जल संकट को लेकर चेतने का समय
भारत एक बड़ी आबादी वाला राष्ट्र है। यहां वश्यक की करीब 18 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है,
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जल संकट को लेकर चेतने का समय
जल संकट से बचने के लिए 'जहां संकट- वहीं समाधान' की रणनीति पर काम करना होगा
भारत एक बड़ी आबादी वाला राष्ट्र है। यहां वश्यक की करीब 18 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, जबकि क्षेत्रफल विश्व की कुल भूमि का करीब पौने तीन प्रतिशत ही है। इतनी कम भूमि पर इतनी अधिक आबादी के लिए विश्व के कुल जल संसाधन का मात्र चार प्रतिशत ही उपलब्ध है। इतनी बड़ी आबादी की पानी और अन्य जरूरतें पूरी करने में देश के संसाधन हांफने लगे हैं। भारत जहां जल संकट के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है, वहीं प्रदूषण की मार से से भी त्राहिमाम कर रहा है।
यूं तो भारत में छोटी-बड़ी करीब 40 से 42 लाख जल संरचनाएं अर्थात तालाब, जोहड़ और बावड़ी आदि मौजूद हैं, लेकिन बेरुखी एवं लालच के कारण अधिकतर जल संरचनाओं का स्वरूप विकृत हो चुका है। उनमें जल ग्रहण और जल पुनर्भरण करने की क्षमता भी कम हो चुकी है। यह स्थिति तब है जब भारत में मौजूद प्रत्येक जल स्रोत को सम्मान देने की परंपरा रही है। पानी का आदर हमारी पूजा पद्धतियों में भी शामिल है। कुएं, तालाब या अन्य जल स्रोत बनाने से पहले आह्वान किया जाता है कि 'हे जल के देवता आप यहां स्वच्छ स्रोत के रूप में उपस्थित होकर हमारा कल्याण करें', लेकिन पिछले तीन-चार दशकों से भारत के जल संसाधनों में लगातार गिरावट देखी जा रही है। चिंता की बात यह भी है कि वे भयावह रूप से प्रदूषित होते जा रहे हैं।
अत्यधिक जल दोहन एवं उस अनुपात में पुनर्भरण न हो पाने के कारण भारत में हर वर्ष जल संकट गहराता दिखता है। यह एक प्रथा सी बन गई है कि अगर किसी स्थान पर पानी की कमी है तो दूर से नदी का पानी वहां पर ले आओ। ऐसा बड़े शहरों में खूब किया जा रहा है। इसका दुष्परिणाम जहां नदियों को भुगतना पड़ रहा है, वहीं नदी का भूजल स्तर एवं वहां की आबादी भी इससे प्रभावित हो रही है। यह समाधान कभी भी स्थायी नहीं हो सकता। यह चिंताजनक है कि गर्मियों के पहले ही बेंगलुरु के बाद हैदराबाद और कुछ अन्य शहरों से जल संकट की खबरें आ रही हैं।
जल संकट के स्थायी समाधान के लिए हमें 'जहां संकट-वहीं समाधान' की रणनीति पर काम करना होगा। देश में यह कार्य अधिकतर राज्यों में संभव भी है, क्योंकि वर्षा तो हर जगह होती है। जहां पर 200 से 600 मिलीमीटर या उससे अधिक वार्षिक वर्षा होती है, वहां यदि उसके जल को संचित करने के साधन बना लिए जाएं तो उस क्षेत्र की आबादी के लिए पानी का इंतजाम किया जा सकता है।
हमें जल प्रदूषण को लेकर भी सचेत होना होगा। जल प्रदूषण का एक बड़ा कारण उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट है। अधिकतर फैक्ट्रियां दूषित जल को शोधित किए बिना उसे नदियों में जाने देती हैं। कुछ उद्योग तो प्रदूषित पानी को बोरिंग करके जमीन के अंदर डाल देते हैं, जो भूजल को दूषित करता है। उद्योगों को इसके लिए बाध्य किया जाना चाहिए कि वे अपने यहां उपयोग में लाए गए पानी को शोधित करके उसे पुनः उपयोग में लाएं। शहरों से निकलने वाले कुल घरेलू जल का मात्र 10-20 प्रतिशत ही शोधित हो पता है। शेष गैर शोधित घरेलू बहिस्राव अंत में नदियों में ही चला जाता है। इसी कारण हमारी नदियां भयंकर प्रदूषण से ग्रस्त हैं। उनमें बहने वाले प्रदूषित पानी के कारण हमारा भूजल भी प्रदूषित हो रहा है।
इसे रोकने के लिए नगर निकायों को ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जिससे सीवेज शोधन के बाद निकलने वाले पानी को कृषि कार्यों या फिर उद्योगों में उपयोग किया जा सके। यह भी समय की मांग है कि कृषि में भूजल के उपयोग को कम करने के उपाय किए जाएं। इसके लिए फसलों की सिंचाई का तरीका बदलने के साथ किसानों को कम पानी वाली फसलों को अपनाना होगा। अगर किसान धान उगाते हैं और उसे देश से बाहर बेचा जाता है तो एक प्रकार से हम अपने पानी का मुफ्त निर्यात कर देते हैं, क्योंकि धान उत्पादन करने में काफी अधिक पानी खर्च होता है। धान के विकल्प के तौर पर दालें उगाना किसानों करने बेहतर है, जिनमें कम पानी खर्च होता है। को धीरे-धीरे अपनी कृषि को रसायनमुक्त की दिशा में भी कदम बढ़ाना चाहिए। इससे भी पानी की बचत होगी।
जल संकट के स्थायी समाधान के लिए हमें अपनी पुरातन पद्धतियों की ओर लौटना होगा और इस क्रम में जल संरक्षण के तौर-तरीकों को पुनर्जीवित करना होगा। देश में सभी जल पुनर्भरण स्रोतों को पुनर्जीवित करने का एक कार्यक्रम बनाकर उसे समाज के सहयोग से लागू करना चाहिए। छोटे एवं बड़े शहरों में वर्षाजल संरक्षण-संचयन को जमीन पर उतारने के लिए युद्धस्तर पर कार्य करने की जरूरत है। वर्षा जल के भूजल में पहुंचने से उसका स्तर तो बढ़ेगा ही, उसके प्रदूषण में भी कमी आएगी। भारत को जल संकट से बचाने के लिए यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक सहयोग करे। यह सभी का फर्ज है कि जल संरक्षण की दिशा में अपने स्तर पर कुछ न कुछ प्रयास करे।
भारत ने अपना वाटर विजन-2047 प्रस्तुत किया है। इसके अनुसार जब देश आजादी के सौ वर्ष पूरे करेगा, तब पानी के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा। ऐसा तभी होगा जब हमारे जल स्रोत पानी से समृद्ध होंगे और हमारी नदियां निर्मल एवं अविरल बहेंगी। इसके लिए अभी से ठोस प्रयास आवश्यक हैं। वास्तव में देश को एक सकारात्मक जल आंदोलन की आवश्यकता है। हमारे पास बहुत ज्यादा समय नहीं है। अब चेतने का वक्त है। अगर इस समय पानी को बचाने के लिए कुछ करने से चूक गए तो देर हो जाएगी।
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