शिव क्यों कहलाते हैं आदिदेव
शिव पुराण के मुताबिक सृष्टि के पहले देव शिव हैं, इसलिए उन्हें आदिदेव कहा जाता है। शिव जब भी धरती पर प्रकट हुए, तो उनका रूप एक दिव्य ज्योति की तरह था। शिव के प्रकट होने वाले स्थानों पर ज्योति की तरह ही शिवलिंग की आकृतियां बनीं।
सावन का महीना शुरू हो चुका है। इस माह में प्रत्येक भक्त जन अपने स्तर से भगवान शिव की पुजा कर प्रसन्न करते है। तथा नित्य प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढाते है। सावन माह में 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन की मान्यता है। शिव महापुराण के मुताबिक, सृष्टि के पहले देव शिव हैं, इसलिए उन्हें आदिदेव कहा जाता है।
शिव भगवन जब भी धरती पर प्रकट हुए, तो उनका रूप जटाधारी एक दिव्य ज्योति की तरह था। शिव के प्रकट होने वाले स्थानों पर, ज्योति की तरह ही शिवलिंग की आकृतियां भी बनीं। शिव के खास 12 ज्योतिर्लिंग हैं। सावन माह में इनकी खास तरीके से पूजा-अर्चना की जाती है।
सावन के पहले सोमवार पर 12 ज्योतिर्लिंग से जुड़ी मान्यता, परंपरा और इतिहास के बारे में जानिए।
सोमनाथ
गुजरात के वेरावल में ये ज्योतिर्लिंग है। यहां चंद्रमा ने भगवान शिव की आराधना की तो शिवजी प्रकट हुए, इसलिए इसका नाम सोमनाथ पड़ा।
मान्यता
चंद्रमा को राजा दक्ष ने श्राप दिया। जिससे मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने यहां शिवजी की पूजा और तपस्या की। शिव जी प्रसन्न होकर यहां प्रकट हुए और चंद्रमा को श्राप से मुक्ति दी। चंद्रमा के एक नाम सोम पर ही इस मंदिर का नाम सोमनाथ पड़ा।
परंपरा
ये पितृ तीर्थ भी माना गया है। यहां चैत्र, भाद्रपद और कार्तिक महीने में पितरों के श्राद्ध करने की परंपरा भी है।
इतिहास
ये मंदिर सातवीं सदी में बना। इसके बाद 11वीं से 18वीं शताब्दी तक कई बार टूटा और बना। मौजूदा मंदिर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने बनवाया।
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मल्लिकार्जुन
आंध्रप्रदेश के नंदयाल जिले में ये ज्योतिर्लिंग है। इसे दक्षिण का कैलाश माना जाता है। ये एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां भगवान शिव, पार्वती के साथ विराजमान हैं।
मान्यता
पुत्र कार्तिकेय को मनाने के लिए मां पार्वती और महादेव ने यहां दर्शन दिए, इसलिए मल्लिकार्जुन नाम पड़ा। यहां पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने जैसा फल मिलता है।
परंपरा
शिवरात्रि पर शिव-पार्वती की सवारी निकाली जाती है। सावन में लगातार अभिषेक होता है। अक्टूबर में पूर्णिमा पर कार्तिकेय महोत्सव मनाया जाता है।
इतिहास
ये मंदिर दो हजार साल पुराना है। मौजूदा मंदिर को 500 साल पहले विजयनगर के महाराजा कृष्णराय ने बनवाया।
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महाकालेश्वर
ये ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थापित है। इस मंदिर के गर्भगृह के ठीक ऊपर से कर्क रेखा निकलती है। हर सुबह शिवजी की भस्म आरती होती है और दिनभर श्रृंगार होता है।
मान्यता
दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए शिव धरती को चीरते हुए प्रकट हुए थे। इस जगह को धरती का नाभिस्थल भी कहा जाता है और यहां से कर्क रेखा भी निकलती है।
परंपरा
यहां लंबी उम्र और बीमारी से मुक्ति के लिए विशेष पूजा होती है। सावन के हर सोमवार को राजा महाकाल अपनी प्रजा से मिलने निकलते हैं। इसे महाकाल सवारी कहा जाता है।
इतिहास
द्वापर युग से भी पहले का मंदिर है। मौजूदा मंदिर 1740 से 1760 ईस्वी के बीच बना है।
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ओंकारेश्वर
ये मंदिर मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में है। हर रोज तीनों लोकों में भ्रमण के बाद यहां शयन विश्राम से पहले शिव-पार्वती चौसर खेलते हैं।
