसाइड पर यूएन कन्वेन्शन में जो इसकी परिभाषा दी गई है वह इस प्रकार है –

वर्तमान कन्वेंशन में, जीनोसाइड का अर्थ है किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूरी तरह या आंशिक रूप से नष्ट करने के इरादे से किए गए निम्नलिखित कार्यों में से सभी या कोई भी कार्य हो”

(क) समूह के सदस्यों की हत्या करना;
(ख) समूह के सदस्यों को गंभीर शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाना;
(ग) जानबूझकर समूह पर जीवन की ऐसी स्थितियाँ थोपना जिससे उसका पूरी तरह या आंशिक रूप से भौतिक विनाश हो;
(घ) समूह के भीतर जन्मों को रोकने के उद्देश्य से उपाय लागू करना;
(ङ) समूह के बच्चों को जबरन दूसरे समूह में लाना

यह सच है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, परंतु वह हत्याएं इस कारण नहीं हुईं कि भारत का कोई भी धार्मिक समुदाय सिख समुदाय की धार्मिक, जातीय या नस्लीय पहचान से घृणा करता था और उस आधार पर उसे जड़ से नष्ट करना चाहता था। न ही उस सिख समुदाय पर भारत के किसी भी धार्मिक समुदाय ने ऐसी परिस्थितियों का निर्माण किया कि उन्हें कहीं भी असुरक्षा का अनुभव हो।

जीनोसाइड की परिभाषा बहुत व्यापक है और यह धार्मिक या राष्ट्रीय या नस्लीय पहचान के आधार पर होने वाला अपराध है, जिसे दूसरी राष्ट्रीयता, धार्मिकता या नस्लीय पहचान वाला समुदाय करता है। खालिस्तान के समर्थक इस बात का पूरा प्रयास कर रहे हैं कि किसी भी प्रकार से सिखों के साथ हुई इस घटना को जीनोसाइड घोषित करवा दिया जाए। यदि ऐसा करने में वे सफल होते हैं तो हिन्दू समुदाय के प्रति अकादमिक घृणा और भी तेजी से बढ़ेगी।

शुक्रवार को लिबरल पार्टी के सांसद सुख धालीवाल ने इस संबंध में सदन में एक प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव में सदन से कहा गया कि वह “यह स्वीकार करे और मान्यता दे कि 1984 में भारत में सिखों के खिलाफ किए गए अपराध “जीनोसाइड” हैं।”

मुट्ठी भर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का पाप पूरे हिंदू समुदाय पर थोपने का यह बहुत बड़ा षड्यन्त्र है, जिसे लेकर कनाडा के हिंदू सांसद चंद्र आर्या एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा कि उन्होंने इस प्रस्ताव का विरोध किया और मात्र उनकी एक न ही इस प्रस्ताव को निरस्त कराने के लिए पर्याप्त थी। उन्होंने कहा कि जैसे ही उन्होंने इसका विरोध किया, वैसे ही उन्हें संसद भवन के अंदर और बाहर दोनों ही जगह धमकियां मिलीं।

 

उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का गर्व है कि इस प्रस्ताव को पारित नहीं होने दिया। यह नहीं कह सकते कि ऐसा दोबारा नहीं होगा। हर हिंदू-कनाडाई से यह आग्रह है कि वे अपने स्थानीय सांसद तक जाएं और उनसे यह प्रतिबद्धता सुनिश्चित कराएं कि वह जब भी यह प्रस्ताव आएगा, इसका विरोध करेंगे।

चंद्र आर्या ने लिखा, “भारत में 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे, जो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या के बाद हुए थे,निस्संदेह बर्बर थे। उन भयावह घटनाओं में हजारों निर्दोष सिखों ने अपनी जान गंवाई, और हम सभी इस क्रूरता की बिना किसी शर्त के निंदा करते हैं। हालांकि, इन दुखद और भयानक दंगों को जीनोसाइड के रूप में लेबल करना भ्रामक और अनुचित है। इस तरह का दावा हिंदू विरोधी ताकतों के एजेंडे को बढ़ावा देता है और कनाडा में हिंदू और सिख समुदायों के बीच दरार पैदा करने का जोखिम पैदा करता है।
हमें इन विभाजनकारी तत्वों को सद्भाव को अस्थिर करने के उनके प्रयासों में सफल नहीं होने देना चाहिए।”

हाल-फिलहाल में हिंदुओं के प्रति शारीरिक हिंसा के बाद हिंदुओं के प्रति हिंसा को बढ़ावा देने का यह खालिस्तान समर्थकों का एक और बहुत बड़ा षड्यन्त्र है, जो वर्तमान में सांसद चंद्र आर्य के कारण टल गया है।

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