ठक्कर बापा महान सेवाव्रती की प्रेरक यात्रा

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Nov 28, 2024 - 19:17
Nov 28, 2024 - 19:18
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ठक्कर बापा महान सेवाव्रती की प्रेरक यात्रा

ठक्कर बापा: महान सेवाव्रती की प्रेरक यात्रा

ठक्कर बापा, जिनका असली नाम अमृतलाल ठक्कर था, भारतीय समाज के महान सेवकों में गिने जाते हैं। उनका जीवन सेवा, समर्पण और मानवता के प्रति गहरी निष्ठा का प्रतीक बना। उनका जन्म 29 नवम्बर, 1869 को सौराष्ट्र (गुजरात) के भावनगर में हुआ। उनके पिता श्री विट्ठलदास ठक्कर धार्मिक और परोपकारी व्यक्ति थे, जिनसे अमृतलाल जी को जीवनभर सेवा का महान संस्कार मिला। ठक्कर बापा का जीवन केवल भव्य शब्दों और उपदेशों से नहीं, बल्कि उनके द्वारा किए गए वास्तविक कार्यों से प्रभावित करता है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

ठक्कर बापा का शिक्षा जीवन बहुत ही प्रेरणादायक था। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने पोरबन्दर राज्य में अभियंता की नौकरी की। इसके बाद, वे रेल विभाग के साथ तीन साल के अनुबंध पर युगांडा गए, जहाँ पर उन्होंने अपने कार्यक्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन जब वे भारत लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनके क्षेत्र में दुर्भिक्ष फैल चुका था। यह दृश्य उनके लिए असहनीय था और इस संकट में पीड़ितों की मदद करना उनके जीवन का लक्ष्य बन गया। यहीं से उनका नाम 'ठक्कर बापा' पड़ा, क्योंकि बापा का अर्थ 'बाप' या 'पिता' होता है, और लोग उन्हें स्नेहपूर्वक इसी नाम से पुकारने लगे।

सेवा कार्य का आरंभ

ठक्कर बापा के जीवन में सच्ची सेवा का आरंभ 1909 में हुआ, जब उनकी पत्नी का निधन हुआ। इस समय से उन्होंने निर्धनों और समाज के वंचित वर्गों की सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। उन्होंने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बसे वनवासियों के बीच कार्य करना शुरू किया। उन्हें यह देखकर दुख हुआ कि विदेशी मिशनरियों ने वहाँ विद्यालय और चिकित्सालय खोल रखे थे, लेकिन उनके कार्यों का उद्देश्य वनवासियों को धर्मान्तरित करना था। ठक्कर बापा ने इस धर्मान्तरण के प्रयासों का विरोध किया और वनवासियों की भलाई के लिए स्थायी प्रयास किए।

ठक्कर बापा का योगदान

ठक्कर बापा ने भारतीय समाज की गहरी समस्याओं को समझा और उनका समाधान निकालने के लिए कई अहम कार्य किए। उन्होंने महात्मा गांधी, गोपाल कृष्ण गोखले, और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर कई सुधार कार्यों में भाग लिया, लेकिन राजनीति में उनका मन नहीं लगा। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन पूरी तरह से सेवा कार्यों में समर्पित कर दिया।

1914 में मुंबई नगर निगम की स्थायी नौकरी छोड़कर उन्होंने 'सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी' के माध्यम से समाज सेवा का कार्य शुरू किया। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में विद्यालय, चिकित्सालय, और आश्रमों की स्थापना की और स्थानीय समस्याओं का समाधान किया।

1920 में उड़ीसा के पुरी जिले में बाढ़ के समय उन्होंने लंबे समय तक सेवा कार्य किया। इसके अलावा, 1946 में नोआखाली में हुए हिन्दू नरसंहार के बाद भी उन्होंने वहां जाकर राहत कार्य किए। ठक्कर बापा का यह सेवाभाव देशभर में प्रसिद्ध हुआ और उनके कार्यों से समाज में एक नई जागरूकता आई।

गांधी जी के साथ सहयोग

1932 में गांधी जी के आग्रह पर ठक्कर बापा 'हरिजन सेवक संघ' के मंत्री बने। उन्होंने 'भील सेवा मंडल' और 'अन्त्यज सेवा मंडल' जैसी संस्थाओं की स्थापना की, जिससे समाज के पिछड़े वर्गों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार हो सके। उनकी पूरी कोशिश यह थी कि भारत में समाज के सभी वर्गों को समान अवसर मिलें और उनके बीच कोई भेदभाव न हो।

ठक्कर बापा का अंतिम समय

ठक्कर बापा का जीवन पूरी तरह से सेवा में समर्पित था। 19 जनवरी, 1951 को वे अपने परिजनों के बीच भावनगर में पंचतत्व में विलीन हो गए। उनका जीवन समाज सेवा का एक अद्वितीय उदाहरण बन गया। वे हमेशा कहते थे कि पूजा का सही अर्थ केवल भजन करना नहीं, बल्कि अपने भाइयों की सेवा करना है। उनका जीवन यह सिद्ध करता है कि अगर सेवा निष्ठा से की जाए, तो यह समाज को बदल सकती है।

ठक्कर बापा का योगदान भारतीय समाज में हमेशा अमिट रहेगा। उनकी सेवा के प्रति समर्पण और मानवता के प्रति प्रेम ने उन्हें महान बना दिया। उनके कार्यों से यह प्रेरणा मिलती है कि अगर हम समाज की भलाई के लिए समर्पित हो जाएं, तो हम एक सशक्त और समृद्ध समाज की रचना कर सकते हैं।

  • जन्म और प्रारंभिक जीवन:
    ठक्कर बापा, जिनका असली नाम अमृतलाल ठक्कर था, का जन्म 29 नवम्बर, 1869 को गुजरात के भावनगर में हुआ था। उनके पिता श्री विट्ठलदास ठक्कर धार्मिक और परोपकारी व्यक्ति थे, जिनसे उन्हें सेवा का संस्कार मिला।

  • सेवा कार्य की शुरुआत:
    ठक्कर बापा ने 1909 में अपनी पत्नी के निधन के बाद निर्धनों और वंचितों की सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। उन्होंने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में वनवासियों के बीच काम करना शुरू किया और वहां धर्मान्तरण के प्रयासों का विरोध किया।

  • महत्वपूर्ण योगदान:
    ठक्कर बापा ने 'सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी' के माध्यम से समाज सेवा का कार्य किया। उन्होंने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों, जैसे उड़ीसा और नोआखाली में राहत कार्य किए, साथ ही 'हरिजन सेवक संघ' के मंत्री बने और समाज के पिछड़े वर्गों के लिए कई संस्थाओं की स्थापना की।

  • मृत्यु और विरासत:
    19 जनवरी, 1951 को भावनगर में ठक्कर बापा का निधन हो गया। उनका जीवन समाज सेवा और मानवता के प्रति निष्ठा का प्रतीक बना और उन्होंने अपनी सेवाओं से भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,