देश विभिन्न संस्कृतियों व धर्मों का मिश्रण, हमें इसे संरक्षित करना चाहिए : चंद्रचूड़
मदरसा शिक्षा को नाकाफी बता रहे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की वकील से भी कई सवाल पूछे। पूछा कि एनसीपीसीआर ने सिर्फ एक ही समुदाय के मदरसों के बच्चों को नियमित स्कूलों में भेजने का निर्देश दिया है
The country mixture different cultures and religions should preserve Chandrachud
मदरसों की पढ़ाई का विरोध कर रहे और वहां दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा को बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए पर्याप्त न होने की दलीलों पर कोर्ट ने कहा, धार्मिक शिक्षा सिर्फ मुस्लिम समुदाय तक सीमित नहीं है, अन्य धर्मों में भी यही नियम हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों व धर्मों का मिश्रण है, हमें इसे संरक्षित करना चाहिए।
कोर्ट ने मदरसों, वैदिक पाठशालाओं व बौद्ध भिक्षुओं का उदाहरण देते हुए कहा, भारत में धार्मिक शिक्षा के कई रूप हैं। चिकित्सा में भी कई शाखाएं हैं जिनकी उत्पत्ति अलग अलग है जैसे आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी आदि। अगर संसद इन्हें रेगुलेट करने के लिए कानून लाती है तो उसमें क्या गलत है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ "जियो और जीने दो" मानते हुए कोर्ट ने कहा, मदरसों का विनियमन राष्ट्रीय हित में है, क्योंकि अल्पसंख्यकों के लिए अलग-थलग स्थान बनाकर देश की सैकड़ों वर्षों की मिलीजुली संस्कृति को नष्ट नहीं किया जा सकता।
पीठ ने मदरसा शिक्षा को नाकाफी बता रहे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की वकील से भी कई सवाल पूछे। पूछा कि एनसीपीसीआर ने सिर्फ एक ही समुदाय के मदरसों के बच्चों को नियमित स्कूलों में भेजने का निर्देश दिया है या धार्मिक शिक्षा देने वाली अन्य संस्थाओं को भी ऐसे निर्देश जारी किए हैं। एनसीपीसीआर की वकील ने कहा, आयोग धार्मिक शिक्षा के खिलाफ नहीं है।
अगर धार्मिक शिक्षा मुख्य शिक्षा संग दी जाती है तो बहुत अच्छी बात है, पर मुख्य शिक्षा को वैकल्पिक नहीं बनाया जा सकता क्योंकि ये बच्चों के हित में नहीं होगा। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वालों की दलील थी कि हाई कोर्ट के आदेश से लाखों बच्चे
प्रभावित होंगे।
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