मान्यता
ये प्राकृतिक शिवलिंग माना जाता है। मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में शिवजी और माता पार्वती रात्रि विश्राम करते हैं और शयन से पहले चौसर खेलते हैं। इसलिए मंदिर के गर्भगृह में सदियों से चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है।
परंपरा
शिवजी का अभिषेक नर्मदा जल से ही होता है। धनतेरस की रात में भगवान को ज्वार चढ़ाते हैं। सुबह 4 बजे से पूजन, अभिषेक होता है और कुबेर-महालक्ष्मी का यज्ञ होता है।
इतिहास
पुराणों के मुताबिक 5 हजार साल पुराना मंदिर है, लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि मौजूदा मंदिर 1488 ई के आसपास बना है।
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वैद्यनाथ
ये ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर जिले में है। यहां हर मनोकामना पूरी होती है, इसलिए इसे कामना लिंग भी कहते हैं
मान्यता
रावण इस शिवलिंग को लंका ले जाना चाहता था, लेकिन ऐसा नहीं कर पाया। सभी देवी-देवताओं ने इस शिवलिंग की पूजा की थी। पूजा के बाद शिव यहां प्रकट हुए और ज्योति रूप में इस शिवलिंग में समा गए।
परंपरा
बाबा बैद्यनाथ धाम के पास ही जयदुर्गा शक्तिपीठ है। मंदिर में ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ की पूजा का फल मिलता है।
इतिहास
पुराणों के मुताबिक ये त्रेतायुग का मंदिर है, लेकिन इतिहासकारों के मुताबिक मौजूदा मंदिर को गुप्तवंश के आखिरी राजा आदित्यसेन ने 8वीं शताब्दी में बनवाया था।
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भीमाशंकर
ये ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत पर है।
मान्यता
यहां शिव ने कुंभकर्ण के पुत्र भीम को मारा था। इसके बाद शिव यहां ज्योति रूप में स्थापित हो गए।
परंपरा
यहां शिव को मोटेश्वर महादेव के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि शिवलिंग का आकार मोटा है।
इतिहास
वैसे तो मंदिर का इतिहास त्रेतायुग से जुड़ा है, लेकिन वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में नाना फड़नवीस ने करवाया था। भीमाशंकर मंदिर नागर शैली में बना हुआ है।
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रामेश्वरम
ये ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथपुरम में स्थित है। राम ने यहां शिवजी का महाभिषेक किया था।
मान्यता
श्रीराम ने युद्ध के लिए लंका जाने से पहले समुद्र किनारे बालू से शिवलिंग बनाकर पूजा की थी। श्रीराम के बनाए गए इस शिवलिंग को ही रामेश्वरम कहा जाता है।
परंपरा
रामेश्वरम में शिवलिंग पर हरिद्वार से लाया हुआ गंगाजल चढ़ाने की विशेष परंपरा है।
इतिहास
श्रीराम ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी, इस वजह से मंदिर की कथाएं त्रेतायुग से जुड़ी हैं। 11वीं सदी में एक राजा पराक्रम बाहु ने इस ज्योतिर्लिंग का गर्भगृह बनवाया था। 15वीं सदी में राजा उदयन सेतुपति ने यहां जीर्णोद्धार करवाया था। 16वीं सदी में राजा विश्वनाथ ने यहां नंदी मंडप बनवाया। 17 वीं सदी में थलवई सेतुपति ने मंदिर का गोपुरम बनवाया। 1900 में 126 फीट ऊंचे नौ मंजिला राजगोपुरम का निर्माण देवकोट्टई जमींदार ने करवाया था।
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नागेश्वर
ये ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका से करीब 17 किमी दूर स्थित है।
मान्यता
यहां शिव ने दारुक नाम के दैत्य को मारा था। यहां शिव को नागों के देवता के रूप में पूजा जाता है।
परंपरा
यहां शिव के साथ नाग पूजा भी खासतौर से होती है। गर्भगृह में पुरुष सिर्फ धोती पहनकर ही पूजा कर सकते हैं।
इतिहास
