देश में हर साल कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के 400 मामले

इन वर्षों के बीच हिमाचल प्रदेश में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के सबसे अधिक 97 मामले, केरल में 83 मामले, महाराष्ट्र में 46 और कर्नाटक में 43 मामले दर्ज किए गए।

Aug 17, 2024 - 06:37
Aug 17, 2024 - 07:24
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देश में हर साल कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के 400 मामले

महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर चौंकाने वाले आंकड़े, रोजाना हर 16वें मिनट में एक दुष्कर्म,

देश में हर साल कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के 400 मामले 

देश में 2018 से 2022 तक हर साल कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के 400 मामले सामने आए हैं। इनमें से प्रत्येक वर्ष औसतन 445 मामले हैं। 2022 में 419 से अधिक मामले दर्ज किए गए, जो औसतन लगभग 35 प्रति माह है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में रोजाना हर 16 मिनट में एक दुष्कर्म की घटना सामने आई है।इन वर्षों के बीच हिमाचल प्रदेश में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के सबसे अधिक 97 मामले, केरल में 83 मामले, महाराष्ट्र में 46 और कर्नाटक में 43 मामले दर्ज किए गए।

यौन उत्पीड़न क्या है और क्या नहीं है जानिए 

(ILO डीसेन्ट वर्क टीम फॉर साउथ ऐशिया एण्ड कंट्री ऑफिस फॉर इंडिया)

वहीं  कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या को लेकर विरोध प्रदर्शन का सामना कर रहा है, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के सबसे अधिक मामलों वाले शीर्ष पांच राज्यों में नहीं था। वित्त वर्ष 2023 में कंपनियों ने यौन उत्पीड़न की रिकॉर्ड 1,160 शिकायतें दर्ज कीं, जो पिछले दस वर्षों में सबसे अधिक है। हालांकि, अशोका यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस के आंकड़ों के अनुसार, इनमें से आधे से ज्यादा मामलों का ही निपटान हो पाया। 

कंपनियों में यौन उत्पीड़न की शिकायतें 

रिपोर्ट के अनुसार, कंपनियों ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में 1,160 यौन उत्पीड़न की शिकायतों की सूचना दी, जिसमें अशोका विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस के आंकड़ों का हवाला दिया गया था। यह संख्या पिछले एक दशक में सबसे अधिक थी। इन आंकड़ों में 300 कंपनियों को शामिल किया गया हैं, इनमें मार्केट कैप के लिहाज से नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में 100 से 100वें, 957 से 1057वें स्थान पर और 1,914 से 2,013 के बीच 100वीं रैंक वाली कंपनियां शामिल हैं।

मामले रह जाते हैं लंबित

रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 31 मार्च, 2023 (वित्त वर्ष23) के अंत तक 202 मामले लंबित थे। डेटाबेस के अनुसार, रिपोर्ट किए गए और हल किए गए मामलों के बीच के अंतर की तुलना में लंबित मामलों की अपेक्षाकृत कम संख्या, शिकायतकर्ताओं के अपनी शिकायतें वापस लेने या आरोपी के कंपनी छोड़ने जैसे कारकों के कारण है। बता दें कि 2022 में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने प्रतिदिन औसतन 49 यौन उत्पीड़न के मामले दर्ज किए। 

दो साल से आंकड़े उपलब्ध नहीं... एक अन्य आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में देशभर में हर 16 मिनट में एक दुष्कर्म का मामला दर्ज किया जा रहा था। 2022 वो आखिरी साल है जिसके लिए एनसीआरबी के आंकड़े उपलब्ध हैं और उस साल 31,000 से ज्यादा मामले दर्ज कराए गए थे। एनसीआरबी के मुताबिक, 2022 में दुष्कर्म के 4,45,256 (हर घंटे 51 मामले) मामले दर्ज किए गए। 

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के निवारण का महत्त्व


यौन उत्पीड़न भेदभाव का एक गंभीर रूप है, और इसे बरदाश्त नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह काम में समानता का अवमूल्यन है, और काम करने वालों की इज्ज़त, गरिमा और सलामती के खिलाफ है। सभी मजदूरों को, चाहे महिला हों या पुरूष, ऐसे कार्यस्थल पर काम करने का अधिकार है, जो सुरक्षित, आजाद, भेदभाव व हिंसा से मुक्त हो, और महिलाओं के लिए अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने में सहायक हो, क्योंकि कार्य स्थल ऐसा स्थान है जहां वे अपने दिन का ज्यादातर समय बिताते हैं।


यौन उत्पीड़न के बाद उसके शिकार व्यक्ति पर बहुत गहरा नकारात्मक असर पड़ता है। उसे मानसिक पीड़ा, शारीरिक पीड़ा और व्यवसायिक घाटे झेलने पड़ते हैं। जो कर्मचारी यौन उत्पीड़न का शिकार होता है, उसकी क्षमता के विकास की संभावना बहुत कम हो जाती है। इसका नकारात्मक असर सिर्फ एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता बल्कि पूरे संस्थान में काम कर रहे बाकी कर्मचारी और समूचा कार्यस्थल इससे प्रभावित होते हैं। इसके कई नकारात्मक परिणाम होते हैं जैसे सामूहिक कार्य में बाधा, आर्थिक नुकसान, उत्पादन मे क्षति और विकास की गति धीमी पड़ना। यह समाज में महिलाओं और पुरूषों के बीच समानता और बराबरी कायम करने के रास्ते में बाधा पहुंचाता है। चूंकि यह लैंगिक हिंसा और भेदभाव को सही ठहराता है, इसलिए इससे पूरे देश के विकास और लोगों की खुशहाली को हानी होती है। इसलिए, यौन उत्पीड़न को रोकना और इसका निवारण करना समाज के हित में है।

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