30 नवम्बर – धुन के पक्के भूषणपाल जी का जन्मदिवस जीवन की प्रेरक यात्रा

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Nov 28, 2024 - 20:12
Nov 28, 2024 - 20:14
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30 नवम्बर – धुन के पक्के भूषणपाल जी का जन्मदिवस जीवन की प्रेरक यात्रा

30 नवम्बर – भूषणपाल जी का जन्मदिवस: जीवन की प्रेरक यात्रा

30 नवम्बर, 1954 को जम्मू-कश्मीर राज्य के किश्तवाड़ नगर में जन्मे भूषणपाल जी का जीवन देशभक्ति, त्याग, और समर्पण का अद्वितीय उदाहरण है। उनके पिता श्री चरणदास गुप्ता और माता श्रीमती शामकौर ने उन्हें एक साधारण लेकिन प्रेरणादायक वातावरण में पाला, जिससे उनके मन में भारतीय संस्कृति और मातृभूमि के प्रति गहरी श्रद्धा उत्पन्न हुई।

भूषणपाल जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा किश्तवाड़ में प्राप्त की और कुछ समय तक वहां के भारतीय विद्या मंदिर में अध्यापन कार्य किया। हालांकि, उनके मन में मातृभूमि की सेवा का एक दृढ़ संकल्प था, और इस कारण 1981 में उन्होंने प्रचारक बनने का निर्णय लिया।

संघ से जुड़ी प्रेरणा और संघर्ष

भूषणपाल जी का संघ से जुड़ाव छात्र जीवन में ही हो गया था। वे संघ की विचारधारा से प्रभावित थे और शाखा कार्य में सक्रिय रहते थे। आपातकाल के दौरान, उन्होंने सत्याग्रह किया और जेल भी गए, जो उनके संघर्षशील चरित्र को दर्शाता है।

उनकी माता-पिता का समर्थन उन्हें इस मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा। उनके माता-पिता समाजसेवी और आध्यात्मिक प्रवृत्तियों के थे, और उन्होंने अपने पुत्र को प्रचारक बनने की सहर्ष अनुमति दी। इस प्रेरक यात्रा की शुरुआत में एक विशाल यज्ञ आयोजित किया गया, जिसमें सैकड़ों हिन्दुओं ने उन्हें आशीर्वाद दिया।

कठिन परिश्रम और सेवा

प्रचारक बनने के बाद भूषणपाल जी को लद्दाख और कठुआ में कार्य करने का अवसर मिला। पर्वतीय क्षेत्रों में कार्य करना साधारण नहीं था; अनेक बार उन्हें दिनभर यात्रा करनी पड़ती और भोजन तथा विश्राम की सुविधा भी सीमित होती थी। बावजूद इसके, उन्होंने खुशी से इस कार्य को किया।

उनकी मेहनत और समर्पण से शाखाएं स्थापित हुईं, और जम्मू-पुंछ क्षेत्र में भी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए वे लगातार सघन प्रवास करते रहे। इस समय तक पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद बढ़ने लगा था, लेकिन वे किसी भी कठिनाई से विचलित नहीं हुए और लगातार लोगों के बीच अपने कार्य को फैलाने में लगे रहे।

परिषद में योगदान और स्वास्थ्य समस्याएं

1990 में भूषणपाल जी को जम्मू-कश्मीर प्रांत में विश्व हिन्दू परिषद का संगठन मंत्री नियुक्त किया गया। उनके कठोर परिश्रम और मधुर व्यवहार के कारण परिषद ने प्रदेशभर में अनेक नए कार्यकर्ता जुटाए। उनका कंठ बहुत मधुर था, और इसके माध्यम से उन्होंने कई भजन मंडलियों और सत्संग मंडलियों का गठन किया।

हालांकि, उनके स्वास्थ्य में गिरावट आने लगी। प्रवास के दौरान अनेक शारीरिक समस्याओं से जूझने के बावजूद, वे कार्य में अविरत रहे। कई बार उन्होंने चोटें भी खाईं, लेकिन कभी भी अपने कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ा।

अंतिम समय की यात्रा

भूषणपाल जी ने जीवन के अंतिम तीन वर्ष बहुत कष्ट में बिताए। उनके रक्त में कई विकार हो गए थे और उन्हें नियमित रूप से डायलिसिस की आवश्यकता थी, लेकिन उन्होंने कभी अपनी पीड़ा का उल्लेख नहीं किया। 12 मई, 2011 को, राम-राम जपते हुए किश्तवाड़ के चिकित्सालय में उनका निधन हो गया, और एक युग का समापन हुआ।

भूषणपाल जी का जीवन न केवल उनकी सेवाओं का प्रतीक है, बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका समर्पण, त्याग, और देशभक्ति भारतीय समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर बन गया है।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार