वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं रह गईं बुरहानपुर की तीन ऐतिहासिक धरोहरें

आक्रमण करके भारत के बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। उसकी मृत्यु के बाद उसे व परिवार के अन्य सदस्यों को बुरहानपुर में दफनाया गया था। यह मकबरा भी अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और राष्ट्रीय स्मारक घोषित है।

Aug 7, 2024 - 20:38
Aug 7, 2024 - 20:44
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वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं रह गईं बुरहानपुर की तीन ऐतिहासिक धरोहरें

वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं रह गईं बुरहानपुर की तीन ऐतिहासिक धरोहरें

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर में मुगल और फारुखी शासन काल में बनाई गई तीन ऐतिहासिक धरोहरें अब वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं रह गई हैं। इनमें मुगल बादशाह शाहजहों और बेगम मुमताज की पुत्रवधु बिलकिस बेगम का मकबरा, नादिर शाह का मकबरा और बीबी की मस्जिद हैं। पिछले दिनों इन तीनों ऐतिहासिक इमारतों पर वक्फ बोर्ड के दावे को उचित न मानते शाहजहां की पुत्रवधु बिलकिस बेगम का मकबरा, नादिर शाह का मकबरा व बीबी की मस्जिद एएसआइ के संरक्षण में हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्य खंडपीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) का संरक्षण नियम के अंतर्गत माना। हाई कोर्ट के निर्णय के बाद अब बुरहानपुर की तीनों ऐतिहासिक इमारतों पर एएसआइ का संरक्षण बना रहेगा।

खरबूजा गुंबद : बिलकिस बेगम का मकबरा 

बिल्किस बेगम उर्फ बेगम शुजा मुगल बादशाह शाहजहां और बेगम मुमताज की पुत्रवधु और शाह शुजा की पत्नी थीं। उनका जन्म अजमेर में हुआ और देहांत 1632 ईस्वी में बुरहानपुर में। उनकी मृत्यु के बाद उनकी याद में ताप्ती और उतावली नदी के बीच आजाद नगर के पास यह मकबरा समाधि पर बनाया गया था। यह अब राष्ट्रीय स्मारक है और पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। इस मकबरे की डिजाइन खरबूजे के आकार की है, जो ईरानी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है, इसीलिए इसे खरबूजा गुंबद भी कहा जाता है। करीब छह सौ वर्गफीट में बने मकबरे अंदर शानदार रंगीन चित्रकारी और नक्काशी की गई है।

नादिर शाह का मकबरा
आजाद नगर के पास ही फारुखी शासक नादिर शाह का मकबरा है। इसमें नादिर और उसके परिवार के अन्य सदस्यों को दफनाया गया था। इतिहासकारों और जानकारों के अनुसार, इस मकबरा का निर्माण 15वीं शताब्दी में कराया गया था। नादिर ईरानी शासक था। उसने आक्रमण करके भारत के बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। उसकी मृत्यु के बाद उसे व परिवार के अन्य सदस्यों को बुरहानपुर में दफनाया गया था। यह मकबरा भी अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और राष्ट्रीय स्मारक घोषित है।

बीवी की मस्जिद : यह बुरहानपुर की पहली जामा मस्जिद

बीबी की मस्जिद बुरहानपुर की पहली जामा मस्जिद है। इसका निर्माण फारुकी शासनकाल में बादशाह आदिल शाह फारुकी की बेगम रुकैया ने करवाया था। बीबी की मस्जिद अहमदाबाद की जामा मस्जिद की ही एक प्रतिकृति है। इस मस्जिद के निर्माण में असीरगढ़ की खदानों से लाए गए पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। इसके निर्माण के लिए गुजरात से कारीगरों को लाया गया था। लिहाजा इसमें गुजरात की स्थापत्य कला का प्रभाव दिखता है। अपने समय की भव्य इमारतों में शामिल यह मस्जिद मुगल बादशाह औरंगजेब  के शासन काल में अरबी और फारसी भाषा की शिक्षा का केंद्र भी रही है।

सूफी सज्जादानशीं परिषद ने की अलग दरगाह वोर्ड की मांग
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा वक्फ कानून में संशोधन के निर्णय का अखिल भारतीय सूफी सज्जादानशीं परिषद (एआइएसएससी) ने समर्थन करते हुए पृथक दरगाह बोर्ड की मांग की है। एआइएसएससी के प्रतिनिधिमंडल ने एक दिन पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू से मुलाकात में भी अपनी चिंताओं से अवगत कराया। उधर, जमीयत उलेमा-ए-हिंद व मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड जैसे संगठनों ने संशोधन का विरोध किया है। इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में एक कार्यक्रम में एआइएसएससी अध्यक्ष सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि वक्फ बोर्ड तानाशाही तरीके से काम कर रहा है, जिसमें पारदर्शिता नहीं है। वक्फ अधिनियम में दरगाहों का कोई जिक्र नहीं है। बोर्ड दरगाह की परंपराओं को मान्यता नहीं देते, इसलिए हम अलग दरगाह बोर्ड की मांग करते हैं। वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि सरकार अरबों खरबों की संपतियों को हड़प लेना चाहती है।

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में बीबी की मस्जिद

बीबी की मस्जिद मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में मोनिन पुरा में स्थित है। इसके लिए दिशा-निर्देश गूगल मानचित्र पर अंकित हैं। मस्जिद फिलहाल बंद है और आम लोगों के लिए वहां जाना संभव नहीं है। हम एक बार फिर निराश हुए। पहली बार कुंडी भंडारा में और दूसरी बार इस जगह पर।  बाहर से देखने पर यह काफी पुरानी इमारत लगती है। राजा आज़म हुमायूं की पत्नी बेगम रुकिया ने इतवारा बुरहानपुर में पहली जामा मस्जिद बनवाई थी, इसे बीबी की मस्जिद भी कहा जाता था।फिर हमने कुछ स्थानीय लोगों से पूछा, जिन्होंने हमें बताया कि मस्जिद के कुछ हिस्सों की मरम्मत की ज़रूरत है और इसलिए इसे बंद रखा गया है। अंदर मरम्मत का काम चल रहा है। साथ ही स्थानीय मुसलमानों ने मस्जिद को खुला रखने के लिए कहा है ताकि वे नमाज़ पढ़ सकें। चूँकि यह स्मारक ASI के अधीन है, इसलिए उन्हें पास में स्थित काली या जामा मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की सलाह दी गई है।  आस-पास कुछ दुकानें हैं, जहाँ से खाना और पानी मिल सकता है। हालाँकि, हमने उन्हें ढूँढ़ने की कोशिश नहीं की, क्योंकि हमारे पास खाने-पीने का सामान था। इसके बाद हम कुछ किलोमीटर दूर स्थित फारुकी वंश के नादिर शाह और उसके भाई आदिल शाह के मकबरे देखने के लिए रवाना हुए।

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