29 नवम्बर प्रेरक-प्रसंग - एकात्मता रथों का त्रिवेणी महासंगम

29 नवम्बर: प्रेरक-प्रसंग - एकात्मता रथों का त्रिवेणी महासंगम, 29 November Inspirational story Triveni Mahasangam of unity chariots

Nov 28, 2024 - 19:20
Nov 28, 2024 - 19:28
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29 नवम्बर प्रेरक-प्रसंग - एकात्मता रथों का त्रिवेणी महासंगम

29 नवम्बर: प्रेरक-प्रसंग - एकात्मता रथों का त्रिवेणी महासंगम

1983 में आयोजित ‘एकात्मता यज्ञ’ यात्रा भारतीय समाज के एकता और सामूहिकता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है। इस यात्रा का आयोजन विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) द्वारा किया गया था, जिसका उद्देश्य हिन्दू समाज के विभिन्न मतों, पंथों, और संप्रदायों को एकत्र करना था। यह यात्रा श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में उभरी, जिससे पहले संगठन के विस्तार पर जोर दिया गया था।

यात्रा की रचना संघ के वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले द्वारा की गई, जिन्होंने इस पूरी योजना को दिशा दी, जबकि उन्होंने स्वयं नेपथ्य में रहकर इसे संचालित किया। यात्रा का आयोजन मीनाक्षीपुरम् धर्मान्तरण कांड के बाद हिन्दू समाज में व्याप्त चिन्ता और असुरक्षा को देखते हुए किया गया था।

यात्रा की संरचना

इस यात्रा में तीन प्रमुख रथों का निर्माण किया गया। ये रथ भारत माता और गंगा माता की विशाल मूर्तियों से सुसज्जित थे। पहले रथ ने काठमांडु से रामेश्वर तक यात्रा की, दूसरा रथ हरिद्वार से कन्याकुमारी तक और तीसरा रथ गंगासागर से सोमनाथ तक गया। इन रथों के साथ 312 उपयात्राएं भी थीं, जिन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों से पवित्र जल संग्रहित किया।

यात्रा के दौरान कुल 38,526 स्थानों से 77,440 पवित्र कलश एकत्र किए गए। 974 स्थानों पर रात्रि विश्राम हुआ और 4,323 धर्मसभाओं का आयोजन किया गया, जिसमें 7.28 करोड़ लोग शामिल हुए। यात्रा ने 50,000 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय की।

29 नवम्बर, 1983 - त्रिवेणी महासंगम

इस यात्रा का सबसे अहम दिन 29 नवम्बर, 1983 था, जब तीनों प्रमुख रथ नागपुर के रेशीम बाग में एकत्र हुए। यहां पर विराट धर्मसभा का आयोजन हुआ, जिसमें हिन्दू समाज के विभिन्न प्रतिनिधि शामिल हुए। यह संगम न केवल धार्मिक एकता का प्रतीक था, बल्कि यह हिन्दू समाज की शक्ति और संकल्प को भी प्रदर्शित करता था।

सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और एक दिन पहले उन्होंने यात्रा के विभिन्न तत्वों के निर्माताओं का सम्मान भी किया। इस यात्रा की सफलता में विभिन्न धार्मिक गुरुओं और संतों का सहयोग महत्वपूर्ण रहा, जिनमें महाराणा भगवत सिंह मेवाड़, जगद्गुरु शंकराचार्य शांतानंद जी, स्वामी चिन्मयानंद जी, और कई अन्य प्रमुख व्यक्तित्व शामिल थे।

समाज का उत्साह और सहयोग

इस यात्रा के दौरान हिन्दू समाज का उत्साह अद्वितीय था। पुरुषों से अधिक महिलाएं इस यात्रा में सक्रिय रूप से भागीदारी कर रही थीं। गंगाजल का प्रसाद भी यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को वितरित किया गया, जो एक नई धार्मिक चेतना का प्रतीक था।

यात्रा का व्यापक प्रभाव

यात्रा की सफलता ने संगठन के स्तर पर एक नई ऊर्जा का संचार किया। इस यात्रा के बाद ही राममंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा और संघ परिवार ने अपने धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों को और अधिक प्रभावी रूप से आगे बढ़ाया। इस यात्रा के आयोजन ने हिन्दू समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई और हिन्दू एकता का प्रतीक बन गई।

समाप्ति में, यह यात्रा भारतीय समाज की एकता, समरसता और धार्मिक दृढ़ता का एक ऐतिहासिक उदाहरण है, जो आज भी भारतीय राजनीति और समाज में अपनी छाप छोड़ती है।

