कभी थे ऑफिस बॉय, अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग से करते हैं लाखों की कमाई
ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र के पुणे से ताल्लुक रखते हैं। उनका जन्म एक निम्नवर्गीय परिवार में हुआ और बचपन बेहद तंगहाली में गुजरा।
कभी थे ऑफिस बॉय, अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग से करते हैं लाखों की कमाई
ऐसे वक्त में, जब एक अदद नौकरी के लिए लोग वर्षों ऐडियां रगड़ते फिरते हैं, कोई दस साल की अपनी लगी-लगाई नौकरी छोड़कर गांव में खेती करने का संकल्प ले, तो स्वाभाविक रूप से लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। ऐसा ही महाराष्ट्र के पुणे जिले के मुल्सी तालुके के रहने वाले ज्ञानेश्वर बोडके के साथ हुआ, जब वह 10 साल नौकरी करने के बाद 1999 में नौकरी छोड़कर अपने गांव वापस आ गए। लोगों ने यहां तक कहा कि जो कुछ भी कमाई का जरिया था, वह भी बंद हो गया। वह न तो लोगों की आलोचना से घबराएं और न ही विफलता का डर उन्हें जोखिम उठाने से रोक पाया। लेकिन आज वही ज्ञानेश्वर बोडके न सिर्फ अपने गांव के लोगों की नजर में, बल्कि आस- पास के गांवों के किसानों की नजर में भी रोल मॉडल और प्रेरणा के स्रोत बन गए हैं। परिवार के भरण-पोषण के लिए कभी ऑफिस ब्वॉय का काम करने वाले ज्ञानेश्वर आज न सिर्फ स्वयं करोड़ों रुपये कमा रहे हैं, बल्कि अभिनव फार्मिंग क्लब के माध्यम से समेकित खेती (इंटीग्रेटेड फार्मिंग) के फायदों को बता कर उनकी जिंदगी को रोशन कर रहे हैं। कभी पैसों की तंगी के चलते पढ़ाई छोड़ देने वाले ज्ञानेश्वर आज लाखों लोगों को सफलता की नई राह दिखा रहे हैं।
■ बदहाल बचपन
ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र के पुणे से ताल्लुक रखते हैं। उनका जन्म एक निम्नवर्गीय परिवार में हुआ और बचपन बेहद तंगहाली में गुजरा। उनके पास थोड़ी- सी जमीन थी, जिससे जैसे-तैसे उनके परिवार का गुजारा चलता था। ज्ञानेश्वर पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहते थे, लेकिन उनके घर में कोई कमाने वाला नहीं था। नतीजतन 10वीं के बाद उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पढ़ाई छोड़ने के बाद किसी परिचित की मदद से उन्हें उन्हें पुणे में ऑफिस बॉय की नौकरी मिल गई। इससे परिवार का भरण- पोषण तो होने लगा, लेकिन ज्ञानेश्वर को खुशी नहीं मिल रही थी। उन्हें लगता था कि वह जितनी मेहनत कर रहे हैं, उसके अनुसार उन्हें आमदनी नहीं हो रही है।
■ खेती की ओर रुझान ज्ञानेश्वर सुबह छह बजे से लेकर रात
11 बजे तक ऑफिस में काम करते थे। एक दिन अखबार के माध्यम से उन्हें एक ऐसे किसान के बारे में पता चला, जो पॉलीहाउस विधि से खेती करके हर साल 12 लाख रुपये कमा रहा था। उन्हें लगा कि जब एक किसान खेती करके इतनी कमाई कर सकता है, तो वह भी खेती करके अपनी स्थिति सुधार सकते हैं। यही सोचकर उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और गांव लौट आए। गांव लौटकर उन्होंने बैंक से कर्ज लिया और फूलों की बागवानी शुरू कर दी। खेती की नई तकनीक सीखने के लिए वह अन्य प्रगतिशील किसानों से संपर्क करने लगे, जो खेती में आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें पुणे में बागवानी और पॉलीहाउस को लेकर आयोजित होने वाली एक वर्कशॉप के बारे में पता चला। ज्ञानेश्वर ने भी उस वर्कशॉप में
