केजरीवाल ने इस्तीफा न देकर राष्ट्रहित से ऊपर रखा अपना हित
दिल्ली सरकार की दिलचस्पी सिर्फ सत्ता अपने पास रखने में है और जमीनी स्तर पर हालात बहुत खराब हैं। एक अदालत के तौर पर किताबें, वर्दी बांटना हमारा काम नहीं है।
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केजरीवाल ने इस्तीफा न देकर राष्ट्रहित से ऊपर रखा अपना हित
- दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा- दिल्ली सरकार की रुचि केवल सत्ता में और यह है सत्ता का सर्वोच्च अहंकार
- स्कूलों में किताबें, वर्दी नहीं मिलने के मामले पर दिल्ली सरकार और एमसीडी को लगाई कड़ी फटकार
आबकारी घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में जेल जाने के बाद भी मुख्यमंत्री बने रहने के अरविंद केजरीवाल के निर्णय के चलते बेपटरी हुई राष्ट्रीय राजधानी की व्यवस्था पर दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन व न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा न देकर अरविंद केजरीवाल ने व्यक्तिगत हित को राष्ट्रहित से ऊपर रखा है।
दिल्ली सरकार की दिलचस्पी सिर्फ सत्ता अपने पास रखने में है और जमीनी स्तर पर हालात बहुत खराब हैं। एक अदालत के तौर पर किताबें, वर्दी बांटना हमारा काम नहीं है। हम यह टिप्पणी इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि कोई अपने काम में असफल हो रहा है। मामले में दिल्ली सरकार का रुख इस बात की स्वीकारोक्ति है कि दिल्ली में चीजें बहुत खराब हैं। इन टिप्पणियों के साथ पीठ ने जनहित याचिका पर अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया। अदालत सोमवार को इस पर निर्णय सुनाएगी और सौरभ भारद्वाज द्वारा दिए गए निर्देश भी उनके नाम से दर्ज करेगी।
अदालत ने यह टिप्पणियां तब कीं जब गैरसरकारी संगठन सोशल जूरिस्ट की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के अधिवक्ता शादान फरासत ने कहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से कुछ अनुमोदन की आवश्यकता है और वह आबकारी नीति के संबंधित मनी लांड्रिंग मामले में हिरासत में हैं। जवाब से नाखुश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने कहा कि मुझे नहीं पता कि आप (दिल्ली सरकार) कितनी शक्ति चाहते हैं, लेकिन समस्या यह है कि आप सत्ता हथियाने की कोशिश कर रहे हैं। जनहित याचिका में एमसीडी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को पाठ्य पुस्तकें, वर्दी समेत अन्य सामग्री नहीं मिलने का मुद्दा उठाया गया था।
23 अप्रैल को एमसीडी आयुक्त ने सूचित किया था कि केवल स्थायी समिति के पास पांच करोड़ रुपये से अधिक के अनुबंध देने की शक्ति है। पीठ ने तब कहा था कि यदि किसी कारण से स्थायी समिति का गठन नहीं हुआ, तो वित्तीय शक्ति दिल्ली सरकार द्वारा एक उपयुक्त प्राधिकारी को सौंपी जानी चाहिए।
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