29 नवम्बर: प्रेरक-प्रसंग - एकात्मता रथों का त्रिवेणी महासंगम

परिचय

1983 में आयोजित ‘एकात्मता यज्ञ’ यात्रा भारतीय समाज के एकता और सामूहिकता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है। यह यात्रा विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) द्वारा आयोजित की गई थी, जिसका उद्देश्य हिन्दू समाज के विभिन्न मतों, पंथों और संप्रदायों को एकत्र करना था। यह यात्रा श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से पहले संगठन के विस्तार और हिन्दू एकता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थी।

यात्रा का संकल्पना और उद्देश्य

यह यात्रा संघ के वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले द्वारा रचित योजना का हिस्सा थी, जिन्होंने स्वयं नेपथ्य में रहते हुए इसे दिशा दी। यात्रा का आयोजन 1981 में मीनाक्षीपुरम् धर्मान्तरण कांड के बाद हिन्दू समाज में व्याप्त चिन्ता और असुरक्षा को देखते हुए किया गया था। इस यात्रा के माध्यम से हिन्दू समाज को एकजुट करने का उद्देश्य था, ताकि विभिन्न मत, पंथ और संप्रदायों के बीच सामूहिक भावना को प्रोत्साहित किया जा सके।

यात्रा की संरचना और मार्ग

यात्रा में तीन प्रमुख रथों का निर्माण किया गया, जिनमें भारत माता और गंगा माता की विशाल मूर्तियाँ स्थापित थीं। पहले रथ ने काठमांडु से रामेश्वर तक यात्रा की, दूसरा रथ हरिद्वार से कन्याकुमारी तक और तीसरा रथ गंगासागर से सोमनाथ तक गया। इन रथों के साथ 312 उपयात्राएं भी थीं, जिन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों से पवित्र जल एकत्र किया। इन जल कलशों का महत्व था, क्योंकि ये भारत की विभिन्न नदियों और तीर्थों से लाया गया था।

इस यात्रा ने कुल 50,000 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय की और 38,526 स्थानों से 77,440 पवित्र कलश एकत्र किए गए। यात्रा के दौरान 974 स्थानों पर रात्रि विश्राम हुआ और 4,323 धर्मसभाओं का आयोजन किया गया, जिसमें 7.28 करोड़ लोग शामिल हुए।

29 नवम्बर, 1983 का त्रिवेणी महासंगम

इस यात्रा का सबसे अहम दिन 29 नवम्बर, 1983 था, जब तीनों प्रमुख रथ नागपुर के रेशीम बाग में एकत्र हुए। यह दिन हिन्दू समाज के लिए ऐतिहासिक था, क्योंकि इस दिन तीनों रथों का संगम हुआ और विराट धर्मसभा का आयोजन किया गया। यह संगम न केवल धार्मिक एकता का प्रतीक था, बल्कि यह हिन्दू समाज की शक्ति और संकल्प को भी प्रदर्शित करता था।

इस कार्यक्रम में संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की समाधि और दूसरे सरसंघचालक श्री गुरुजी का स्मृति चिन्ह भी था। सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस पूरे कार्यक्रम में उपस्थित रहे और एक दिन पूर्व उन्होंने भारत माता की मूर्तियों के निर्माता दम्पति और अन्य प्रमुख सहयोगियों का सम्मान भी किया।

सामाजिक सहयोग और उत्साह

यात्रा में हिन्दू समाज का उत्साह अवर्णनीय था। पुरुषों से अधिक महिलाओं में इस यात्रा में भागीदारी का उत्साह था। यात्रा के दौरान हर जगह गंगाजल का प्रसाद वितरित किया गया, जो श्रद्धालुओं में विशेष आकर्षण का केंद्र था। इस यात्रा ने समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट किया, जिसमें निर्धन वर्ग से लेकर उद्योगपतियों तक सभी ने योगदान दिया।

यात्रा का प्रभाव और संगठन के लिए योगदान

‘एकात्मता यज्ञ’ यात्रा की सफलता ने संगठन को नई ऊर्जा दी। इस यात्रा के बाद राममंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा और संघ परिवार ने अपने धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों को प्रभावी रूप से आगे बढ़ाया। इस यात्रा ने हिन्दू समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट किया और हिन्दू एकता का प्रतीक बन गई।

‘एकात्मता यज्ञ’ यात्रा भारतीय समाज की एकता, समरसता और धार्मिक दृढ़ता का एक ऐतिहासिक उदाहरण है। इस यात्रा ने न केवल हिन्दू समाज के भीतर एकजुटता का संदेश दिया, बल्कि यह भारतीय राजनीति और समाज में अपनी छाप छोड़ती है। 29 नवम्बर, 1983 का त्रिवेणी महासंगम आज भी हिन्दू समाज के सामूहिक प्रयास और संघर्ष का प्रतीक बना हुआ है।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,