मंदिर कथाएं द्वापर युग से जुड़ी हैं। पांडव दारुकवन वनवास के दिनों में आए थे। मंदिर को विदेशी शासकों ने कई बार तोड़ा था। मंदिर के वर्तमान शिखर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।
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काशी विश्वनाथ
ये ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी यानी काशी में है।
मान्यता
पुराणों में बताए पवित्र सात नगरों में काशी एक है। यहां महादेव के साथ पार्वती भी विराजित हैं। मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए देवर्षि नारद और सभी देवता आते हैं।
परंपरा
सावन में यदुवंशी लोग मानमंदिर घाट से गंगा जल लेते हैं और काशी विश्वनाथ का जलाभिषेक करते हैं। ये परंपरा करीब 90 साल से चल रही है।
इतिहास
मंदिर की कथाएं हजारों साल पुरानी हैं। विदेशी राजाओं ने कई बार मंदिर को तोड़ा है। मौजूदा मंदिर 1780 में इंदौर की अहिल्या बाई होल्कर ने बनवाया था।
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त्र्यम्बकेश्वर
ये शिवलिंग महाराष्ट्र के नासिक में है। मंदिर में एक गड्ढे में तीन छोटे-छोटे शिवलिंग हैं। जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र, रूप में पूजा जाता है।
मान्यता
यहां गौतम ऋषि गंगा नदी को लाना चाहते थे, लेकिन गंगा, शिव के बिना नहीं आना चाहती थीं। तब ऋषि ने तपस्या की, जिससे शिव यहां प्रकट होकर ज्योति रूप में विराजमान हुए। गंगा यहां गौतमी यानी गोदावरी नदी के नाम से बहने लगी। इसे गौतमी गंगा भी कहते हैं।
परंपरा
यहां सावन के सोमवार को शिव सवारी निकलती है। राजा शिव अपनी प्रजा से मिलने निकलते हैं। यहां शिव पूजन से कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए महापूजा होती है।
इतिहास
ये मंदिर शंकराचार्य के समय का माना जाता है, लेकिन इतिहासकारों के मुताबिक मौजूदा मंदिर 1786 में तीसरे मराठा शासक नाना साहब पेशवा ने बनवाया था।
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केदारनाथ
ये मंदिर उत्तराखंड के चमौली में जिले में है। जो कि भारत के चारधामों में से एक है। भगवान शिव ने यहां पांडवों को दर्शन दिए थे।
मान्यता
पांडवों ने कौरव भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां शिव आराधना की थी। फिर यहीं से स्वर्ग के लिए निकल गए थे।
परंपरा
6 महीने तक (मई-नवंबर) मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। इसके बाद कपाट बंद हो जाते हैं। इन 6 महीनों तक शिवलिंग के पास लगातार दीपक जलता है।
इतिहास
पुराणों के मुताबिक द्वापर में पांडवों ने ये मंदिर बनवाया था, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं में मंदिर टूटने के बाद 8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने ये मंदिर बनवाया।
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घृष्णेश्वर
ये ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के संभाजी नगर (औरंगाबाद) के पास दौलताबाद में है। इस मंदिर का गर्भगृह 24 खंभों पर बना है।
मान्यता
घुश्मा नाम की भक्त को शिव जी ने यहां दर्शन दिए थे। उसी के नाम पर इस ज्योतिर्लिंग का नाम घुश्मेश्वर पड़ा है।
परंपरा
मंदिर में कई भक्त 101 शिवलिंग बनाकर पूजा करते हैं और 101 परिक्रमाएं करते हैं। मंदिर के पास एक शिवालय सरोवर है। इसके दर्शन करने की भी परंपरा है।
इतिहास
घृष्णेश्वर मंदिर को 13वीं-14वीं शताब्दी में विदेशी राजाओं ने कई बार नष्ट किया। 16वीं सदी में वेरूल के मालोजी भोसले (शिवा जी के दादा) ने मंदिर का निर्माण कराया। मुगल काल के बाद इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने 18वीं शताब्दी में वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
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