क्या बलूचिस्तान के अलग होने का वक्त आ गया है? पाकिस्तान के हालात जान लीजिए

Pakistan News: बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में क्वेटा-पेशावर जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाइजैक करके 400 से ज्यादा यात्रियों को बंधक बना लिया। पाकिस्तानी सेना ने बंधकों को छुड़ाने के लिए अभियान चलाया जिसमें 8 सुरक्षा कर्मियों की मौत हो गई, हालांकि 190 यात्रियों को छुड़ा लिया गया।

Mar 13, 2025 - 09:03
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क्या बलूचिस्तान के अलग होने का वक्त आ गया है? पाकिस्तान के हालात जान लीजिए
7 अक्टूबर, 2023 को इजराइल पर हुए हमास के बर्बर हमले ने दुनिया को फिर दिखाया कि आतंकवादी कैसे भयानक सुरक्षा संकट पैदा कर सकते हैं। आतंकियों की ऐसी रणनीति का मकसद वैश्विक राजनीति का ध्यान खींचना और हालात को बिगाड़ना होता है। आतंकवादी अक्सर पैटर्न फॉलो करते हैं। एक हमले का असर देखकर, वे दूसरे तरीके से उसे दोहराने की कोशिश करते हैं। दुनिया भर में अफरा-तफरी के बीच आतंकवाद ने फिर से अपना बदसूरत चेहरा दिखाया है। पाकिस्तान में एक और बड़ा आतंकी हमला हुआ है। यह देखते हुए कि पाकिस्तान अपनी राजनीति में आतंकवाद का इस्तेमाल करता रहा है, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है।हालांकि, उम्मीद थी कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), अफगान तालिबान के समर्थन से ऐसा आतंकी हमला करेगा। लेकिन बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने क्वेटा-पेशावर को हाईजैक कर लिया। उन्होंने 400 से ज्यादा यात्रियों को बंधक बना लिया। बाद में ने सभी महिलाओं और बच्चों को छोड़ दिया। बंधकों में ज्यादातर पाकिस्तानी सेना और पुलिस के जवान थे। पाकिस्तानी सेना ने बंधकों को छुड़ाने के लिए ऑपरेशन शुरू किया। खबरों के मुताबिक, इस ऑपरेशन में कम से कम 8 पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं। 30 बीएलए लड़ाके मारे गए हैं और 190 यात्रियों को बचाया गया है। बीएलए का दावा है कि उसने 50 बंधकों को मार डाला है।गौर करने वाली बात है कि पाकिस्तान और कई अन्य देशों ने बीएलए को आतंकवादी संगठन घोषित किया है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने इसे आतंकवादी संगठन नहीं माना है। फिर भी, बीएलए ने पूरी ट्रेन को हाईजैक कर लिया। यह उसकी ताकत दिखाता है। जिस जगह ट्रेन को रोका गया, उससे बीएलए की तैयारी का पता चलता है। ट्रेन को एक सुरंग के पास पकड़ा गया था। आसपास की पहाड़ियों ने बीएलए लड़ाकों को फायदा दिया। ट्रेन पर कब्जा करने के बाद बीएलए ने पाकिस्तानी सरकार को किसी भी बचाव अभियान के खिलाफ चेतावनी दी। लेकिन इस्लामाबाद ने ड्रोन और हेलीकॉप्टरों के साथ एक बड़ा सुरक्षा ऑपरेशन शुरू किया। इससे बंधकों की जान जोखिम में पड़ गई।बीएलए की ट्रेन हाईजैकिंग, हमास के 7 अक्टूबर के हमले जैसी हिंसक नहीं हो सकती। लेकिन इसने साबित कर दिया है कि बलूचिस्तान में अलगाववाद को हल्के में नहीं लिया जा सकता। पाकिस्तान में बलूच विद्रोह कई दौर से गुजरा है। इसकी जड़ें 1948 में हैं, जब कलात रियासत को पाकिस्तान ने जबरन अपने में मिला लिया था। इसके कारण राजकुमार अब्दुल करीम ने सशस्त्र विद्रोह किया था। दशकों से यह विद्रोह लहरों में उभरता रहा है। सबसे तीव्र दौर 1973-77 में आया, जब जुल्फिकार अली भुट्टो ने बलूचिस्तान की प्रांतीय सरकार को बर्खास्त कर दिया था। नवाब खैर बख्श मार्री के नेतृत्व में हजारों बलूच लड़ाकों ने हथियार उठा लिए थे। विद्रोह का वर्तमान दौर 2006 में नवाब अकबर बुगती की हत्या के बाद बढ़ा। परवेज मुशर्रफ के आदेश पर बुगती की हत्या हुई थी। बीएलए जैसे समूहों ने इस विद्रोह को हवा दी है।