भाग लिया। ■ नई तकनीक से संवारा जीवन ज्ञानेश्वर के कम पढ़े-लिखे होने के कारण वर्कशॉप में बताई गई अधिकांश बातें उन्हें समझ में नहीं आईं, लेकिन वह एक पॉलीहाउस में जाकर खेती के तरीके समझने लगे। पॉलीहाउस एक चारों तरफ से घिरा हुआ स्थान होता है, जहां किसी भी फसल को उचित जलवायु तथा पोषक तत्व प्रदान करके अधिक से अधिक उत्पादन किया जा सकता है। रोजाना साइकिल से 17 किलोमीटर दूर पॉलीहाउस जाकर उन्होंने नई तकनीकों के बारे में जानकारी हासिल की। फिर कर्ज में मिले पैसों से अपना पॉलीहाउस बनाकर सजावटी फूलों की खेती शुरू कर दी। कुछ ही महीनों बाद बागों में फूल खिल आए। फूलों की बिक्री के लिए उन्होंने होटल वालों से भी संपर्क किया और अपने फूलों को पुणे शहर से बाहर भी भेजने लगे। फूलों की बिक्री से अच्छी कमाई हुई और उन्होंने साल भर के भीतर
ही 10 लाख रुपये का कर्ज चुका दिया।
खेती के संग पशुपालन
फूलों की खेती में सफलता हासिल करने के बाद उन्हें पता चला कि समेकित खेती के जरिये अच्छी कमाई की जा सकती है। फिर उन्होंने उसी पॉलीहाउस में फूलों के साथ सब्जियों की खेती भी शुरू कर दी। सब्जियों की खेती से भी उन्हें अच्छी कमाई होने लगी। उसके बाद उन्होंने देशी केले, संतरे, आम, देशी पपीते, स्वीट लाइम, अंजीर और सेब, सभी मौसमी सब्जियां उगाने लगे। यही नहीं अब उन्होंने दूध की सप्लाई का काम भी शुरू कर दिया है। उनके पास कई गाएं हैं। उन्होंने लोगों के घरों में दूध की आपूर्ति के लिए एक ऐप भी लॉन्च किया है। इसके माध्यम से लोग ऑर्डर करते हैं और उनके घर तक सामान पहुंच जाता है।
युवाओं के लिए सीख
■ जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए नए विचार व नवाचार बेहद जरूरी है।
■ संघर्ष के बिना सफलता अधूरी है। बिना जोखिम उठाए, कोई भी
■ बड़ी सफलता हासिल नहीं कर सकता है।
■ आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत व धैर्य के बदौलत सफलता की इबारत लिखी जा सकती है।
■ विपरीत परिस्थितियों से सीखकर नामुमकिन को मुमकिन बनाया जा सकता है।
■ थोड़ी-सी दृढ़ता, थोड़ा-सा और प्रयास करने से विफलता को एक शानदार सफलता में तब्दील किया जा सकता है।
अभिनव फार्मिंग क्लब
वर्ष 2004 में ज्ञानेश्वर ने अभिनव फार्मिंग क्लब नाम से अपने गांव के 11 किसानों के साथ मिलकर एक समूह बनाया था। उनकी सफलता की कहानी से प्रेरित होकर, कई और किसान अभिनव फार्मर्स क्लब में शामिल हुए। आज उनके क्लब में देश के आठ राज्यों से लगभग तीन लाख से भी ज्यादा किसान जुड़ चुके है। ज्ञानेश्वर का मानना है कि उपज सीधे ग्राहको या उपभोक्ताओं को बेचने से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है, क्योंकि इसमें किसी बिचौलिए को कमीशन नहीं देना पड़ता। इस क्लब से जुड़ा हर किसान वर्ष 2021 में आठ से 10 लाख रुपये सालाना कमाई कर रहा था।
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