बीएलए एक अलगाववादी समूह है। यह दशकों से पाकिस्तानी राज्य के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह में लगा हुआ है। इसका मुख्य उद्देश्य एक स्वतंत्र बलूचिस्तान प्राप्त करना है। यह पाकिस्तान और चीन द्वारा बलूच संसाधनों के शोषण का विरोध करता है। इस लक्ष्य के लिए बीएलए ने पाकिस्तानी सुरक्षा बलों, बुनियादी ढांचे और बलूचिस्तान में चीनी हितों पर कई हमले किए हैं। खासकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से जुड़े हितों पर।बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और संसाधन संपन्न प्रांत है। फिर भी यह सबसे गरीब और सबसे कम विकसित है। इस बड़े पैमाने पर शोषण के कई उदाहरण हैं। स्थानीय आबादी को अपने संसाधनों से बहुत कम लाभ मिलता है। यह शोषण गैस क्षेत्रों से लेकर सोने और तांबे के खनन, मत्स्य पालन और ग्वादर बंदरगाह तक फैला हुआ है। ग्वादर बंदरगाह को पाकिस्तान के लिए गेमचेंजर बताया गया है। लेकिन ग्वादर की स्थानीय आबादी गरीब है। उन्हें पानी की कमी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसका फायदा ज्यादातर चीनी कंपनियों और पंजाब के कुलीन वर्ग को मिल रहा है।बलूचिस्तान का नुकसान यह है कि बलूच क्षेत्र का एक हिस्सा पड़ोसी देश ईरान के सिस्तान प्रांत में फैला हुआ है। ईरान भी अलगाववाद से डरता है। अगर पाकिस्तान में अलगाववादी समूह दूसरे समूहों से हाथ मिला लेते हैं, तो पाकिस्तान को 1971 के बांग्लादेश जैसा एक और बड़ा अलगाववादी आंदोलन का सामना करना पड़ सकता है। तुलना के लिए, भारत के दो कोनों पर स्थित जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में अलगाववादी आंदोलनों ने देश में काफी अशांति पैदा की है। बलूचिस्तान पाकिस्तान के भूभाग का 40% हिस्सा है और उसके केंद्र में स्थित है।पाकिस्तान में हजारों बलूच कार्यकर्ताओं, छात्रों और बुद्धिजीवियों को सुरक्षा बलों ने अगवा कर लिया है। यह 'मारो और फेंको' की नीति का हिस्सा है। बीएलए और उसके समर्थकों का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों में वर्णित आत्मनिर्णय का अधिकार बलूचिस्तान पर लागू होता है क्योंकि इसे उसकी इच्छा के विरुद्ध पाकिस्तान में मिला लिया गया था। बीएलए के काफी समर्थक हैं लेकिन सैन्य कार्रवाई से लेकर लोगों को गायब करने तक राज्य की प्रतिक्रिया ने डर का माहौल पैदा कर दिया है। इससे विद्रोहियों की जन आंदोलन चलाने की क्षमता कमजोर हुई है।इससे स्थिति और बिगड़ सकती है। बलूचों को श्रीलंका के लिट्टे प्रमुख वी प्रभाकरण जैसे मजबूत और करिश्माई नेता का इंतजार है। पाकिस्तानी सेना का कठोर रवैया अलगाववादियों का समर्थन करने वाली आबादी के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रतिशोध को जन्म दे सकता है। यह दुनिया भर में देखा गया है। यह इस्लामाबाद के लिए विनाशकारी होगा और बलूच अलगाववादियों को और भड़काएगा। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है और लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। ऐसे में एक और बड़ा अलगाववादी आंदोलन पाकिस्तान के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा कर सकता है।लेखक श्रीनगर स्थित चिनार कोर के पूर्व कमांडर हैं।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,